वाशिंगटन: विश्व बैंक के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री कौशिक बसु ने कहा है कि भारत की वृद्धि दर में गिरावट काफी चिंता की बात है. उन्होंने कहा कि देश को नोटबंदी की ‘भारी कीमत ‘ चुकानी पड़ी है. चालू वित्त वर्ष की पहली अप्रैल-जून की तिमाही में देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर तीन साल के निचले स्तर 5.7 फीसदी पर आ गयी है.
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विनिर्माण क्षेत्र में गिरावट और नोटबंदी के असर से वृद्धि दर घटी है. बसु ने कहा कि वृद्धि दर में गिरावट काफी चिंता का विषय है. मुझे पता था कि नोटबंदी से देश की अर्थव्यवस्था को बड़ा नकारात्मक झटका लगेगा और वृद्धि दर छह फीसदी से नीचे आ जायेगी. 5.7 फीसदी की वृद्धि दर मेरे अनुमान से भी कम है.
बसु ने कहा कि 2003 से 2011 के दौरान भारत की वृद्धि दर सालाना आठ फीसदी से ऊपर रही है. 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के समय भी यह कुछ समय के लिए 6.8 फीसदी पर आयी थी, लेकिन आठ फीसदी भारत में नया नियम बन चुका है. उन्होंने कहा किकच्चे तेल के दाम निचले स्तर पर हैं. भारत को अब चीन की जगह मिल रही है.
उन्होंने कहा कि ऐसे में हमारी वृद्धि दर आठ फीसदी से ऊपर होनी चाहिए थी. ऐसे में पहली तिमाही की 5.7 फीसदी की वृद्धि का मतलब है कि हमने नोटबंदी की वजह इसमें 2.3 फीसदी गंवाया है. यह काफी भारी कीमत है. बसु ने कहा कि नोटबंदी की गलती तथा निर्यात क्षेत्र के अपर्याप्त प्रदर्शन का मतलब है कि कुल प्रदर्शन निराशाजनक रहेगा. इन गलतियों को सुधारा जा सकता है.
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