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फैशन बना वाहनों में प्रेशर हॉर्न विभाग-ट्रैफिक पुलिस खामोश

अनदेखी. बेलगाम हैं वाहन चालक, ध्वनि प्रदूषण से िचंतित हैं शहरवासी पूर्णिया : सड़कों पर परिवहन नियमों की अवहेलना कोई नयी बात नहीं है. बिना हेलमेट और कागजात के वाहनों का परिचालन आम बात है, लेकिन हाल के दिनों में जो सबसे बड़ी समस्या सामने आयी है, वह प्रेशर हॉर्न है, जो अब फैशन बन […]

अनदेखी. बेलगाम हैं वाहन चालक, ध्वनि प्रदूषण से िचंतित हैं शहरवासी

पूर्णिया : सड़कों पर परिवहन नियमों की अवहेलना कोई नयी बात नहीं है. बिना हेलमेट और कागजात के वाहनों का परिचालन आम बात है, लेकिन हाल के दिनों में जो सबसे बड़ी समस्या सामने आयी है, वह प्रेशर हॉर्न है, जो अब फैशन बन कर रह गया है. मुख्य सड़कों की तो छोड़िये बाजार और गली-कूचे में भी प्रेशर हॉर्न का प्रयोग आम हो गया है. इस वजह से आम लोग परेशान हैं. चिंता की बात यह है कि प्रेशर हॉर्न स्टेटस सिंबल बनता जा रहा है. अब तक प्रेशर हॉर्न का इस्तेमाल ट्रक और बसों में हुआ करता था, लेकिन अब इसका इस्तेमाल अब छोटे वाहनों में भी होने लगा है. विडंबना यह है कि परिवहन विभाग कभी प्रेशर हॉर्न के खिलाफ अभियान चलाना जरूरी नहीं समझता है. लिहाजा वाहन चालक बेलगाम हैं और ध्वनि प्रदूषण के बीच लोग सांस लेने के लिए लोग मजबूर हैं.
प्रेशर हॉर्न की चपेट में दोपिहया वाहन : प्रेशर हॉर्न का क्रेज कुछ ऐसा बढ़ा हुआ है कि कल तक ऐसे हॉर्न केवल बस और ट्रक में इस्तेमाल होते थे, जो अब ऑटो और दो पहिया वाहन में भी होने लगे हैं. हालांकि परिवहन नियम के अनुसार बस और ट्रक में भी प्रेशर हॉर्न का इस्तेमाल वर्जित है. प्रेशर हॉर्न के इस्तेमाल से न केवल श्रवण शक्ति प्रभावित हो रही है, बल्कि दिल के मरीजों के लिए भी यह काफी नुकसानदेह है. दरअसल काफी नजदीक आकर वाहन चालक जब अचानक प्रेशर हॉर्न बजाते हैं तो इस वजह से अधिकांश छोटे वाहन चालक अपना संतुलन खो देते हैं और यह दुर्घटना का कारण बनता है.
विभाग के पास नहीं है जांच की व्यवस्था : प्रेशर हॉर्न के मामले में पुलिस और विभाग दोनों खामोश रहती है. दरअसल इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि प्रेशर हॉर्न की जांच के लिए परिवहन विभाग अथवा ट्रैफिक पुलिस के पास कोई मुकम्मल व्यवस्था नहीं है. जानकार बताते हैं कि प्रेशर हॉर्न के स्तर का संबंध ध्वनि की तीव्रता से है. ध्वनि की तीव्रता मापने के लिए विभाग के पास एक विशेष उपकरण होना चाहिए, जो बहरहाल उपलब्ध नहीं है. इसलिए प्रेशर हॉर्न की जांच नहीं की जाती है. वहीं प्रेशर हॉर्न का इस्तेमाल करने पर 500 रूपये जुर्माना का प्रावधान है, लेकिन जांच के अभाव में जुर्माना की बात बेमानी है.
स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है प्रेशर हॉर्न
बताया जाता है कि कान के लिए 20 डेसीवल से अधिक की ध्वनि खतरनाक होती है. वहीं प्रेशर हॉर्न की तीव्रता 120 डेसीवल से अधिक होती है. इतनी अधिक ध्वनि की तीव्रता से कान के परदा पर असर पड़ सकता है. प्रेशर हॉर्न की वजह से कई लोगों को सिर में दर्द भी आरंभ हो जाता है और इसके शोर से जी भी मिचलाने लगता है. जबकि हृदय रोगियों के लिए यह खतरनाक माना जाता है. चिकित्सकों के अनुसार 85 डेसीवल से अधिक की ध्वनि की स्थिति में यादाश्त कम होना और चिड़चिड़ापन आम बात है. लेकिन परिवहन विभाग को आम बात की स्वास्थ्य की कोई परवाह नहीं है.
बड़े वाहनों में प्रेशर हॉर्न के खिलाफ बीच-बीच में विभाग द्वारा कार्रवाई की जाती है. छोटे वाहनों के बारे में मामला संज्ञान में आया है तो आगे जांच कर कार्रवाई की जायेगी. यह सच है कि विभाग के पास ध्वनि की तीव्रता मापने का यंत्र नहीं है, लेकिन अंदाज के आधार पर और प्रेशर हॉर्न के हिसाब से इसका उपयोग करने वाले के खिलाफ कार्रवाई की जाती है.
मनोज कुमार शाही, डीटीओ, पूर्णिया

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