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बिहार : भागलपुर रेंज के DIG ने की मां गंगा से अपने‘दिल की बात’, युवा पीढ़ी को दिया यह संदेश

भागलपुर : बिहार के भागलपुर में आम जनता से जुड़कर स्मार्ट पुलिसिंग को अंजाम देने वाले और पौराणिक तीर्थ स्थलों पर शोध करने वाले वरिष्ठ आइपीएस अधिकारी और भागलपुर रेंज के डीआईजी विकास वैभव ने मां गंगा से बातचीत की है. इस बातचीत को लोग काफी पसंद कर रहे हैं. जी हां, उन्होंने हाल में […]

भागलपुर : बिहार के भागलपुर में आम जनता से जुड़कर स्मार्ट पुलिसिंग को अंजाम देने वाले और पौराणिक तीर्थ स्थलों पर शोध करने वाले वरिष्ठ आइपीएस अधिकारी और भागलपुर रेंज के डीआईजी विकास वैभव ने मां गंगा से बातचीत की है. इस बातचीत को लोग काफी पसंद कर रहे हैं. जी हां, उन्होंने हाल में गंगा नदी और उससे जुड़े इतिहास के अलावा नदी से जुड़ी यादों को बहुत भावुक अंदाज में बताया है. विकास वैभव ने गंगा नदी से अपने जुड़ाव और बातचीत को फेसबुक पर सार्वजनिक किया है, जिसे लोग काफी पसंद कर रहे हैं. उन्होंने कहा है कि मैं रविवार को भी कार्य व्यस्तता के बीच कुछ पल चिंतन हेतु निकालने की इच्छा लिए चल पड़ा गंगा किनारे. गंगा किनारे पहुंचने पर भारत के सांस्कृतिक विरासत की महत्वपूर्ण बिंदु रही इस सरिता से अपने व्यक्तिगत जुड़ाव के बारे में भी मन स्मरणशील हो उठता है.

उन्होंने गंगा किनारे अपने गुजरे बचपन की कुछ यादों को ताजा करते हुए आगे लिखा है कि पुलिस सेवा में आने के बाद एक आइपीएस प्रशिक्षु के रूप में पुलिसिंग भी मैंने गंगा किनारे अवस्थित भागलपुर जिले में ही सीखी जहां तीन माह तक मैं कहलगांव का थानाध्यक्ष भी रहा. पुलिस अधीक्षक के रूप में भी शुरुआत पाटलिपुत्र में गंगा किनारे स्थित कार्यालय से ही हुई और वहां से बगहा रातों रात स्थानांतरित होने पर यात्रा के क्रम में गंगा से हुई वार्ता मानस पटल पर अंकित हो गयी. उन्होंने आगे लिखा है कि यहां किनारे बैठकर धाराओं के तीव्र प्रवाह को देखते देखते मन अंग प्रदेश तथा बिहार के इतिहास और भविष्य के चिंतन में लीन हो जाता है. एक तरफ जहां महाभारत में अंग प्रदेश को महारथी कर्ण के राज्य के रूप में वर्णित किया गया है, वहीं कर्ण के जन्म के साथ ही हस्तिनापुर से अंग की राजधानी चंपा की यात्रा का माध्यम बनी गंगा से उनके जीवनपर्यन्त बने रहे संबंध की अवधारणा भी स्पष्ट है. गंगा के किनारे ही अंगराज की दिनचर्या प्रारंभ होती थी, जिसने दानवीर के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त करते भी संभवतः देखा होगा.

उन्होंने चंपा और नाथ नगर की ऐतिहासिक विरासतों की चर्चा करते हुए आगे लिखा है कि गंगा तट पर जब वर्तमान समय की दशा और दिशा के बारे में सोचने लगा तब अंग क्षेत्र में फैले विशाल ऐतिहासिक अवशेषें पूर्व विरासत की याद दिलाने लगे. मन उस काल की कल्पना करने लगा जब सैकड़ों वर्ष पूर्व शिल्पियों ने गंगा तट पर सुंदर मूर्तियां जहंगीरा (सुल्तानगंज), पत्थरघटा (बटेश्वरस्थान)आदि स्थानों पर उकेरते हुए गंगा के बीचों-बीच कहलगांव और जहंगीरा के द्वीपों पर विशाल देवायत्तन स्थापित किये थे. विक्रमशिला विश्वविद्यालय की पूर्व में प्रसिद्धि के बारे में जब मन सोचने लगा तब गंगा से वार्तालाप करने की फिर इच्छा हुई और मन कहने लगा कि मातृ संज्ञा से विभूषित एवं सदियों से भारतीयों द्वारा तीर्थ रूप में पूजित हे देवी सरिते ! तुमने हिमालय से समुद्र पर्यन्त अपने सतत् प्रवाह में इस क्षेत्र में इतिहास के प्रवाह को भी निकट से अवश्य देखा होगा.

डीआईजी ने बिहार को लेकर अपनी गंगा वार्ता में बहुत सारी बातें कही हैं. उन्होंने बिहार के हालात पर भी चर्चा की है. वह आगे लिखते हैं जिस भूमि ने कभी याज्ञवल्क्य, मैत्रैयी, जनक, चाणक्य और आर्यभट्ट जैसे विद्वानों को ज्ञान अर्जित करते देखा था, उसकी संतानें आज भी देश और विदेशों में अपनी ज्ञानपूर्ण उपलब्धियों की पताका लहरा रहे हैं और भूमि को गौरवान्वित कर रहे हैं. समस्या तो इसलिए है चूंकि वर्तमान पीढ़ी की असीम ऊर्जाओं का संचालन सकारात्मक दिशा में न होकर पतनशीलता ग्रहण करने को आतुर है. समाज का जो विकसित वर्ग पूर्व में व्यक्ति से व्यक्ति और व्यक्ति से समाज को परस्पर जोड़कर समाज के उत्थान के निमित्त प्रयासरत रहता था वही आज जोड़-तोड़ और विभाजन की नीतियों पर चलकर न तो अपना और न ही समाज का विकास कर पा रहा है. अधिकांशतः अनेक शिक्षित एवं संपन्न बिहारवासी यहां की समस्याओं को देखकर बिहार के बाहर अनेकानेक क्षेत्रों में योगदान दे रहे हैं और सम्मिलित भविष्य की चिंता छद्म होती जा रही है.

गंगा मूक साक्षी बन देखती रही है,लेकिन अपने विशाल तटों पर पूर्व कृतियों की यादें समेटे युवा वर्ग के लिए संदेश रखे है. इसमें मुख्य सहभागिता का दायित्व युवा वर्ग के कंधों पर ही है. चूंकि बिहार का अतीत प्रेरित करते हुए जहां वर्तमान के बारे में चिंतित करता है, वहीं अनिश्चित के गर्भ में प्रतीक्षा करता भविष्य आने वाली पीढ़ी को भी पूर्णतः प्रभावित करेगा. युवा पीढ़ी के लिए यह समझना आवश्यक है कि अनिश्चित भविष्य हमारी वर्तमान कृतियों पर निर्भर है और सभी से अपनी नियमित दिनचर्या के अतिरिक्त कुछ आंशिक ही सही परंतु निरंतर योगदान की अपेक्षा रखता है. गंगा मानो यह पूछती है कि क्या बिहार का युवा वर्ग इस चुनौती और परिवर्तन के लिए तैयार है ? गंगा किनारे यात्री मन चिंतन में डूबा है और इतिहास से प्रेरित परंतु उससे भी बृहत् एक अत्यंत उज्जवल भविष्य के नवनिर्माण की कल्पना लिए हुए है.

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