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जनजातीय विरासत सुरक्षित रखने को बन रहा संग्रहालय

सिलीगुड़ी. उत्तर बंगाल का इतिहास वैसे तो प्राचीन काल में पुंड्रवर्द्धन राज्य से शुरू होता है, लेकिन पौराणिक काल में भी यह क्षेत्र जनजातीय समूहों का क्षेत्र रहा है. इस क्षेत्र के इतिहास और लोक संस्कृति पर शोध करने वाले आचार्य कैलाशनाथ ओझा के अनुसार प्राचीन काल में इस क्षेत्र से सटे नेपाल की तराई […]

सिलीगुड़ी. उत्तर बंगाल का इतिहास वैसे तो प्राचीन काल में पुंड्रवर्द्धन राज्य से शुरू होता है, लेकिन पौराणिक काल में भी यह क्षेत्र जनजातीय समूहों का क्षेत्र रहा है. इस क्षेत्र के इतिहास और लोक संस्कृति पर शोध करने वाले आचार्य कैलाशनाथ ओझा के अनुसार प्राचीन काल में इस क्षेत्र से सटे नेपाल की तराई में लिम्बुआन का राज्य था जोकि काफी ताकतवर था. ब्रिटिशकालीन भारत में चाय बागानों की खेती के साथ हालांकि तत्कालीन बिहार और मध्यप्रदेश से आदिवासी समुदाय के लोग मजदूरी के लिये लाये गये थे. लेकिन उनके पूर्व भी इस क्षेत्र में कोच-राजवंशी, राभा, टोटो, धिमाल जैसी जनजातियों का निवास रहा है.

इन सभी जनजातीय समूहों की अपनी समृद्ध परंपरा, धर्म, रीति-रिवाज और अनोखी जीवन शैली ने इतिहास के शोधार्थियों को हमेशा से आकृष्ट किया है. इसी को ध्यान में रखते हुए नवगठित अलीपुरद्वार जिले के मुख्यालय शहर में एक जनजातीय संग्रहालय स्थापित करने की पहल जिला प्रशासन ने शुरू की है. इस फैसले से उत्तर बंगाल के बौद्धिक वर्ग में उत्सुकता बढ़ गई है.


प्रशासनिक सूत्र के अनुसार आसन्न दुर्गा पूजा के बाद दिसम्बर में ही इस जनजातीय संग्रहालय चालू किये जाने की योजना है. अलीपुरद्वार के डीएम कार्यालय के बगल में ही इसके लिये दोमंजिला भवन एक करोड़ रुपए की लागत से तैयार किया गया है. इसमें संग्रहालय चालू करने और उसकी सजावट आदि के लिए अलग से 23 लाख रुपए खर्च किये जायेंगे. जिला पिछड़ा कल्याण विभाग की पहल पर यह संग्रहालय तैयार हो रहा है. विभाग के जिला अधिकारी अभिरूप बसु के अनुसार संग्रहालय की सजावट के लिये वॉर्क ऑर्डर भी जारी कर दिया गया है.

सूत्र के अनुसार उत्तर बंगाल के चाय-वलय और संलग्न वनांचलों में रहने वाले जनजातीय समूहों का सही सही आंकड़ा राज्य सरकार के पास भी नहीं है. लोक संस्कृति के विख्यात शोधकर्ता प्रमोद नाथ का कहना है, पिछली जनगणना के अनुसार केवल अलीपुरद्वार जिले में 42 जनजातीय समूह हैं. प्रशासनिक सूत्र के अनुसार जिले के विभिन्न इलाकों में बिखरे हुए जनजातीय समूहों के पारंपरिक रूप से दैनिक व्यवहार में आने वाले सामान और उपकरणों को संग्रहालय में रखा जायेगा. खास तौर पर इनके पारंपरिक वाद्ययंत्र और कलाकृतियों और आभूषणों को भी इस संग्रहालय में जगह मिलेगी. इनमें शामिल हैं, इन जनजातियों की पोशाक और दैनिक उपयोग की वस्तुएं जैसे मछलियां पकड़ने के औजार और बर्तन आदि. उल्लेखनीय है कि इस तरह की सामग्रियों का अनूठा संग्रह उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय के अक्षय मैत्रेय म्यूजियम में भी संगृहीत है.


सूत्र ने बताया, संग्रहालय को और भी समृद्ध बनाने के लिये जनजातीय समूहों की संस्कृति व इतिहास का अध्ययन करने वाले शोधकर्ताओं और धरोहर का संरक्षण करने वाले संगठनों का भी सहयोग लिया जायेगा. उल्लेखनीय है कि अलीपुरद्वार शहर के आठ नंबर वार्ड स्थित उदयन वितान इलाके के एक मकान में जिला सूचना व संस्कृति विभाग के कार्यालय में जिले के विभिन्न जनजातीय समूहों की दैनिक जरूरत की पारंपरिक वस्तुएं, गहने, सामान व वाद्ययंत्र पड़े पड़े नष्ट हो रहे थे. उसके बाद ही इन वस्तुओं के उचित संरक्षण के लिये उक्त परियोजना ली गई. उत्तर बंगाल के इतिहासकार दुलाल दास के अनुसार उत्तर बंगाल विभिन्न जनजातीय समूहों का क्षेत्र रहा है जिनकी अपनी अनूठी जीवन शैली और लोक संस्कृति रही है. उन पर अध्ययन की काफी गंजाइश है ताकि नये-नये तथ्यों जी जानकारी मिल सके.

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