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रक्षा पर ध्यान जरूरी
संसद को दी गयी रिपोर्ट में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने कहा है कि सेना के पास गोला-बारूद की बड़ी कमी है. सेना द्वारा इस्तेमाल किये जानेवाले 152 तरह के गोला-बारूदों का करीब 40 फीसदी गंभीर युद्ध की स्थिति में 10 दिन में ही खत्म हो जायेगा. अन्य 55 फीसदी का जखीरा भी मान्य […]
संसद को दी गयी रिपोर्ट में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने कहा है कि सेना के पास गोला-बारूद की बड़ी कमी है. सेना द्वारा इस्तेमाल किये जानेवाले 152 तरह के गोला-बारूदों का करीब 40 फीसदी गंभीर युद्ध की स्थिति में 10 दिन में ही खत्म हो जायेगा. अन्य 55 फीसदी का जखीरा भी मान्य न्यूनतम स्तर से कम है.
दो साल पहले भी सीएजी की रिपोर्ट में साजो-सामान की कमी को रेखांकित किया गया था. दो परमाणु शक्ति संपन्न पड़ोसियों की आक्रामकता तथा आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियों को देखते हुए जरूरी संसाधनों का अभाव बहुत चिंताजनक है. पिछले दो साल से सेना कमतर गुणवत्ता के आधार पर सरकारी आयुध कारखाने की राइफलें वापस कर रही है. भारी वाहनों की आपूर्ति में देरी हो रही है. आयुध कारखाना बोर्ड के लचर और लापरवाह रवैये पर भी रिपोर्ट में सवाल उठाये गये हैं. वायु सेना और नौसेना ने भी संसाधन देने की गुहार बार-बार लगायी है. हालांकि सेना को तात्कालिक खरीद के अधिकार और धन दिये गये हैं, पर सरकार को खरीद प्रक्रिया को तेज करना चाहिए.
सेनाओं को अधिकारियों की कमी से भी जूझना पड़ रहा है. अप्रैल में सरकार ने संसद में स्वीकार किया था कि नौ हजार से अधिक बड़े अधिकारियों तथा 50 हजार जूनियर कमीशंड अधिकारियों की कमी है. चालू वित्त वर्ष के बजट में सिर्फ वायु सेना के लिए आधुनिकीकरण के मद में अधिक आवंटन किया गया था, जबकि अन्य दो सेनाओं के आवंटन को कम कर दिया गया था.
इस कमी से नये ठेकों की गुंजाइश घट जाती है. पिछले साल के बजट में 70 हजार करोड़ के आधुनिकीकरण कोष का महज 12 फीसदी हिस्सा नये ठेकों के लिए उपलब्ध था. बहरहाल, धन की कमी के साथ कई जानकार रक्षा-संबंधी मामलों में नौकरशाही के अड़ियल रवैये को भी समस्या का कारण मानते हैं. आयुध फैक्टरी बोर्ड ही जरूरतों का आकलन करता है और यह हमेशा ही जमीनी हकीकत से अलग होता है.
रक्षा बजट में इस साल की गयी पांच फीसदी की बढ़ोतरी नाकाफी है. ऐसे में सेना और रक्षा मंत्रालय को क्षमता बढ़ाने के लिए खर्च की समीक्षा भी करनी चाहिए ताकि बेहद जरूरी असलहों और गोला-बारूद का जखीरा कम न हो. सरकार को भी अपने अधीनस्थ रक्षा प्रतिष्ठानों की जवाबदेही तय करनी चाहिए.
वाहनों की आपूर्ति में देरी या खराब स्तर के राइफल बनाने जैसे मामलों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए. बाह्य आक्रमणों और घुसपैठ के साथ आतंकवाद और अलगाववाद से जूझती सेना के पास समुचित संसाधन होंगे, तभी उसका हौसला भी बुलंद रहेगा.
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