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डेढ़ सौ परिवारों ने छोड़ दिया इलाका

देवघर : मोहनपुर थाना क्षेत्र बिहार-झारखंड की सीमा पर रढ़िया व बीचगढ़ा पंचायत के 18 गांवों में भय व असुरक्षा का माहौल है. पिछले 10 वर्षों के दौरान भय व असुरक्षा की वजह से 18 गांवों के करीब डेढ़ सौ परिवारों गांव छोड़ दिया है. ये परिवार अब देवघर शहर के विभिन्न मुहल्लों में रहते […]

देवघर : मोहनपुर थाना क्षेत्र बिहार-झारखंड की सीमा पर रढ़िया व बीचगढ़ा पंचायत के 18 गांवों में भय व असुरक्षा का माहौल है. पिछले 10 वर्षों के दौरान भय व असुरक्षा की वजह से 18 गांवों के करीब डेढ़ सौ परिवारों गांव छोड़ दिया है. ये परिवार अब देवघर शहर के विभिन्न मुहल्लों में रहते हैं. कोई किराये का मकान लेकर तो कोई घर बनाकर शहर में रहता है. जिन गांवों में भय व असुरक्षा का माहौल है, उसमें रढ़िया, पिपरा, त्रिघुना, जीतमहला, मचना, गौरा, पंडरिया, दुमदुमियां, तिलैया, सलैया, रक्सा, गजंडा, बैजूबसार, कुशमाहा, धुरेंद्रपुर, कुसुमडीह, बीचगढ़ा, बेहंगा अदि शामिल हैं.

घर छोड़ने की वजह बढ़ता अपराध, लूट व नक्सल गतिविधियां हैं. पूर्व पंचायत समिति सदस्य शैलेंद्र यादव की हत्या ने एक बार फिर लोगों को सहमा दिया है. रढ़िया इलाके में 2007 से नक्सल गतिविधियों की धमक हुई. दर्जनों बार पोस्टरबाजी कर स्कूल व ठेकेदारी में लेवी मांगने की घटना हुई. बिहार का मार्ग होने की वजह से पहले भी सड़क पर दिन-दहाड़े बाइक लूट, फायरिंग, बमकांड व छिनतई की घटनाएं होती रही हैंं. जो लोग खेती से जुड़े हैं, वे जरूरत पड़ने पर सुबह गांव आकर खेत में काम कराकर शाम ढलने से पहले वापस शहर लौट जाते हैं.
2009 में हुई पहली पुलिस-नक्सली मुठभेड़: 25 जनवरी 2009 को चांदन नदी के उस पार तिलैया पहाड़ी में पुलिस-नक्सली मुठभेड़ में कथित नक्सली एरिया कमांडर राजेश मांझी मारा गया. उसके बाद से लोगाें में भय फैलता गया. जनता में भय का माहौल खत्म करने के लिए पुलिस का पैदल मार्च भी इन सभी प्रभावित गांवों में दर्जनों बार हुआ. आइजी, डीआइजी, डीसी व एसपी से लेकर प्रखंडव स्तर तक के पुलिस-प्रशासन का कई बार जनता दरबार लगाया गया, ताकि लोगों में डर न रहे. लेकिन इलाके में भय बरकरार रहा.
शैलेंद्र यादव की हत्या कर अपराधियों ने फिर दर्ज करायी उपस्थिति
सुकदेव की हत्या के बाद तेजी से खाली हुए गांव
2012 में बीचगढ़ा के मुखिया पति सुकेदव महतो की सरेशाम शुक्राहाट के पास बम मारकर हत्या कर दी गयी. इस कांड पूरा से इलाका थर्रा गया. इस घटना के बाद से तेजी से इस इलाके के लोग गांव छोड़ने लगे. ग्रामीणों को लगने लगा कि जब साहसी व्यक्ति सुकदेव महतो की हत्या हो सकती है तो अपराधी किसी को भी निशाना बना सकते हैं.
कभी रढ़िया में था देना बैंक, अब बलसरा में शिफ्ट
कहा जाता है कि इस इलाके का वातावरण कभी बिल्कुल शांत था, देर रात तक लोग काम कर देवघर से अपने गांव तक साइिकल से लौट जाते थे, 20 वर्ष पहले यहां अपराध व नक्सल गतिविधियां नहीं थीं. जिले का एकमात्र देना बैंक की शाखा रढ़िया गांव में चलती थी. उस समय देना बैंक नियमित ढंग से चलता था, जब देवघर से रढ़िया गांव तक जाने के लिए पक्की सड़क तक नहीं थी. बगैर किसी सुरक्षा के इस बैंक में लेन-देन के लिए लोगों की कतार लगी रहती थी. बैंक के मैनेजर से लेकर कर्मी तक राेज आना-जाना करते थे. कभी कोई बैंक लूट व अन्य वारदात नहीं हुई. लेकिन पिछले 10 वर्षों में बढ़ते अपराध व नक्सल गतिविधियों से देना बैंक की शाखा रढ़िया से हटाकर शहर के नजदीक बलसरा में शिफ्ट कर दी गयी.
कुशमाहा तो पूरी तरह खाली हो गया
रढ़िया पंचायत के कुशमाहा गांव में तो भय, असुरक्षा व विकास नहीं होने की वजह से तीन वर्षों के दौरान पूरी तरह खाली हो गया है. कुशमाहा गांव खंडहर में तब्दील हो चुका है. इस गांव के लोग शहर में पूरी तरह शिफ्ट कर चुके हैं. अब ग्रामीणों को वापस गांव में लाने की दिशा में सड़क समेत अन्य कार्य शुरू हो रहे हैं.
पुलिस अभिरक्षा में करना पड़ा काम
विकास में पिछड़े रढ़िया के नक्सल इलाके के फंड से 2011-12 में सड़क व पुलिया निर्माण का कार्य चालू हुआ. नक्सलियों के लेवी मांगने की वजह से पुलिस की अभिरक्षा में कई दिनों तक काम हुआ. काफी दिनों तक कई स्कूलों का काम बंद रहता था.
अब दियारा की तर्ज पर बालू घाट की वर्चस्व की लड़ाई
जब से बालू की कमी हुई है, तब से चांदन नदी के बालू घाट का महत्व बढ़ गया है. चूंकि चांदन नदी बिल्कुल बिहार सीमा से सटी हुई है, इसलिए बालू घाटों के बर्चस्व की लड़ाई बिहार की बड़ी नदियों के दियारों की तर्ज पर चांदन नदी में भी शुरू हो गयी है. शैलेंद्र यादव की हत्या भी बालू के वर्चस्व की लड़ाई में सामने आ रही है. अब अपराधियाें का केंद्र बालू घाट भी हो गये हैं.

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