नयी दिल्लीः इंफोसिस के मुख्यकार्यकारी अधिकारी (सीर्इआे) आैर प्रबंध निदेशक (एमडी) के पद से विशाल सिक्का ने इस्तीफा दे दिया है. कंपनी ने शेयर बाजारों को दी गयी जानकारी में इस बात की पुष्टि करते हुए कहा है कि उन्हें कंपनी की आेर से पदोन्नत करके कार्यकारी उपाध्यक्ष बना दिया गया है, लेकिन इस बीच एक बड़ा सवाल पैदा होता है. वह यह कि क्या विशाल सिक्का को पदोन्नत करके कार्यकारी उपाध्यक्ष करने के बाद कंपनी के प्रवर्तकों आैर उसके प्रबंधन के बीच चल रहे आपसी मतभेद खत्म हो जायेंगे?
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इसका अहम कारण यह है कि कंपनी के प्रवर्तकों में प्रमुख एनआर नारायण मूर्ति पिछले साल के अक्तूबर महीने से ही विशाल सिक्का के खिलाफ बिगुल बजाये हुए हैं. हालांकि, यह बात दीगर है कि जिस समय विशाल सिक्का ने कंपनी के कार्यकारी अधिकारी के तौर पर काम करना शुरू किया था, तब कंपनी के इन्हीं प्रवर्तकों ने अपने भागीदारों, निवेशकों, ऋणदाताआें के सामने विशाल सिक्का का मतलब More money के तौर पर समझाते हुए भव्य स्वागत किया था.
दरअसल, कंपनी में कामकाज की संस्कृति में बदलाव, वेतन वृद्धि, नौकरी छोड़नेवाले कर्मचारियों की बढ़ती तादाद, कंपनी छोड़नेवालों को दिये जानेवाले मुआवजे (सेवरेंस पे) आदि को लेकर कंपनी के प्रवर्तक लगातार आवाज बुलंद करते रहे हैं. खासकर, कंपनी के सह-संस्थापक एनआर नारायणमूर्ति इन मुद्दों पर काफी मुखर रहे. कंपनी के पूर्व सीएफओ राजीव बंसल को मिले सेवरेंस पे पर उन्होंने गहरी आपत्ति जतायी है. फिलहाल, विशाल सिक्का ने अपने इस्तीफे में अच्छे काम को लगातार नजरअंदाज करने का आरोप लगाया. उन्होंने अपने पत्र में यह लिखा है कि काम में लगातार रुकावट डाली जा रही थी.
गौरतलब है कि देश के आईटी क्षेत्र की दिग्गज कंपनी इन्फोसिस के प्रवर्तकों में शामिल एनआर नारायण मूर्ति, क्रिस गोपालकृष्णन और नंदन निलेकणी आदि ने कंपनी के बोर्ड के सामने इसके प्रशासनिक खामियों और कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी विशाल सिक्का को मिल रहे सालाना पैकेज के मुद्दे को इस साल की फरवरी से ही उठाना शुरू कर दिया था. उस समय कहा यह जा रहा था कि कंपनी के प्रवर्तकों ने बोर्ड के सामने विशाल सिक्का को मिलने वाले सालाना पैकेज की तुलना कंपनी के पूर्व दो अधिकारियों राजीव बंसल और डेविड कनेडी को मिलने वाले पैकेज से करते हुए सवाल खड़ा किया था.
मीडिया में आ चुकी खबरों के अनुसार, इस साल की फरवरी मे ही इन्फोसिस के प्रवर्तकों ने कंपनी के प्रशासनिक खामियों के मुद्दे को उठाने के साथ ही इसके मुख्य कार्यकारी अधिकारी विशाल सिक्का को दिये जाने वाले सालाना पैकेज के मामले पर भी चिंता जाहिर की थी. इसके साथ ही उन्होंने कंपनी के पूर्व मुख्य वित्त अधिकारी राजीव बंसल और जेनरल काउंसल डेविड कनेडी को वेतन के तौर पर दिये जाने वाले सालाना पैकेज पर भी सवाल उठाये थे.
समाचार चैनल सीएनबीसी-टीवी 18 की मानें, तो उसने फरवरी में ही कंपनी से इस बाबत सवाल पूछे थे, जिसके के जवाब में इन्फोसिस ने कहा था कि इस तरह के फैसले कंपनी के समग्र हित को देखते हुए लिये गये हैं. इन्फोसिस ने अपने जवाब में कहा था कि उसे कंपनी के कार्यों का मूल्यांकन करने वाले प्रवर्तकों और विभिन्न शेयरधारकों की ओर से दिये गये सुझाव को प्राप्त कर लिया है. इसके साथ ही, कंपनी हमेशा अपने सभी शेयरधारकों के हित में दिशा-निर्देश जारी करती रहेगी.
यहां यह बता देना भी जरूरी है कि अक्तूबर, 2016 में इन्फोसिस ने कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी विशाल सिक्का के वेतन-भत्तों के रूप में वर्ष 2011 तक मिलने वाले सालाना पैकेज को बढ़ाकर करीब 20 मिलियन डॉलर कर दिया था. इसमें उन्हें 11 मिलियन डॉलर प्रोत्साहन राशि के तौर पर दी जाती है, जबकि वेतन के रूप में उन्हें तीन मिलियन डॉलर सालाना और करीब आठ मिलियन डॉलर कंपनी के लक्ष्य को प्राप्त करने पर दिये जाते रहेंगे.
कंपनी के सूत्रों की मानें, तो अक्तूबर, 2015 में कंपनी के मुख्य वित्त अधिकारी के कार्यभार से त्यागपत्र देकर इंफोसिस छोड़ने वाले राजीव बंसल को कंपनी की ओर से करीब 17.38 करोड़ रुपये का सालाना पैकेज दिया गया था. वहीं, दिसंबर में कंपनी छोड़ने वाले इन्फोसिस के मुख्य अनुपालन अधिकारी डेविड कनेडी को 8,68,250 डॉलर सालाना पैकेज दिया गया था.
अब जबकि विशाल सिक्का ने कंपनी के सीर्इआे के पद से इस्तीफा दे दिया है आैर उन्हें कंपनी की आेर से कार्यकारी निदेशक बनाया है, तब क्या कंपनी में काम की संस्कृति आैर वेतन पैकेज के मसले को लेकर चल रहे कंपनी के प्रवर्तकों के आपसी मतभेद खत्म हो जायेंगे?
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