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OMG : ये दादी-नानी फेसबुक पर रिक्वेस्ट का करती थी इंतजार और अब….

लेटेस्ट फैशन से अप टू डेट हैं ये दादी-नानी फेसबुक पर रिक्वेस्ट का करती थी इंतजार इनसे लें प्रेरणा. किस्से-कहानियां सुनाते नहीं, अब व्हॉट्सएप्प करते हैं, फेसबुक पर पोस्ट करते हैं हम अश्वनी कुमार राय पटना : दादी-नानी का नाम आते ही लोग अपने बचपन के दिनों में खो जाते हैं. उन्हें वह समय याद […]

लेटेस्ट फैशन से अप टू डेट हैं ये दादी-नानी
फेसबुक पर रिक्वेस्ट का करती थी इंतजार
इनसे लें प्रेरणा. किस्से-कहानियां सुनाते नहीं, अब व्हॉट्सएप्प करते हैं, फेसबुक पर पोस्ट करते हैं हम
अश्वनी कुमार राय
पटना : दादी-नानी का नाम आते ही लोग अपने बचपन के दिनों में खो जाते हैं. उन्हें वह समय याद आता है, जब नानी व दादी उन्हें तरह-तरह की कहानियां सुनाया करती थीं. तरह-तरह के पकवान बना कर खिलाती थीं. माता-पिता की डांट से बचाती थीं. अपनी साड़ी के पल्लू में उनके लिए कुछ बांध कर रखती थी.
दादी-नानी का नाम सुनते ही इन सब बातों को याद करना बहुत सहज है, लेकिन आज के जमाने में दादी-नानी में इन खूबियों के साथ कुछ नयी चीजें भी जुड़ गयी हैं. यहां बात हो रही है मॉडर्न दादी-नानी की. वैसे तो नये जमाने की ये दादी-नानी भी अपने पोते-पोतियों को प्यार करती हैं, किस्से-कहानियां सुनाती हैं, लेकिन उनका उसे सुनाने का तरीका बदल गया है. जी हां, अब ये दादी-नानी बच्चों को फेसबुक, व्हॉट्सएप्प के जरिये कहानियां भेजती हैं, जोक्स भेजती हैं, अच्छी बातें व वीडियोज भेजती हैं. ये अपने पोते-पोतियों को समझने के लिए, उनके बीच घुल-मिल जाने के लिए मॉडर्न हो गयी हैं.
दादी-नानी बनना उम्र का वह पड़ाव होता है, जिसमें अक्सर लोगों को लगता है कि जिंदगी की तमाम इच्छाएं अब पूरी हो गयी हैं और अभी हमें पूजा-पाठ, भजन में ही मन लगाना चाहिए. लेकिन इसके विपरित कई दादी-नानी इस उम्र को एक नये जीवन के रूप में देखती हैं.
सभी जिम्मेवारियों, तनाव से मुक्त हो कर वे दोबारा अपना बचपन जीती हैं. अपने शौक पूरे करती हैं. शहर में भी ऐसी दादी-नानी की कमी नहीं है. आज हम आपको कुछ ऐसी ही महिलाओं से मिला रहे हैं, जो दूसरों के लिए मिसाल हैं.
इस उम्र में एक्टिव रहती हैं ये महिलाएं
नानी और दादी बन जाने से लाइफ रुक नहीं जाती. हमारा जीवन सिर्फ बच्चों को कहानियां सुनाने के लिए नहीं है. कुछ इन्हीं बातों को गलत साबित करती हैं शहर की ये महिलाओं, जिन्होंने नानी और दादी बनने के बावजूद भी अपने काम से कोई कॉम्प्रमाइज नहीं किया.
ये नानी-दादी बन चुकी हैं, लेकिन इनके काम, फैशन और लाइफ स्टाइल को देखते हुए कोई नहीं कह सकता है कि यह इस उम्र की हैं. वे भी काम के अलावा शॉपिंग करना, मूवी देखना, ब्रांडेड एसेसेरिज यूज करना जैसी चीजों में दिलचस्पी रखती हैं.
फेसबुक पर रिक्वेस्ट का करती थी इंतजार
सोशल वर्क में एक्टिव रहते-रहते मुझे लगा कि सोशल साइट से भी जुड़ना चाहिए, इसलिए मैंने सोशल साइट पर भी अपना अकाउंट बना लिया. जब नया-नया अकाउंट बनाया था, तो किसी की रिक्वेस्ट नहीं आता था. तब मैं हर दिन रिक्वेस्ट का इंतजार करती थी, लेकिन अब मेरे कई फ्रेंड्स हैं.
यह कहना है बोरिंग रोड की उषाझा का, जो दादी बन चुकी हैं. उनका सात साल का एक पोता भी है, लेकिन उनकी सोच किसी बुजुर्ग महिला की तरह नहीं है. वे अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीती हैं. उन्होंने बताया कि मैं 25 साल से मिथिला ब्लॉक पेंटिंग व अन्य सोशल वर्क में जुड़ी हुई हूं. इसके अलावा मैं हर पल को जीना चाहती हूं.
यही वजह है कि इस उम्र में आ कर भी खुद को नहीं रोक पाती. उन्होंने बताया कि मैंने साल 2000 में पहली बार इमेल आइडी बनाया था. मुझे शौक था कि मुझे भी मेल आये. फिर ऑरकुट पर अकाउंट बनाया, फेसबुक पर आयी. अब मैं सोशल साइट पर भी एक्टिव रहती हूं. समय बरबाद करना मेरी आदत नहीं है. मेरे मन में अभी भी क्रियेटिव आइडिया आते रहते हैं, जिस पर मैं काम करती हूं. कई बार विदेश भी जा चुकी हूं.
मैं बच्चों की नहीं, बच्चे मेरी चॉइस पसंद करते हैं
इंसान उम्र से नहीं दिल से जवान होता है, इसलिए सब्जीबाग की रहने वाली वीणा गुप्ता इस उम्र में भी किसी जवान इंसान से कम दिखायी नहीं देती है. वीणा गुप्ता लायंस क्लब की डिस्ट्रिक्ट प्रेसिडेंट हैं.
वे सोशल वर्कर के अलावा रियल लाइफ में भी बहुत एक्टिव हैं. उनके घर में एक पोता और एक पोती है. वे अपनों से बहुत प्यार करती हैं. साथ ही अपनी जिंदगी को भी बेहतर और खूबसूरत तरीके से जीने की कोशिश करती हैं. वे कहती हैं मैं कभी भी किसी से कम नहीं रहना चाहती हूं. उम्र कोई बहाना नहीं है. मैं पहले भी एक्टिव थी और अभी भी हूं.
मैं पुराने जमाने की हूं, लेकिन नये जमाने की किसी भी चीज को अपनाने में मुझे कोई झिझक नही होती है. मुझे पता है कि लेटेस्ट फैशन क्या है. मेरी च्वाइस मेरे बच्चों को पसंद आती है. वे आज के जमाने के हैं फिर भी वे मेरी च्वाइस की चीजें खरीदेते हैं. मुझे ब्रांडेड एसेसीरिज की आदत है, जहां तक ड्रेसिंग सेंस की बात है, तो मैं जगह और ओकेजन देख कर ही ड्रेस पहनती हूं. मैं ट्रेडिशनल और वेस्टर्न दोनों तरह के ड्रेसेज पहनती हूं. कई बार विदेश यात्रा भी कर चुकी हूं, वहां जाने पर वहां के अनुसार खुद को ढालती हूं. मेरा मानना है कि हर महिला को अपनी जिंदगी खुल कर जीनी चाहिए. लोग क्या कहेंगे, यह सोच कर इच्छाओं को नहीं मारना चाहिए.
जिंदगी अंत तक जीने के लिए होती है
आज भी गांव जाती हूं, तो हमारी उम्र की महिलाएं खुद को बुजुर्ग और लाचार समझती हैं. उन्हें लगता है कि वे अपनी जिंदगी गुजार ली हैं, इसलिए बची यह जिंदगी किसी तरह काटना है.
शौक के मामले में उनका कहना होता है कि अब शौक काहे का? जो कि गलत है क्योंकि जिंदगी अंत तक जीने के लिए होती है. यह कहना है राजापुल की अरुणा चौधरी का, जो पेशे से प्रोफेसर हैं. वे कहती हैं कि हमारे जमाने में बहुत सादगी थी, तब उस जमाने के साथ जिया, लेकिन अब जमाना स्टाइलिश हो गया है इसलिए अब इस जमाने के साथ जी रही हूं.
क्योंकि हमारी जिंदगी भी इस नये जमने का हिस्सा है. इसलिए मैं अपने काम के साथ-साथ एंज्वाय भी करती हूं. तीन पोते हैं. घर में दादी ही हूं, लेकिन बाहर में दादी मां नहीं हूं. मेरी भी खुद की लाइफ है. इसलिए मैं अपनी लाइफ को भरपूर एंज्वाय कर रही हूं. ऐसे में हमारे बच्चे भी खुश हैं. मैं भी अपनी छुट्टियों में घूमने जाती हूं. अपनी जिंदगी को हम खुद खूबसूरत बना सकते हैं.
हर बार की तरह इस बार भी सावन क्वीन का खिताब मिला
जिंदगी जिंदा दिली का नाम है, इसलिए जिंदगी काटने के लिए नहीं बल्कि आखिरी पल तक जीने के लिए होती है. यह कहना है कंकड़बाग की बिमला सिंह का, जो रिश्ते में तो दादी बन चुकी हैं, लेकिन आज भी दिल से जवान हैं.
वे कहती हैं कि नानी या दादी बनने के बाद क्या हम अपनी जिंदगी नहीं जी सकते हैं. क्या हमें अपनी ख्वाहिशों को मार देना चाहिए? मैं तो अपनी लाइफ को पूरे तरह से एंज्वाय करना चाहती हूं. जिंदगी में किसी तरह की टेंशन नहीं लेती, क्योंकि टेंशन से जिंदगी कमजोर हो जाती है. मेरी एक पोती कॉलेज में जा चुकी है. उसकी फ्रेंड्स को विश्वास नहीं होता कि मैं उसकी दादी हूं.
क्योंकि मैं फैशन के मामले में भी कम नहीं हूं. मुझे ब्रांडेड चीजें ही पसंद हैं. छुट्टियों में घूमना पसंद है. मैं कई क्लब से भी जुड़ी हुई हूं. आज भी फैशन कंपीटीशन में शामिल होती हूं. हर बार की तरह इस बार भी सावन क्वीन का खिताब मिला है. शादी के बाद कई सालों तक मैं घर की जिम्मेवारी और बच्चों में उलझ कर रह गयी थी, इसलिए अब फ्री हो कर जिंदगी जी रही हूं.

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