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म्यांमार का रोंहिग्या समुदाय : हर दौर में दर-दर भटकने को मजबूर

रोहिंग्या का इतिहास क्या है और ये लोग कहां से आये, इस बारे में इतिहासकारों में मतभेद है. कुछ लोगों का मानना है कि यह शब्द अरबी के शब्द रहमा अर्थात दया से लिया गया है और आठवीं शताब्दी में जो अरब मुसलमान आये, उन्हें यह नाम दिया गया. बाद में स्थानीय प्रभाव के कारण […]

रोहिंग्या का इतिहास क्या है और ये लोग कहां से आये, इस बारे में इतिहासकारों में मतभेद है. कुछ लोगों का मानना है कि यह शब्द अरबी के शब्द रहमा अर्थात दया से लिया गया है और आठवीं शताब्दी में जो अरब मुसलमान आये, उन्हें यह नाम दिया गया. बाद में स्थानीय प्रभाव के कारण रहमा शब्द रोहिंग्या बन गया. इतिहासकारों के दूसरे वर्ग का मानना है कि रोहिंग्या की उत्पत्ति अफगानिस्तान के रूहा नामक स्थान पर हुई थी, वहीं अराकान के तटवर्ती क्षेत्र में अरब मुसलमानों की आबादी 1400 के आसपास आकर बसी.
इनमें से ज्यादातर 1430 में अराकान पर शासन करने वाले बौद्ध राजा नारामीखला (बर्मीज में मिन सा मुन) के राज दरबार में नौकर थे. कुछ समय के बाद अराकान के राजाओं ने खुद को मुगल समझना शुरू कर दिया. ये लोग अपनी सेना में मुस्लिम पदवियों का उपयोग करने लगे. दरबार के अधिकारियों के नाम भी मुस्लिम शासकों के दरबारों की तर्ज पर रखे गये.1785 में बर्मा के बौद्ध लोगों ने देश के दक्षिणी हिस्से अराकान पर कब्जा कर लिया.
उन्होंने रोहिंग्या मुस्लिमों को या तो इलाके से बाहर खदेड़ दिया या फिर उनकी हत्या कर दी. इस अवधि में अराकान के करीब 35 हजार लोग अंग्रेजों के अधिकार क्षेत्र वाले बंगाल भाग गये. 1824 से लेकर 1826 तक चले एंग्लो-बर्मीज युद्ध के बाद 1826 में अराकान अंग्रेजों के नियंत्रण में आ गया. तब अंग्रेजों ने बंगाल के स्थानीय बंगालियों को प्रोत्साहित किया कि वे अराकान के जनसंख्या रहित क्षेत्र में जाकर बस जायें. रोहिंग्या मूल के मुस्लिमों और बंगालियों को प्रोत्साहित किया गया कि वे अराकान (राखिन) में बसें.
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान दक्षिण पूर्व एशिया में जापान के बढ़ते दबदबे से आतंकित अंग्रेजों ने अराकान छोड़ दिया और उनके हटते ही बौद्धों ने मुस्लिमों के ऊपर अत्याचार करना शुरू कर दिया, जबकि रोहिंग्या मुस्लिमों को उम्मीद थी कि वे ‍अंग्रेजों से सुरक्षा और संरक्षण पा सकते हैं.
रखाइन की जनता जापानियों की सहायता कर रही थी और रोहिंग्या अंग्रेजों के समर्थक थे. अंग्रेजों का समर्थन करने के लिए इन लोगों ने जापानी सैनिकों की जासूसी की. इस बात का पता चलने पर जापानियों ने भी रोहिंग्या मुसलमानों पर जम कर अत्याचार करना शुरू कर दिया. इससे डर कर अराकान से लाखों रोहिंग्या मुस्लिम फिर से बंगाल भाग गये.
जनवरी 1948 में बर्मा स्वतंत्र हो गया. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1948 में कुछ रोहिंग्या मुसलमानों ने अराकान को एक मुस्लिम देश बनाने के लिए सशस्त्र संघर्ष आरंभ कर दिया. लेकिन तत्कालीन बर्मी सैन्य शासन ने यांगून (पूर्व का रंगून) पर कब्जा करते ही अलगाववादी और गैर राजनीतिक दोनों ही प्रकार के रोहिंग्या लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की. 1962 में बर्मा के जनरल नी विंग की सैन्य क्रांति तक यह आंदोलन बहुत सक्रिय रहा.
जनरल की सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों के विरुद्ध व्यापक स्तर पर सैन्य कार्यवाही की और रोहिंग्या लोगों को नागरिकता देने से इंकार कर इन्हें बिना देश वाला (स्टेट लेस) बंगाली घोषित कर दिया गया. इस वजह से कई लाख मुसलमानों ने वर्तमान बांग्लादेश में शरण ले ली. उनमें से बहुत से लोगों ने बाद में कराची का रुख किया और पाकिस्तान की नागरिकता लेकर पाकिस्तान को ही अपना देश मान लिया. मलयेशिया में भी पच्चीस से तीस हजार रोहिंग्या मुसलमान रहते हैं.
बर्मी इतिहासकारों का दावा अलग
बर्मी इतिहासकारों का दावा इसके उलट है. उनका मानना है कि रोहिंग्या शब्द 1950के दशक से पहले कभी प्रयोग ही नहीं हुआ. ये वे बंगाली मुसलमान हैं जो अपना घर बार छोड़कर अराकान में आबाद हुए. राष्ट्रपति थीन सेन और उनके समर्थक इसी दावे को आधार बनाकर रोहिंग्या मुसलमानों को नागरिक अधिकार देने से इंकार कर रहे हैं.
किंतु बर्मा में अरब मुसलमानों के घुसने और रहने पर सभी एकमत हैं. उनकी बस्तियां बर्मा के मध्यवर्ती क्षेत्रों में हैं, जबकि रोहिंग्या मुसलमानों की अधिकतर आबादी बांग्लादेश के चटगांव डिविजन से मिली अराकान के सीमावर्ती क्षेत्र मायो में पायी जाती है.लंबे संघर्ष के बाद बर्मा के लोगों ने तानाशाह से मुक्ति प्राप्त की और देश में लोकतंत्र की स्थापना हुई.
2012 के चुनाव में लोकतंत्र की सबसे बड़ी समर्थक आन सांग सू की की पार्टी ने जीत हासिल की. रोहिंग्या मुसलमानों को सू की से भी काफी उम्मीदें थीं, लेकिन एक बार फिर वे नाउम्मीद हुए हैं. हर एक देश ने उनके लिए अपने दरवाजे बंद कर रखे हैं और उन पर निरंतर अत्याचार जारी है.
विश्व में लगभग 24 लाख है इनकी आबादी
म्यांमार 13,00,000
बांग्लादेश 6,70,000
पाकिस्तान 2,00,000
थाइलैंड 1,00,000
भारत 40,000
अमेरिका 12,000
इंडोनेशिया 12,000
नेपाल 200

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