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जेब पर बोझ

आम जनता के मन में धारणा यही होती है कि किसी भी विकास कार्य या नीति का उद्देश्य गरीब और निम्न मध्यवर्गीय लोगों की मुश्किलें कम करना होता है. वक्त के साथ गरीबी उन्मूलन की दिशा में काम हुआ भी है, पर स्थिति अब भी बेहद चिंताजनक है. यह भी एक सच ही है कि […]

आम जनता के मन में धारणा यही होती है कि किसी भी विकास कार्य या नीति का उद्देश्य गरीब और निम्न मध्यवर्गीय लोगों की मुश्किलें कम करना होता है. वक्त के साथ गरीबी उन्मूलन की दिशा में काम हुआ भी है, पर स्थिति अब भी बेहद चिंताजनक है. यह भी एक सच ही है कि इलाज कराने में खर्च की वजह से साढ़े पांच करोड़ लोग सालाना किसी-न-किसी अवधि के लिए गरीबी रेखा से नीचे चले जाते हैं.
इसका मतलब हुआ कि भोजन, शिक्षा, परिवहन, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरत के मद में मिलनेवाली किसी भी किस्म की सब्सिडी अगर कम या खत्म की जाती है, तो देश की आधी से ज्यादा आबादी की वास्तविक आमदनी पर उसका सीधा असर पड़ता है, उसे अपनी बुनियादी जरूरतों में कुछ कटौती करनी पड़ती है. अर्थशास्त्री यह बताते रहे हैं कि ऐसे में सशक्त मानव-संसाधन तैयार करने में अवरोध पैदा होता है और इसका दूरगामी प्रभाव आर्थिक वृद्धि पर पड़ता है.
रसोई गैस सिलेंडर को बाजार-भाव से ग्राहकों को देने और बचत खाते पर मिलनेवाले ब्याज को कम करने की खबर को इस परिप्रेक्ष्य में भी देखा जाना चाहिए. खबरों के मुताबिक, सरकार 2018 के मार्च तक रसोई गैस पर दी जा रही सब्सिडी पूरी तरह खत्म करना चाहती है. केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री के मुताबिक हर महीने सब्सिडी वाले 14.2 किलोग्राम वाले सिलेंडर के दाम में चार रुपये की बढ़त करने का आदेश दिया जा चुका है. सब्सिडी वाले सिलेंडरों की संख्या पहले ही सीमित (साल में 12) थी.
इस संख्या पर जारी सब्सिडी को खत्म करने का असर देश की बड़ी आबादी के घरेलू बजट पर पड़ेगा और बचत प्रभावित होगी. देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक के एक करोड़ और इससे कम के बचत खाते पर साढ़े तीन प्रतिशत की दर से सूद देने का फैसला भी देश की एक बड़ी तादाद की मासिक आमदनी और बचत की आदतों पर असर डाल सकता है. बेशक नोटबंदी के बाद बैंकों में जमा राशि अनुमान से ज्यादा पहुंची है और रिजर्व बैंक के नये आंकड़ों का संकेत है कि बैंकों से दिये जा रहे कर्ज में पिछले साल के मुकाबले कमी आयी है.
बैंकों की एक बड़ी समस्या है कि उन्हें जमा रकम पर सूद तो चुकानी होती है, लेकिन वे इस जमा रकम से अपेक्षा के अनुरूप कमाई नहीं कर रहे हैं, क्योंकि अर्थव्यवस्था में सुस्ती है. लेकिन, आर्थिक सुस्ती को दूर करने का अर्थ यह नहीं कि देश की बड़ी आबादी की वास्तविक आमदनी पर ही चोट कर दी जाये. जरूरत इस बात की है कि सरकार आर्थिक पहलों का अधिकाधिक लाभ आबादी के निचले स्तरों तक पहुंचाने की पुरजोर कोशिश करे, ताकि देश के सर्वांगीण विकास की राह आसान हो सके.

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