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वैज्ञानिक आचरण से ही खत्म होगा अंधविश्वास

अमिताभ पांडेय महिलाओं के चोटी काटने की अफवाह राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली से फैलकर अन्य राज्यों के सुदूर इलाकों तक पहुंच गयी है. इस अफवाह की वजह से झारखंड में एक महिला की पीट-पीट कर हत्या कर दी गयी. किसी और निर्दोष की जान न जाये, इस इरादे से प्रभात खबर आज से अभियान शुरू […]

अमिताभ पांडेय

महिलाओं के चोटी काटने की अफवाह राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली से फैलकर अन्य राज्यों के सुदूर इलाकों तक पहुंच गयी है. इस अफवाह की वजह से झारखंड में एक महिला की पीट-पीट कर हत्या कर दी गयी. किसी और निर्दोष की जान न जाये, इस इरादे से प्रभात खबर आज से अभियान शुरू कर रहा है. आज इसकी पहली कड़ी.

इंसान का दिमाग एक विचित्र-सी चीज है. हम जो कुछ भी देखते-समझते हैं, इसमें काफी सारे पेच होते हैं, जो देखने-समझने से जुड़े आचरण का निर्माण करते हैं. काफी अरसे से हमारे दिमाग में अंधविश्वासों का पुलिंदा भरा हुआ है. यही वजह है कि आज विज्ञान का युग होने के बावजूद भी हमारे समाज में अंधविश्वास हावी है. साल-दो-साल या पांच-दस साल में अजीब सी कोई चीज या घटना आ ही जाती है, जो हमारे जनमानस के अंधविश्वास को बढ़ा देती है. कभी मुंहनोचवा तो कभी चोटीकटवा की घटनाएं उसी अंधविश्वास का परिणाम हैं.

इन सबके पीछे गहरे स्तर पर सामाजिक परिस्थितियां क्या होती हैं, इसके लिए राजनीतिक परिस्थितियां कितनी जिम्मेदार हैं, अंधविश्वास का अस्तित्व क्या है, इसमें किसी व्यक्ति या समूह की कितनी शरारत है, इन सब पर एक अध्ययन की जरूरत है, क्योंकि ऐसी घटनाआें के होने के ठोस कारणों के बारे में कुछ कह पाना उचित नहीं होगा. हम आज विज्ञान और तकनीक के मामले में तरक्की के रास्ते पर हैं.

विज्ञान ने बहुत से गंभीर रहस्यों को खोज निकाला है, फिर भी समाज में अंधविश्वास हावी दिखता है. इसकी वजह यही है कि हम वैज्ञानिक तरीके से पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं. इसमें हमारी शिक्षा व्यवस्था और समाज की खामी है कि वह अपने बच्चों को वैज्ञानिक शिक्षा नहीं दे पा रहे हैं. दरअसल, हम विज्ञान और तकनीक की चकाचौंध को स्वीकार तो करते हैं, लेकिन खुद वैज्ञानिक तरीके से अपनी जिंदगी नहीं गुजारते. वैज्ञानिकता का हमारा स्तर बढ़ नहीं पाता है. यही वजह है कि कभी-कभार हमारे समाज में चोटीकटवा जैसी घटनाएं समाज की दशा और दिशा को प्रभावित करने लगती हैं.

फिर चाहे जमीन में गड़ी मूर्ति अचानक प्रकट हो जाती है या फिर अचानक किसी और जगह मूर्ति पैदा हो जाती है. उसके बाद तो वहां धीरे-धीरे चबूतरा बन जाता है, जो आगे चलकर देवस्थान का रूप धारण कर लेता है. इसी बीच समाज की कुछ शक्तियां इसे बाजार में परिवर्तित कर देती हैं, और लोगों की भोली-भाली संवेदनाओं से खेलने लगती हैं.

जहां तक इसको बढ़ाने में धर्म और आस्था का हाथ होने का सवाल है, तो धर्म की आड़ में अंधविश्वास को फैलाने में काफी मदद मिलती है.

चूंकि धर्म और आस्था पर सवाल नहीं उठाया जा सकता और न ही उसका विरोध किया जा सकता है, इसलिए धर्म की आड़ में अंधविश्वास को बढ़ावा मिलने लगता है. हमारे समाज में ऐसी स्थिति न पनपने पाये, इसके लिए बेहद जरूरी है कि शिक्षा व्यवस्था को वैज्ञानिक पद्धति वाला बनाया जाये, ताकि लोग जीवन में वैज्ञानिक आचरण करने लगें. वैज्ञानिक आचरण ही अंधविश्वास को खत्म कर सकता है. हमारे संविधान में यह दर्ज है कि हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनायें.

इसलिए जरूरी है कि अपने कर्तव्यों का वैज्ञानिक आचरण के साथ पालन करें. जब ऐसा नहीं हो पाता है, तभी हम भ्रम में आकर अंधविश्वासों पर यकीन कर लेते हैं और अंधविश्वासों के बाजार का शिकार हो जाते हैं. समाज से अंधविश्वासों को दूर करना है, तो शिक्षा व्यवस्था को वैज्ञानिक शिक्षा के रास्ते आगे बढ़ाना होगा.

(लेखक साइंस कम्युनिकेटर हैं.)

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