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कोई तो आये, जो भगाये हमारा दुख-दलिद्दर
पीड़ा : जंगल से उठ रहे सवाल, काम मांगा, तो नक्सली बता कर दिया केस, खेत में उतर रही लाल मिट्टी, उपज पर असर अजय/जीवेश सारंडा : हम छोटानागरा गांव पहुंचते हैं. पहाड़ी के नीचे खेत में काम कर रहे महिलाओं और मर्दों को हमने देखा. आवाज देने पर खेत से सुसैन गोप हमारे पास […]
पीड़ा : जंगल से उठ रहे सवाल, काम मांगा, तो नक्सली बता कर दिया केस, खेत में उतर रही लाल मिट्टी, उपज पर असर
अजय/जीवेश
सारंडा : हम छोटानागरा गांव पहुंचते हैं. पहाड़ी के नीचे खेत में काम कर रहे महिलाओं और मर्दों को हमने देखा. आवाज देने पर खेत से सुसैन गोप हमारे पास आये. वह चार भाई हैं. 40 एकड़ जमीन. सभी किसानी करते हैं.
सुसैन इलाके के हालत के बारे में पूछने पर कहते हैं- पहले की तुलना में शांति है. पहले तो जीना दुश्वार हो गया था. उनके मुताबिक 2004 में माओवादियों ने उनसे लेवी की मांग की. नहीं देने पर जान का खतरा. सो, गांव छोड़कर चारों भाई भाग गये. उनकी गैरहाजिरी में बुजुर्ग मां-बाप घर की रखवाली कर रहे थे.
एक दिन दस्ता आया और दोनों को मारापीटा. सुसैन कई साल ओड़िशा में रहे. खेत में काम करनेवाले पवन मुंडारी भी उन दिनों यहां से भाग गये थे. शांति हुई तो लौटे, लेकिन यहां के हालात से मन अशांत है. वजह पूछने पर कहते हैं : किसानी में घाटा हो रहा है. माइंस के चलते खेतों में लाल मिट्टी पसर रही है. इससे खेती प्रभावित हो रही है. लोगों की दिक्कत सुनने के वास्ते जनता दरबार लगाया जाता है, लेकिन उसमें गांववालों को बोलने ही नहीं दिया. अब गांव के लोगों ने सोचा है कि ऐसे जनता दरबार में जाने से क्या फायदा? पवन मुंडारी कहते हैं : अस्पताल में दो दिन ही डॉक्टर आते हैं, लेकिन हमारी कोई सुनता नहीं. (साथ में किरीबुरू से शैलेश) जारी…
काम मांगने पर ठेकेदार ने कर दिया केस
यहीं पता चला कि कुछ नौजवान जब काम मांगने खदान गये, तो ठेकेदार ने उन पर केस कर दिया. विपिन हांसदा, रामलाल, सुनील हांसदा सहित कुछ और युवकों को जेल में रहना पड़ा. लंबे समय तक कोर्ट-कचहरी के चक्कर में फंसे रहे. इस साल मुकदमा खत्म हुआ. पर इस वाकये से यहां के लोग दुखी हैं. वे पूछते हैं- इस तरह हमें फंसाया जायेगा, तो हम क्या करेंगे? इस सवाल के अर्थ गहरे हैं.
मुरगा लड़ाई, खून और पैसा
जब हम इस गांव में पहुंचे मुरगा लड़ाई की तैयारी चल रही थी. सुदूर दुईंया गांव में मुरगा लड़ाई देखने ओड़िशा तक से लोग चारपहिया गाड़ियों से आये थे. महंगी चारपहिया गाड़ियां वीरान जंगल में यहां की जिंदगी का दूसरा पहलू खोल रही थीं. मुरगा लड़ाई के लिए बाजाप्ता अखाड़े का इंतजाम था. उसके चारों ओर खड़े लोग अपने पसंदीदा मुरगों पर बोली लगा रहे थे. बाजी की रकम लाखों में बतायी जाती है. मुरगों की टांगों में चाकू बांधे गये थे.
दुखों की वजहें और भी हैं
गांव के लोगों के दुख की वजहें और भी हैं. आसपास के गांवों के 60 लड़कों को आइटीआइ और 40 लड़कियों को नर्स की ट्रेनिंग दी गयी थी, लेकिन उन्हें काम नहीं मिला. ट्रेनिंग उनके किसी काम नहीं आ रही है. सभी या तो बेरोजगार हैं या कमाने-धमाने बाहर निकल गये हैं. इलाके में पसरी गरीबी ने कई विद्रुपताओं को पैदा कर दिया है. कमाने के नाम पर यहां से लड़के-लड़कियों को बाहर ले जाने वाले दलाल किस्म के लोग सक्रिय हो गये.
कई खेप में उन्हें ले भी जाया गया. दुईंया गांव के राजू शांडिल्य के मुताबिक यहां के डेढ़ सौ घरों में से आधे लोग बाहर हैं, कमाने के वास्ते. लड़कियों को काम के लिए बाहर ले जाने पर गांव के लोगों ने रोक लगा दी है. पिछले ही सप्ताह हुई ग्रामीणों की मीटिंग में यह तय किया गया. इसी गांव के बाहरी हिस्से में ईस्ट इंडिया कंपनी ने खदान से माल की ढुलाई के लिए रेल पटरी बिछायी थी. अब रेल पटरी के निशान नहीं हैं.
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