गुरु, आचार्य, अध्यापक, शिक्षक या टीचर कुछ भी कह लें, लेकिन सबका उद्देश्य एक ही होता है. अपने छात्रों को शिक्षित, सामर्थ्यवान व संस्कारित बनाना. शिक्षक जीवन का वह महत्त्वपूर्ण वृक्ष होता है जिसके छांव में रहकर ही छात्र अपने बेहतर भविष्य की बुनियाद रखते हैं.
वर्तमान परिदृश्य में कई ऐसी घटनाएं घटित हुई हैं, जिनसे शिक्षकों पर प्रश्नचिह्न खड़ा होना लाजमी है. परंतु आज भी गुणवान शिक्षकों की कोई कमी नहीं है. मौन रूप से नयी पीढ़ी को सींच व संवार रहे हैं. समाज को समय-समय पर अपनी महत्ता का एहसास करा रहे हैं. आज जरूरत है ऐसे शिक्षकों के उत्साहवर्धन की ताकि अन्य शिक्षक भी उनके पदचिह्नों पर चलने के लिए संकल्पित हो सकें.
सौरभ पाठक, बुंडू