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भुला दिये गये शहीद हरेकृष्ण

उदासीनता . कारगिल में दुश्मनों से लोहा लेते हुए थे शहीद समाधि स्थल पर प्रतिमा लगाने की बात धरी की धरी रह गयी दरौंदा : देश की रक्षा में अपना प्राण न्योछावर करनेवाले शहीद हरे कृष्ण राम आज अपनों के बीच बेगाने हो गये हैं. शहीद हरे कृष्ण 18 वर्ष पूर्व कारगिल में दुश्मनों से […]

उदासीनता . कारगिल में दुश्मनों से लोहा लेते हुए थे शहीद

समाधि स्थल पर प्रतिमा लगाने की बात धरी की धरी रह गयी
दरौंदा : देश की रक्षा में अपना प्राण न्योछावर करनेवाले शहीद हरे कृष्ण राम आज अपनों के बीच बेगाने हो गये हैं. शहीद हरे कृष्ण 18 वर्ष पूर्व कारगिल में दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हो गये थे. प्रशासन व जनप्रतिनिधि के लिए उनकी शहादत के कोई खास मायने नहीं हैं. शहीद के परिजन भी उतने सक्रिय नहीं हैं. परिजनों को पेट्रोल पंप, नौकरी एवं मान-सम्मान दिलाने वाले कारगिल शहीद हरे कृष्ण की प्रतिमा स्थल आज भी उपेक्षा का शिकार है़ जिले के हसनपुरा प्रखंड के महुवल-महाल निवासी हरे कृष्ण राम 5 जुलाई, 1999 को कारगिल में दुश्मनों से लोहा लेते शहीद हो गये थे.
12 जुलाई 1999 को तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने शहीद के पैतृक गांव महुवल-महाल पहुंच कर उनके परिजनों को ढाढ़स बंधाया था. उन्होंने दरौंदा से हाथोपुर होते हुए महुवल-महाल तक जानेवाली सड़क को उनके नाम पर करने, घर-घर बिजली देने, स्वास्थ्य केंद्र बनवाने व समाधि स्थल पर आदमकद प्रतिमा लगाने का आश्वासन दिया था. परंतु, दरौंदा से हाथोपुर होते हुए महुवल महाल तक बड़ी सड़क उनके नाम से नहीं हो सकी. इस सड़क पर नन्हकू साह का बोर्ड लगा है़ सिर्फ महुवल-महाल गांव स्थित जीन बाबा के पास से शहीद हरे कृष्ण राम के घर तक ईंटीकरण ही किया गया़ गांव में बिजली, स्वास्थ्य केंद्र खोलने व समाधि स्थल पर प्रतिमा लगाने की बात धरी की धरी रह गयी़ं एक-दो वर्ष तक बड़े पदाधिकारियों या जनप्रतिनिधियों ने कारगिल दिवस, स्वतंत्रता दिवस एवं गणतंत्र दिवस पर फूल मालाएं चढ़ा कर औपचारिकताएं पूरी कीं, परंतु अब तो वह भी नहीं हो रहा है.
क्या कहते हैं जनप्रतिनिधि
कई बार शहीद के पुत्र से पंचायत मद से समाधि स्थल की चहारदीवारी तथा प्रतिमा लगाने की बात कही गयी है. लेकिन, शहीद के पुत्र अवधेश कुमार राम स्वयं बनाने की बात कह टाल जाते हैं.
अनूप मिश्र, मुखिया, ग्राम पंचायत राज पकड़ी, हसनपुरा
क्या कहते हैं ग्रामीण
कारगिल दिवस की शहादत का खुल कर मखौल उड़ाया गया. तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी एवं जनप्रतिनिधि घोषणा कर चले गये. परंतु, इस पर अमल नहीं किया गया.
ध्रुवपति देवी, गृहिणी
शहीद हरेकृष्ण राम की शहादत का चौतरफा अपमान किया गया. समय के साथ परिजन भी लाभ लेने का काम करते रहे.
विमला सिंह, गृहिणी
समय के साथ कारगिल के शहीद इतिहास के पन्नों में सिमटते चले गये. परिजनों ने योजनाओं का लाभ लेकर पैतृक निवास ही छोड़ दिया.
रामेश्वर साह, ग्रामीण
शहीद की शहादत को दरौंदा विस की जनता भूल नहीं पायेगी. हां, कुछ लोगों ने मुंह मोड़ कर शहादत को कलंकित करने का काम किया है.
जगदीश ना. सिंह

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