तीन किस्तों में भाईश्री से साक्षात्कार छापकर पाठकों को अध्यात्म से साक्षात्कार कराया गया है. धर्महीन जीवन सचमुच पशु से बदतर है. इसके लिए गुणवत्तायुक्त शिक्षा प्रणाली विकसित करना आवश्यक है. आज के युग में आबादी बहुत बढ़ गयी है. हवा, पानी और अन्न प्रदूषित हैं. इसका सेवन कर बुद्धि भी प्रदूषित होना लाजमी.
और इससे चरित्र निर्माण में बाधा होती है. भाईश्री का अध्ययन काफी गहरा है. संत संतोष के प्रतीक होते हैं, इसलिए उनके चरित्र में आकर्षण होता है. अंतिम किस्त में भाईश्री ने जीवन की कमियों को दूर कर अच्छाई अपनाने की नसीहत दी है, जो बिलकुल जरूरी है. उन्होंने होमर, शेक्सपीयर तथा टीएस इलियट को जीवंत कर दिया है.
भगवान ठाकुर, तेनुघाट, बोकारो