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खामियों को सुधारे रेल

खबरों की मानें, तो रेल प्रबंधन अनेक ट्रेनों के वातानुकूलित डिब्बों में यात्रियों को कंबल देने की सुविधा समाप्त करने पर विचार कर रहा है. कंबल की जरूरत न रहे, इसके लिए डिब्बों का तापमान 19 डिग्री सेल्सियस से बढ़ा कर 24 डिग्री सेल्सियस रखने की मंशा भी है. पिछले दिनों संसद को सौंपी गयी […]

खबरों की मानें, तो रेल प्रबंधन अनेक ट्रेनों के वातानुकूलित डिब्बों में यात्रियों को कंबल देने की सुविधा समाप्त करने पर विचार कर रहा है. कंबल की जरूरत न रहे, इसके लिए डिब्बों का तापमान 19 डिग्री सेल्सियस से बढ़ा कर 24 डिग्री सेल्सियस रखने की मंशा भी है. पिछले दिनों संसद को सौंपी गयी नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट में यात्रियों को गंदे कंबल देने की बात सामने आयी है. अब सवाल यह उठता है कि क्या समस्या को सुलझाने और सुविधाओं को बेहतर करने उपाय करने के बजाये सुविधा को ही समाप्त कर देना कहां तक उचित है. सीएजी की रिपोर्ट में तो ट्रेनों में परोसे जानेवाले खाने की गुणवत्ता भी बेहद खराब बतायी गयी है.
तो, क्या रेल मंत्रालय इस समस्या से निपटने के लिए खाना देना ही बंद कर देगा? इस रिपोर्ट में साफ सलाह दी गयी है कि तकिये, चादरों और कंबलों की धुलाई की जो रेल की अपनी व्यवस्था है, वह अपर्याप्त होने के साथ उसके कामकाज पर निगरानी का भी ठीक इंतजाम नहीं है. मशीनी धुलाई के 30 लाउंड्रियों में से 26 के पास राज्य सरकारों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों द्वारा दी जानेवाली जरूरी मंजूरी नहीं है, तो 15 ऐसे केंद्रों में प्रभावी जल-उपचारण की व्यवस्था नहीं है.
धुलाई के काम ठेके पर भी दे दिये जाते हैं. यही स्थिति खान-पान सेवा के साथ भी है. जरूरत इस बात की है कि ठेके देते समय सेवा-प्रदाता की क्षमता का गंभीरता से आकलन किया जाये और समय-समय उनके काम का परीक्षण भी किया जाये. जांच में गड़बड़ी पाये जाने पर जिम्मेवार अधिकारियों और ठेकेदारों पर कार्रवाई भी की जानी चाहिए.
यात्रियों की सुविधाओं में कटौती कर रेल विभाग अपनी जवाबदेही से मुक्त नहीं हो सकता है. खबरों में रेल विभाग के सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि कंबल की धुलाई पर 55 रुपये का खर्च आता है, जबकि इसके शुल्क के तौर पर 22 रुपये ही यात्रियों से वसूले जाते हैं. रेलवे को उम्मीद है कि कंबल उपलब्ध नहीं कराने के फैसले से खर्च में बचत होगी. जहां तक खर्च और उसकी भरपाई की बात है, तो यह एक नीतिगत मामला है तथा यह सिर्फ कंबल से जुड़ा मसला नहीं है.
खर्च कम करने और रेल का आर्थिक स्वास्थ्य बेहतर करने के लिए उपाय किये जायें, पर इसका खामियाजा यात्रियों को न भुगतना पड़े, इस बात का भी पूरा ख्याल रखा जाना चाहिए. जरूरत इस बात की है कि यात्री सुविधाओं की चिंताजनक मौजूदा स्थिति का ठीक से जायजा लिया जाये और फिर उनमें सुधार के लिए ठोस कदम उठाये जायें.

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