रांची : प्रधानमंत्री की अपील पर देश भर में स्वच्छता अभियान जोर-शोर से चल रहा है. शहर-शहर और गांव-गांव को खुले में शौच से मुक्त करने का अभियान चल रहा है. इसके तहत लोगों को 12,000 रुपये का अनुदान भी सरकार की ओर से दिया जा रहा है. गांवों में शौचालय निर्माण कराने को लेकर कई जिलाधिकारी जुनूनी हो गये हैं.
बिहार के एक जिलाधिकारी ने एक गरीब से यहां तक कह दिया कि शौचालय बनाने के पैसे नहीं हैं, तो अपनी बीवी को बेच डालो. झारखंड के सभी जिलों और प्रखंडों के अधिकारी लोगों को इस बात के लिए प्रेरित कर रहे हैं कि जल्द से जल्द घर में शौचालय बनवा लें. अधिकारी चाहते हैं कि जल्द से जल्द सभी जिलों में शौचालय बनाने का लक्ष्य हासिल कर लिया जाये.
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झारखंड ने 2019 तक राज्य को पूरी तरह खुले में शौच से मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा है. लेकिन, नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन के जो आंकड़े हैं, यह बताते हैं कि झारखंड को खुले में शौच से मुक्त करना अभी दूर की कौड़ी है. वर्ष 2016 तक के आंकड़े बताते हैं कि झारखंड के ग्रामीण इलाकों के महज 15.6 फीसदी घरों तक पानी पहुंच पाया है.
हाइड्रोजियोलॉजिस्ट और रूरल मैनेजर कल्लोल साहा कहते हैं कि जब घर में पानी ही नहीं होगा, तो लोग शौचालय का इस्तेमाल कैसे करेंगे. इसलिए वर्ष 2019 में झारखंड सरकार प्रदेश को खुले में शौच से मुक्त करने का लक्ष्य हासिल कर लेगी, यह संभव नहीं दिखता. साहा कहते हैं कि झारखंड में विभागीय गतिविधियों की निगरानी करने की जरूरत है.
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साहा के मुताबिक, जब तक लोगों के घरों तक पानी पहुंचाने की व्यवस्था नहीं होगी, स्वच्छता अभियान सफल नहीं हो सकता. और यह एक सच्चाई है कि ग्रामीण इलाकों में घरों तक पानी पहुंचाना सरकार की प्राथमिकता में शामिल ही नहीं है. प्रदेश में अभियान को सफल बनाने के लिए परियोजनाअों की गहन समीक्षा की जरूरत है, ताकि राज्य और केंद्र सरकार मिल कर सुधार के लिए जरूरी कदम उठा सकें.