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स्कूल से दूर कूड़े-कचरे के बीच कट रही जिंदगी

पूर्णिया : रोटी, खेल, पढ़ाई और प्यार हर बच्चे का है अधिकार, यह महज नारा बन कर रह गया है. सरकारी स्तर पर जोर-शोर से बाल श्रम के खिलाफ भले ही जोर-शोर से अभियान चलाये जाते हों, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. दो वक्त की रोटी के जुगाड़ के आगे बचपन कुम्हला रहा […]

पूर्णिया : रोटी, खेल, पढ़ाई और प्यार हर बच्चे का है अधिकार, यह महज नारा बन कर रह गया है. सरकारी स्तर पर जोर-शोर से बाल श्रम के खिलाफ भले ही जोर-शोर से अभियान चलाये जाते हों, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. दो वक्त की रोटी के जुगाड़ के आगे बचपन कुम्हला रहा है. जिला मुख्यालय की ही बात करें तो चौक-चौराहे से लेकर गली-कूची तक दिन में कचरे में अपना भविष्य तलाशते बच्चे नजर आ जाते हैं.

दरअसल उनकी मजबूरी यह है कि अगर वे पूरे दिन कूड़े-कचरे से पॉलिथिन एवं अन्य चीजें इकट्ठा नहीं करेंगे तो रात की रोटी भी नसीब नहीं हो पायेगी. ऐसे कार्यों के लिए अभिभावक भी बच्चों को मानसिक रूप से तैयार करते हैं और कभी-कभी तो खुद अपने साथ कचरा चुनने के कार्य में उन्हें लगाते हैं. पहली तस्वीर पूर्णिया कोर्ट स्टेशन के पास की है, जहां दो भाई-बहन कचरा बीनने के बाद वापस लौटते नजर आ रहे हैं. वहीं दूसरी तस्वीर पूर्णिया कॉलेज की है, जहां कुछ बच्चे एक किशोरवय की लड़की के साथ कचरे से जरूरत का सामान निकालने की कोशिश कर रहे हैं. वहीं तीसरी तस्वीर स्टेडियम के पास की है, जहां एक मां अपने बच्चे के साथ कचरा बीनने के लिए निकली हुई है. जाहिर है कि पेट की आग के सामने पढ़ाई-लिखाई और अन्य सारी बातें बेमानी है.

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