खंडपीठ ने सरकार को बिंदुवार व विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया. खंडपीठ ने कहा कि स्टेट ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल (एसबीटीसी) की सात अक्तूबर 2014 को बैठक हुई थी, जिसमें यह निर्णय लिया गया था कि ब्लड स्टॉक की जांच ड्रग्स अॉथोरिटी द्वारा प्रत्येक माह की जायेगी. जांच रिपोर्ट काउंसिल को भेजी जायेगी.
सरकार से पूछा कि क्या यह जांच नियमित तरीके से प्रत्येक माह की जा रही है. ब्लड डोनेशन कैंप लगाया जाता है. कैंप लगाने के पूर्व संबंधित अॉथोरिटी को सूचना दी जाती है या नहीं. ब्लड डोनेट करनेवालों का डाटा रखा जाता है क्या, ताकि उनके ग्र्रुप व डोनर की जानकारी मिल पाये. कैंप में एकत्रित ब्लड की जांच होती है या नहीं. जांच रिपोर्ट डोनर के साथ-साथ अॉथोरिटी को भेजा जाता है या नहीं. यदि जांच में कोई गंभीर बीमारी का पता चलता है, तो उसकी सूचना संबंधित डोनर व अॉथोरिटी को दी जाती है या नहीं. बीमारी पकड़ में आने पर उसके इलाज के लिए सरकार क्या कार्रवाई करती है. इस तरह के कितने मामले सरकार के पास आये हैं आैर उसमें क्या कदम उठाये गये. कोर्ट ने सरकार से यह भी जानना चाहा कि ब्लड बैंक को लाइसेंस देने की क्या अर्हता है तथा मानक का उल्लंघन करने पर सजा का क्या प्रावधान किया गया है. खंडपीठ ने राज्य सरकार को शपथ पत्र दायर करने के लिए समय देते हुए मामले की सुनवाई दो सप्ताह के लिए स्थगित कर दी. उल्लेखनीय है कि प्रार्थी अतुल गेरा ने जनहित याचिका दायर की है.