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अपने कलम से लिखी अपनी किस्मत की इबारत
जब डॉक्टर बनने का सपना न हो सका पूरा, तो अपने लेखन के शौक को ही बना लिया रोजगार का जरिया. आज अपनी लिखी कविता-कहानियों के जरिये औरतों के दर्द को करती है बयां. अब तक तीन किताबें भी करवा चुकीं प्रकाशित. बच्चों में खुद को ढूंढ़ रही हूं कि काश एक बार फिर बच्ची […]
जब डॉक्टर बनने का सपना न हो सका पूरा, तो अपने लेखन के शौक को ही बना लिया रोजगार का जरिया. आज अपनी लिखी कविता-कहानियों के जरिये औरतों के दर्द को करती है बयां. अब तक तीन किताबें भी करवा चुकीं प्रकाशित.
बच्चों में खुद को ढूंढ़ रही हूं कि काश एक बार फिर बच्ची बन जाती और अपने सपने को पूरे कर पाती. लेकिन समय की धारा तो काफी आगे निकल चुकी है. वह वापस नहीं आ सकती…” अकसर निवेदिता अपनी रची कविता की ये पंक्तियां पढ़कर सोचती हैं कि बीता समय तो वापस नहीं आ सकता, इसलिए जो समय है, उसका ही सदुपयोग करते हुए आगे बढ़ा जाये.
शादी के बाद परिवार और बच्चों में ऐसी उलझी कि डॉक्टर बनने का सपना पीछे छूट गया, मगर बचपन से निवेदिता को लिखने-पढ़ने का बेहद शौक था. तब लेखनी को ही अपना हथियार बना कर अपनी किसमत की इबारत लिखने लगीं. अब तक उनकी कई किताबें, सैकड़ों कविताएं और कहानियां प्रकाशित हो चुकी हैं. निवेदिता बताती हैं कि ”अपने सपने से दूर होने के बाद मैंने अपने शौक को ही अपना कैरियर बना लिया. मुझे लगा यही एक माध्यम है, जिससे मैं अपनी भावनाओं बेहतर तरीके से अभिव्यक्त कर सकती हूं.”
डिग्री नहीं, शौक ने दिया रोजगार
निवेदिता पांचवी क्लास में थीं, तो सरकार की तरफ स्कॉलरशिप मिला, लेकिन पिता ने स्कॉलरशिप पर पढ़ाई करने की अनुमति नहीं दी, क्योंकि उन्हें आदिवासी हॉस्टल में रहना पड़ता. इसके लिए वे तैयार नहीं थे. तब उन्होंने घर से ही अपनी पढ़ाई की. फर्स्ट डिवीजन से 10वीं की परीक्षा पास की. पिताजी फॉरेस्ट डिपार्टमेंट में थे. कॉलेज घर से आठ किलोमीटर दूर था. इस वजह से नियमित कॉलेज जाना नहीं हो पाता था. इसका असर पढ़ाई पर पड़ा. अच्छे अंक नहीं आये.
मनोविज्ञान से स्नातक किया. फिर आगे पत्रकारिता की पढ़ाई की. निवेदिता मनोविज्ञान और पत्रकारिता के क्षेत्र में कैरियर बनाना चाहती थी, पर कुछ ही महीनों बाद शादी हो गयी. ससुराल में घर की बहू-बेटियों को घर से बाहर जाकर नौकरी करने की अनुमति नहीं थी. इन सब कारणों से कई वर्षों तक कैरियर रुक-सी गयी.
लिख चुकीं तीन किताबें और सैकड़ों कविताएं
निवेदिता तीन पुस्तकें लिख चुकी हैं. सैकड़ों कविताएं और कहानियां भी लिखी हैं. निवेदिता बताती हैं- ”अभी तक मेरी तीन किताबे प्रकाशित हो चुकी हैं. मनोविज्ञान विषय के 15 सांझा संग्रह भी लिख चुकी हूं.”
आज न केवल अपने शौक को, बल्कि अपनी शैक्षणिक डिग्रियों का भी बखूबी उपयोग कर रही हैं. वह कहती हैं- ”मेडिकल की पढ़ाई की, पर डॉक्टर नहीं बन पायी. मनोविज्ञान की पढ़ाई की, पर मनोवैज्ञानिक नहीं बन सकी. हां, आज मनोविज्ञान विषय पर किताबें जरूर लिख रही हूं. हां, जीवन की उलझनों में खुद ही ऐसी उलझी रही कि उन किताबों को अब तक खुद भी ठीक तरह से पढ़ने का मौका नहीं निकाल पायी हूं.”
कभी नहीं जिंदगी से हारी
कभी पति और परिवार पर निर्भर रहनेवाली निवेदिता की आज कविताएं छपती हैं. वह कहानियां और किताबें लिखती हैं. इन सबसे उन्हें अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है. इसके लिए वह कड़ी मेहनत भी करती हैं.
घर के काम-काज से निबटने के बाद रोजाना करीब आठ से दस घंटे का समय अपनी लेखनी के लिए निकाल ही लेती हैं. उनके अनुसार- ”इसका बहुत फायदा होता है. अब मैं आत्मनिर्भर हो चुकी हूं. कमाई तो एक बहाना है. मूल मकसद तो जो मन में है, उसे बाहर निकलना है. जरूरत पड़ने पर दूसरों को भी गाइड भी करती हूं. इससे सैकड़ों लोगों से संपर्क करने का मौका मिलता है.”
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