नयी दिल्ली : भारत के सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को ऐतिहासिक फैसला देते हुए मुसलिम समुदाय में महिलाओं को दिये जाने वाले तीन तलाक पर प्रतिबंध लगा दिया है और केंद्र सरकार को इस संबंध में कानून बनाने का निर्देश दिया है. इस फैसले की दुनिया भर में चर्चा है और दुनिया के प्रमुख मीडिया संस्थानों ने प्रमुखता से इस पर खबरें लिखी हैं. हमारे पड़ोसी पाकिस्तान, अमेरिका सहित अन्य देशों के मीडिया का इस मुद्दे पर क्या नजरिया है यह जानना जरूरी है.
पाकिस्तान के प्रतिष्ठित अंगरेजी अखबार द डॉन ने खबर लिखी है कि भारत के सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की खंडपीठ ने तीन-दो के बहुमत से तीन तलाक पर रोक लगा दिया है. भारत के जजों की पीठ में हिंदू, मुसलिम, ईसाई, सिख व पारसी जज थे. डॉन ने लिखा है कि मुसलिम पुरुषों द्वारा अपनी पत्नी को दिये जाने वाले तलाक को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक व गैर इस्लामिक बताया है. इस मुकदमे को लड़ने वाली महिला शायरा बानो का भी अखबार ने जिक्र किया है कि कैसे वह अपने परिवार के टूटने सेदुखी थीं. अखबार ने लिखा है कि धर्मनिरपेक्ष भारत में इस तरह की व्यवस्था थी, जो पड़ोसी बांग्लादेश में प्रतिबंधित है. अखबार ने लिखा है कि मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी लंबे समय से सामान नागरिक संहिता को लागू करने की बात कर रही है.
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अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी इस खबर को जगह दी है. अखबार ने लिखा है कि भारत में अब मुसलिम पुरुषों के लिए तलाक शब्द तीन बार कह कर पत्नी को छोड़ना आसान नहीं होगा. न्यूयॉक टाइम्स ने लिखा है कि सत्ताधारी हिंदुत्ववादी भारतीय जनता पार्टी इसके लिए लंबे समय से जिरह करती रही है. वह इस मुद्दे पर मुसलिम महिलाओं का समर्थन करती रही है. अखबार ने इसे कुछ मुसलिम संंगठनों के लिए एक झटका बताया है.
एक और प्रमुख अखबार वाशिंगटन पोस्ट ने भी इस खबर को प्रमुखता से प्रस्तुत करते हुए लिखा है कि भारत में इ-मेल, टैक्स्ट या फेसबुक के जरिये तलाक, तलाक, तलाक कह कर मुसलिम पुरुष अपनी पत्नी को तलाक नहीं दे सकेंगे. अखबार ने लिखा है कि भारत की कुल आबादी में आठ प्रतिशत आबादी मुसलिम महिलाओं की है, जो असामान्य रूप से गरीब हैं और हिंसा झेलती हैं. अखबार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ऐतिहासिक बताया है, लेकिन सवाल उठाया है इसे हटाने में इतना लंबा समय क्यों लगा. अखबार ने लिखा है कि भारत का संविधान लिंग के आधार पर भेदभाव की अनुमति नहीं देता है, लेकिन तीन तलाक तो लैंगिक आधार पर किया जाने वाला भेदभाव ही रहा है.