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रोहित-बुमराह की चर्चा तो हो रही लेकिन धौनी की पारी को क्यों भूल गये

-अनुज सिन्हा- रविवार को भारत ने श्रीलंका को हराया और वनडे सीरिज भी जीत ली. चारों ओर रोहित और बुमराह की पारी चर्चा हो रही है. बेस्ट फिनिशर धौनी को श्रेय नहीं मिल रहा. इसमें कोई शक नहीं कि रोहित शर्मा ने शानदार पारी खेली, नाबाद शतक जमाया और जीत के हीरो भी रहे. बुमराह […]

-अनुज सिन्हा-

रविवार को भारत ने श्रीलंका को हराया और वनडे सीरिज भी जीत ली. चारों ओर रोहित और बुमराह की पारी चर्चा हो रही है. बेस्ट फिनिशर धौनी को श्रेय नहीं मिल रहा. इसमें कोई शक नहीं कि रोहित शर्मा ने शानदार पारी खेली, नाबाद शतक जमाया और जीत के हीरो भी रहे. बुमराह ने भी पांच विकेट लेकर श्रीलंका की पारी को ध्वस्त किया लेकिन धौनी की पारी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. इस साल टीम इंडिया में बड़ा परिवर्तन हो चुका है. धौनी अब टेस्ट के साथ-साथ वनडे के भी कप्तान नहीं हैं. कुंबले अब कोच नहीं हैं. रवि शास्त्री को यह जिम्मेवारी मिली है. पुराने और सीनियर खिलाड़ी अब सीन से बाहर होते जा रहे हैं. सारा फोकस अब अगले वर्ल्ड कप की ओर है.

नये कोच शास्त्री के चयन का तरीका अलग है. ऐसे में नहीं लगता कि युवराज सिंह को अब मौका मिलनेवाला है. बीच में जैसा माहौल बना था, जो स्थिति बनी थी, उससे तो लग रहा था कि कहीं एमएस धौनी को भी वर्ल्ड कप के पहले किनारे न कर दिया जाये, बहाना होता बल्लेबाजी. इसके लिए भूमिका भी बन रही थी. लेकिन कप्तानी छोड़ने के बाद धौनी ने बल्ले से भी बेहतरीन प्रदर्शन कर यह साबित कर दिया है कि अब भी वे (धौनी) भारत के श्रेष्ठ विकेटकीपर-बल्लेबाज हैं. अगर श्रीलंका के खिलाफ दूसरे और तीसरे वनडे मैच की बात करें तो ये दोनों मैच भारत इसलिए जीत पाया क्योंकि धौनी ने बेहतरीन बल्लेबाजी की. विकेटकीपिंग में आज भी धौनी की फुर्ती और क्लास का कोई जवाब नहीं. ठीक है उम्र बढ़ रही है लेकिन धौनी का फिटनेस आज भी युवा खिलाड़ियों जैसा ही है. इसलिए धौनी की इन दोनों पारियों का खास महत्व है. खास कर उनके क्रिकेट कैरियर को लेकर.

हालांकि वर्ल्ड कप में अभी लगभग डेढ़-दो साल है, भारत को काफी मैच खेलने हैं, इसलिए इतना पहले कुछ कहना मुश्किल है. पर इतना तो कहा जा सकता है कि धौनी को किनारे करना किसी के लिए आसान नहीं होगा. इस साल जनवरी में एमएस धौनी ने वनडे की कप्तानी छोड़ी थी. कोहली कप्तान बने थे. कप्तानी छोड़ने के बाद धौनी अब बगैर दबाव के खेल रहे हैं और यह खेल में दिख भी रहा है. हालांकि जब धौनी कप्तान थे, तब भी किसी को पता नहीं चलता था कि धौनी पर कोई दबाव है. यही तो धौनी की खासियत है. कप्तानी छोड़ने के बाद धौनी ने इस साल 11 वनडे मैच खेले हैं और इनमें से पांच में तो उन्हें बल्लेबाजी के लिए उतरना भी नहीं पड़ा.

बाकी छह मैच में धौनी ने बल्लेबाजी की, विकेट पर जम गये. ऐसे जमे कि छह मैचों में पांच में धौनी को कोई आउट नहीं कर सका. पिछली चार पारियों (जिसमें धौनी ने बल्लेबाजी की) में धौनी का स्कोर है-78 (नाबाद), 54, 45 (नाबाद) और 67 (नाबाद). ये आंकड़े बताते हैं कि धौनी में दम अभी भी है. हां, अब खेल का तरीका कुछ बदल जरूर गया है. श्रीलंका के खिलाफ अभी दो और मैच खेलना बाकी है. अगला मैच धौनी का 300वां मैच होगा. किसी भी खिलाड़ी के लिए 300 वनडे खेलना एक बड़ी उपलब्धि है. यह इतिहास धौनी बनाने जा रहे हैं.

फिर उसी बात पर धौनी के पिछले दोनों मैच (दूसरा और तीसरा वनडे) को कम नहीं आंका जाना चाहिए. दूसरा वनडे भारत हार ही गया था अगर धौनी नहीं चलते और भुवनेश्वर कुमार ने साथ नहीं दिया होता. 131 रन पहुंचते-पहुंचते सारे दिग्गज आउट होकर पैवेलियन में थे. सात विकेट गिर चुके थे. ऐसे नाजुक मौके पर सौ रन की साझेदारी कर धौनी ने मैच जिताया. अगला मैच यानी तीसरा वनडे भी फंस चुका था. बनाने थे 218 रन. छोटा लक्ष्य,लेकिन चार विकेट 61 पर साफ. सिर्फ रोहित चले.

इस मैच में अगर धौनी नहीं चले होते, साथ नहीं दिया होता तो मैच भारत के हाथ से निकल चुका था. ठंडे दिमाग से योजनाबद्ध तरीके से खेलते हुए धौनी ने रोहित (124 रन) का साथ दिया और नाबाद 67 रन बनाये. इसलिए धौनी की हाल की पारी को अगले वर्ल्ड कप से जोड़ कर देखा जाना चाहिए. ठीक है ऋषि पंत युवा और होनहार खिलाड़ी हैं लेकिन उन्हें और समय चाहिए. यह समय वर्ल्ड कप के बाद भी आ सकता है.

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