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बिहार का एक ऐसा गांव जहां के 27 स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजों से लिया था लोहा, आज भी जीवित हैं 3 सेनानी

सीवान :बिहारके सीवान जिले में चितौड़गढ़ के नाम से जाने-जाने वाले महाराजगंज में बंगरा एक गांव ऐसा है, जहां 27 स्वतंत्रता सेनानियों ने देश को आजाद कराने के लिए अंग्रेजों से लोहा लेने का काम किया. गांव के स्वतंत्रता सेनानियों ने देश की आजादी के लिए अपनी जान गंवा दी. फिरंगियों के दांत खट्टे करने […]

सीवान :बिहारके सीवान जिले में चितौड़गढ़ के नाम से जाने-जाने वाले महाराजगंज में बंगरा एक गांव ऐसा है, जहां 27 स्वतंत्रता सेनानियों ने देश को आजाद कराने के लिए अंग्रेजों से लोहा लेने का काम किया. गांव के स्वतंत्रता सेनानियों ने देश की आजादी के लिए अपनी जान गंवा दी. फिरंगियों के दांत खट्टे करने वाले देवशरण सिंह अंग्रेजी हुकूमत की गोली से शहीद हो गये थे .

महाराजगंज अनुमंडल के बंगरा गांव जैसा देश में शायद ही कोई ऐसा गांव होगा जहां 27 स्वतंत्रता सेनानियों पैदा हुए हों. इनमें देवशरण सिंह के अलावा रामलखन सिंह, टुकड़ सिंह, गजाधर सिंह, रामधन राम, रामपृत सिंह, सुंदर सिंह, रामपरीक्षण सिंह, शालिग्राम सिंह, गोरख सिंह, फेंकू सिंह, जुठ्ठन सिंह, काली सिंह, सूर्यदेव सिंह, बमबहादुर सिंह, राजनारायण उपाध्याय, रामएकबाल सिंह, तिलेश्वर सिंह, देवपूजन सिंह, रघुवीर सिंह, नागेश्वर सिंह, शिव कुमार सिंह, झूलन सिंह, राजाराम सिंह, सीताराम सिंह, मुंशी सिंह व सुरेंद्र प्रसाद सिंह शामिल हैं.

आज भी जीवित हैं तीन सेनानी
बंगरा गांव के 27 स्वतंत्रता सेनानियों में से तीन आज भी जिंदा हैं. ये सीताराम सिंह, मुंशी सिंह व सुरेंद्र प्रसाद सिंह हैं. 96 वर्षीय सीताराम सिंह अंग्रेजों के जुल्म की कहानी सुनाते हैं तो लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं. सीताराम सिंह का कहना है कि आज देश में भ्रष्टाचार व घोटाला चरम पर है.

भारत छोड़ो स्वतंत्रता आंदोलन के नायक रहे उमा शंकर प्रसाद
सीवान. देश जब अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नेतृत्व में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगा रहा था, उस समय जिले के महाराजगंज में एक युवा मात्र 28 वर्ष की उम्र में अपनी निजी भूमि में निजी कोष से उमाशंकर प्रसाद हाइ स्कूल की स्थापना कर युवाओं को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत का पाठ पढ़ा रहा था. वह शख्स था उमाशंकर प्रसाद, जिसने अपनी बहादुरी और हिम्मत से अंग्रेजों के नाको चने चबा दिये.

1928 में महात्मा गांधी के महाराजगंज आगमन पर आर्थिक अभाव में स्वतंत्रता आंदोलन कमजोर न पड़ जाये, इसलिए उस समय अपने पास से 1001 रुपये की थैली भेंट की. अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध उमाशंकर प्रसाद की बगावत और सेनानियों को आर्थिक मदद देने के कारण अंग्रेजी सरकार ने 1942 में इन्हें देखते ही गोली मार देने का आदेश दिया. लेकिन उमाशंकर कहा रुकने वाले थे, ये भूमिगत होकर आंदोलन को तेज गति देने लगे. इसके कारण टॉमी सैनिकों ने उमाशंकर प्रसाद हाइ स्कूल में आग लगा दी और उनकी दुकान को लूट लिया. नमक बनाओ आंदोलन में देशरत्न राजेंद्र प्रसाद के साथ मिलकर बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया.

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