चौदह वर्ष उम्र में मृणालिनी माता परमहंस योगदानंद जी से पहली बार मिलीं थीं. योगानंद जी ने उसी समय तय किया था कि मृणलिनी माता पवित्र क्रियायोग विज्ञान के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेंगी. योगानंद ने उनको जिम्मेदारी दी. उन्होंने आश्रम में विविध भूमिका का निर्वहन किया. योगानंद जी की शिक्षाओं के संपादन में अहम योगदान भूमिका निभायी. उपाध्यक्ष के रूप में गुरुदेव के कार्य विस्तार में अपनी सेवाएं दी. भारत में गुरुजी के मातृभूमि में कार्य काे निष्पादित करने में उनकी काफी रुचि रहती थी.
वह हमेशा यही कहतीं थीं कि जो मैं चाहती हूं, वह नहीं, बल्कि जो गुरुजी चाहते हैं ,वह पूर्ण हो. यह लोगों के जीवन को प्रेरित करता रहेगा. रांची व कोलकाता आश्रम में काफी समय व्यतीत करने वाली मृणालिनी माता द्वारा दिये गये योग विज्ञान पर व्याख्यान प्रेरणादायक हैं.