लखनऊ : देश में एक साथ तीन तलाक के बारे में उच्चतम न्यायालय के हाल के ऐतिहासिक फैसले के बाद पैदा सूरत-ए-हाल के बीच एक महिला ने सार्वजनिक तौर पर अपने पति से खुला लेकर उससे अलग रहने का एलान कर दिया.
लखनऊ में ब्याही शाजदा खातून ने अपने शौहर जुबेर अली को लिखे गये खुला संबंधी पत्र पर हस्ताक्षर करते हुए कहा कि उसने अपने पति से खुला लेने के लिए बहुत कोशिश की. इसके लिए वह दो बार इस्लामी शिक्षण संस्थान नदवा और एक दफा फिरंगी महल भी गयी, लेकिन उसे कोई राहत नहीं मिली. लिहाजा, अब वह सार्वजनिक रूप से अपने शौहर को खुला का नोटिस हस्ताक्षरित करके भेज रही है. कुरान और हदीस में इसे लेकर कोई रोक भी नहीं है, लिहाजा अब वह आजाद है.
इस्लाम में शौहर को तलाक देने और महिला को खुला लेने का अधिकार दिया गया है. खुला लेने के बाद औरत अपनी मर्जी से रह सकती है. यह कदम उठाने में खातून की मदद करनेवाली मुस्लिम वूमेन लीग की महासचिव नाइश हसन ने बताया कि वह महिला अपने शौहर के जुल्म से बहुत परेशान थी और वह पिछले 18 महीने से उससे अलग रहकर शिक्षण कार्य करके अपना गुजारा कर रही थी. तमाम अपील के बावजूद उसका पति ना तो उसे तलाक दे रहा था और ना ही खुला.
उन्होंने बताया कि खातून अपना खुला कराने के लिए दो बार नदवा और एक बार फिरंगी महल गयी. वहां से उसे यह कह कर लौटा दिया गया कि वह इस बारे में अपने शौहर की रजामंदी लेकर आये, जबकि कुरान शरीफ में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है. सार्वजनिक तौर पर खुला लेने के अलावा हमारे पास और कोई इलाज नहीं था. महिला की इद्दत की अवधि नवंबर में खत्म होगी. उसके बाद उसका खुला मुकम्मल हो जायेगा.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वरिष्ठ कार्यकारिणी सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि खातून ने खुला लेने का जो तरीका अपनाया है, वह सही नहीं है. सिर्फ एक खत के आधार पर खुला नहीं मिलता. उन्होंने कहा कि खुला की इच्छुक महिला को अपने शौहर को नोटिस देना होता है. अगर पति तीन नोटिस दिये जाने के बावजूद जवाब नहीं देता है, तो खुला अपने आप लागू हो जायेगा.
मौलाना की इस दलील पर नाइश ने कहा कि अगर उन्हें खातून का कदम गलत लगता है, तो अपने दावे को अदालत में साबित करें. इस बीच, ऑल इंडिया मुस्लिम वूमेन पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर ने खातून के कदम को बिल्कुल दुरुस्त करार देते हुए कहा कि जब शौहर और इस्लामी ओहदेदार लोग खुला के लिए मदद नहीं करते, तो महिला निकाह फस्ख का रास्ता अपना सकती है. ऐसी स्थिति में उसे ना तो काजी की और ना ही तलाक की जरूरत होती है.
उन्होंने कहा कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा जारी किताब मजमुअे-कवानीन इस्लामी में भी इस तरीके को जायज बताया गया है. शाइस्ता ने बताया कि कौम को रास्ता दिखाने के लिए जिम्मेदार मुस्लिम संगठनों ने महिलाओं के प्रति अपनी सोच अब तक नहीं बदली है. पितृसत्तात्मक मानसिकता की वजह से महिलाओं की जिंदगी नरक बना दी गयी है.