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BENGAL : दाने-दाने को मोहताज राज्य के अन्नदाता

बदहाली : आलू, धान, पाट व सब्जियों की खेती करनेवाले राज्य के किसानों को नहीं मिल रहा ऊपज का वाजिब दाम देश की आधी से ज्यादा आबादी कृषि और इससे संबंधित कार्यों से जुड़ी हुई है. किसान देश का आधार माने जाते हैं इसके बावजूद उनकी दशा विषम है. किसानों को उनकी ऊपज की सही […]

बदहाली : आलू, धान, पाट व सब्जियों की खेती करनेवाले राज्य के किसानों को नहीं मिल रहा ऊपज का वाजिब दाम
देश की आधी से ज्यादा आबादी कृषि और इससे संबंधित कार्यों से जुड़ी हुई है. किसान देश का आधार माने जाते हैं इसके बावजूद उनकी दशा विषम है. किसानों को उनकी ऊपज की सही कीमत नहीं मिलने की बात सामने आती है. पश्चिम बंगाल भी इससे अछूता नहीं है.
केवल आलू ही नहीं बल्कि धान, पाट व सब्जियों की खेती करने वाले किसानों को उनकी ऊपज का वाजिब दाम नहीं मिलने का दावा किया जाता है. मौजूदा समय में हालत और बिगड़ गये हैं. भारी बारिश के कारण आयी बाढ़ ने राज्य के किसानों की जैसे कमर ही तोड़ डाली. करीब 10 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य जमीन बाढ़ से प्रभावित हुए. धान, पाट और सब्जियों की खेती करने वाले किसानों को काफी नुकसान पहुंचा. कृषि क्षेत्र में करीब सात हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. आलम यह है कि अन्नदाता कहने वाले किसान दाने-दाने को मोहताज हैं.
छोटे किसानों पर आफत ज्यादा :
राज्य में ज्यादातर छोटे किसान कर्ज लेकर खेती करते हैं. बाढ़ से होने वाले नुकसान ने उनकी समस्या और बढ़ा दी है. मुर्शिदाबाद में कृषि कार्य से जुड़े देबू मंडल ने कहा है किसानों की हालत वैसे ही खस्ताहाल है. ऐसे में बाढ़ के कारण रही-सही कसर भी पूरी हो गयी है.
वह सब्जियों की खेती करता है. छोटा किसान होने के कारण उसके सिर पर भी कर्जा का बोझ है. जब पैदावार अच्छी होती है तब भी किसानों के दिन नहीं फिरते हैं क्योंकि उनकी ऊपज की सटीक कीमत नहीं मिल पाती है. कई बार तो लागत की राशि तक नहीं मिल पाती. मौजूदा समय में स्थिति और विपरीत हो गयी है. यदि जल्द प्रशासन की ओर से मदद नहीं किया गया तो एक वक्त की रोटी नसीब भी नहीं होगी.
मदद नहीं तो आत्महत्या की आशंका प्रबल : आॅल इंडिया किसान महासभा की ओर से आशंका व्यक्त की गयी है कि यदि राज्य में किसानों और खेतिहर मजदूरों की माली हालत सुधार और उनकी मदद पर ध्यान नहीं दिया गया तो आत्महत्या और भुखमरी की घटनाएं हो सकती हैं. संगठन की ओर से मांग की गयी है कि धान की कृषि योग्य भूमि के लिए प्रति एकड़ न्यूनतम 12,500 रुपये का मुआवजा दिया जाये.
सब्जियों के क्षेत्र में प्रति एकड़ 15-17 हजार रुपये और पाट के क्षेत्र में प्रति एकड़ जमीन पर 25-30 हजार रुपये मुआवजा की व्यवस्था की जाये. खेतिहर मजदूरों की मदद की जाये. संगठन के उपाध्यक्ष कार्तिक पाल ने आरोप लगाया है कि किसानों और खेतिहर मजदूरों की दशा सुधार पर सरकार की ओर से ध्यान नहीं दिया जा रहा है और वर्ष 2016 से अभी तक करीब 350 किसानों और खेतिहर मजदूरों ने आत्महत्या की है. हालांकि आधिकारिक तौर पर इस बात की पुष्टि नहीं की गयी है.
3.22 लाख किसानों व कृषि कार्य से जुड़े लोगों ने दी जान : देश के अन्य हिस्सों में भी किसान समस्याओं से जूझ रहे हैं. इस कारण आत्महत्या की खबरें अक्सर सामने आती हैं.
सरकारी आंकड़ों की मानें तो वर्ष 1995 से वर्ष 2015 तक यानी 21 वर्षों में करीब 3,22,028 किसानों और कृषि कार्य से जुड़े लोगों ने आत्महत्या की. जानकारों का मानना है कि किसानों केे आत्महत्या के दो प्रमुख वजह हैं. एक कर्ज और दूसरा ऊपज की सटीक कीमत नहीं मिल पाना है. देश की आबादी का करीब 70 प्रतिशत हिस्सा कृषि कार्य से जुड़ा है. एक सरकार सर्वे के अनुसार करीब 40 प्रतिशत लोग मजबूरी में कृषि कार्य से जुड़े हुए हैं. यह देश के लिए काफी चिंता का विषय है.
देश में किसानों के आत्महत्या के मामले
वर्ष मामले
1995 10720
1996 13729
1997 13622
1998 16015
1999 16082
2000 16603
2001 16415
वर्ष मामले
2002 17971
2003 17164
2004 18241
2005 17131
2006 17060
2007 16632
2008 16796
वर्ष मामले
2009 17368
2010 15964
2011 14027
2012 13754
2013 11772
2014 12360
2015 12602

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