-रजनीश अानंद-
हमारे समाज में रोज ऐसी घटनाएं होती रहती हैं, जिनसे महिलाओं की सामाजिक स्थिति का तो पता चलता ही है, इस पितृसत्तामक समाज की सोच भी उजागर होती है. इसी सप्ताह खबर आयी थी कि हरियाणा में एक दादी ने अपनी पोती के गुप्तांग को गरम चिमटे से जला दिया, कारण था तीसरी पोती के जन्म से उनकी नाराजगी. यह सिर्फ एक उदाहरण है, जो यह बताता है कि हमारे समाज में महिलाएं किस तरह पीड़ित हैं. उसके संपूर्ण अस्तित्व को ही कठघरे में खड़ा कर यह समाज ईमानदार होने का दावा करता है.
लिंगभेद के कारण गर्भ में ही मारी जाती हैं बच्चियां
हमारे देश में लिंगभेद के कारण सेक्स रेसियो बहुत ही खराब है. पूरे देश की अगर बात करें तो, प्रति एक हजार पुरुष पर 943 महिलाएं हैं. मात्र केरल और पुडुचेरी जैसे राज्य ही अपवाद हैं जहां महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक है और सेक्स रेसियो क्रमश: 1084 और 1037 है. हरियाणा में सेक्स रेसियो सबसे निम्न है जहां प्रति एक हजार पुरुष पर 877 महिलाएं हैं. सेक्स रेसियो का यह हाल सिर्फ और सिर्फ महिलाओं के प्रति पक्षपात पूर्ण रवैये का परिणाम है.
कुरीतियों के कारण भी अपमानित और पीड़ित हैं महिलाएं
हमारे समाज में कई ऐसी कुरीतियां हैं, जो महिलाओं के शोषण का जरिया बनती हैं. दहेज प्रथा, विधवा प्रथा जैसी परंपराएं महिलाओं के शोषण का जरिया बन जाती हैं. अकसर दहेज हत्या या प्रताड़ना के कारण आत्महत्या की खबरें सामने आती हैं. आज भी सीकर राजस्थान से ऐसी खबर आयी है कि एक महिला की मौत संदिग्ध अवस्था में हो गयी, जबकि परिजनों का कहना है कि दहेज के कारण उसकी मौत हो गयी. आंकड़ों के अनुसार देश भर में पिछले तीन साल में 24,771 मामले दहेज हत्या के सामने आये. वर्ष 2012 में 8,233, वर्ष 2013 में 8,083 और वर्ष 2014 में 8,455 मामले दर्ज किये गये.
पुरुषवादी सोच स्त्री को देह से अधिक नहीं मानता
नारी के खिलाफ जितने भी अपराध होते हैं, उसमें उसके तन को अत्यधिक प्रताड़ना झेलनी पड़ती है. पुरुषवादी सोच स्त्री को सिर्फ मांसल वस्तु समझता है, जिसके कारण वह एक चार साल की बच्ची से लेकर अधेड़ यहां तक की वृद्ध महिला तक के साथ बलात्कार करता है. कल दिल्ली में जो कुछ एक नर्सरी की चार साल की बच्ची के साथ हुआ उसके बाद तो इन दरिंदों के लिए किस शब्द का प्रयोग किया जाये समझ नहीं पा रही. आंकड़ों पर अगर गौर करें, तो देश में हर 14 मिनट में रेप की एक घटना होती है. स्त्री को देह मानना यह सिर्फ बलात्कार करने वालों की सोच नहीं है, बल्कि यह सोच समाज में गहरे पैठ किये हुए है. समाज में जिस तरह की गालियां बोलीं जाती हैं. वह इसका जीवंत प्रतीक है. अमेजन पर बिकने वाला ‘ऐशट्रे’- पेंसिल शार्पनर सभी इसी सोच के चिह्न मात्र हैं. आखिर एक दस साल की बच्ची को 26 माह के गर्भ का गर्भपात की अनुमति क्यों मांगनी पड़ रही है इस देश में? क्या यह समाज इस पर कभी कुछ सोचेगा.
आर्थिक रूप से सबल ना होना भी प्रताड़ना का कारण
हमारे देश में आज भी महिलाएं आर्थिक रूप से सबल नहीं हैं. अधिकतर महिलाएं घर संभालती हैं और पति कमाकर लाता है. आर्थिक रूप से सबल ना होने के कारण कई बार महिलाएं उत्पीड़न को झेल जाती हैं. शिक्षा का अभाव होने के कारण भी वे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं हैं. कई बार महिलाओं को पत्नी होने के अधिकार से वंचित कर दिया जाता है, ऐसे में विवाह का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिये जाने के फैसले से लाभ मिल सकता है. अगर सरकार का यह निर्णय प्रभावी हो जाये तो.