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हाल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों का : रात को गेट खुलवाने, डॉक्टरों व नर्सों को खोजने में ही चली जायेगी मरीजों की जान

राज्य सरकार आम लोगों तक स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाने के लिए हर साल करोड़ों रुपये खर्च करती है. ग्रामीण इलाकों के लोगों को बेहतर इलाज उपलब्ध हो, इसके लिए कई योजनाएं बनाती हैं. आधारभूत संरचना के अलावा डॉक्टरों, कर्मचारियों, नर्सों और पारा मेडिकल स्टॉफ की तनख्वाह पर मोटी रकम खर्च करती है. इसके बाद भी पीएचसी […]

राज्य सरकार आम लोगों तक स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाने के लिए हर साल करोड़ों रुपये खर्च करती है. ग्रामीण इलाकों के लोगों को बेहतर इलाज उपलब्ध हो, इसके लिए कई योजनाएं बनाती हैं. आधारभूत संरचना के अलावा डॉक्टरों, कर्मचारियों, नर्सों और पारा मेडिकल स्टॉफ की तनख्वाह पर मोटी रकम खर्च करती है. इसके बाद भी पीएचसी में पदस्थापित मेडिकल स्टॉफ अपनी ड्यूटी सजगता से नहीं करते. ग्रामीणों इलाकों की बात तो दूर, राजधानी से सटे कस्बों में स्थित पीएचसी में डॉक्टर व उनकी टीम अपना काम नहीं करती.
प्रभात खबर के संवाददाता राजीव पांडेय और छायाकार अमित दास ने रांची के आसपास स्थित पीएचसी का शनिवार रात को जायजा लिया, तो चौंकानेवाले तथ्य सामने आये. स्थिति मरीजों के अनुकूल नहीं मिली. पीएचसी के मेन गेट पर ताले लगे थे. कहीं डॉक्टर गायब थे. कहीं डॉक्टर, नर्स और पारा मेडिकल स्टॉफ को कमरे में सोते पाया. आपात स्थिति में अगर किसी मरीज को इन पीएचसी में लाया गया, तो डॉक्टरों, नर्सों को तलाशने और बुलाने में ही उसकी जान जा सकती है.
कहां क्या मिला
कांके
सामुदायिक केंद्र
(रात 11.30 बजे)
इमरजेंसी व वार्ड के गेट पर ताला. कई बार आवाज दी गयी. काफी देर बाद चालक ने गेट खोला, बताया : डॉक्टर सो रही हैं
ओरमांझी सामुदायिक केंद्र
(रात 12.30 बजे)
इमरजेंसी के गेट पर ताला लगा था. करीब 10 मिनट बाद चालक उठा, गेट खोला. बताया कि डॉक्टर सो रहे हैं. वार्ड में छह मरीज थे, नर्स सोती मिली
क्या है व्यवस्था
06 डॉक्टर औसतन एक पीएचसी में तैनात होते हैं
04 नर्सों की होती है ड्यूटी
01 डॉक्टर व 02 नर्सों की तैनाती रात में होती है, इन्हें इमरजेंसी की जिम्मेदारी दी गयी है
01 वाहन चालक भी रहता है, जो मरीजों को गंभीर स्थिति में रिम्स या सदर अस्पताल ले जाये
01 गार्ड की तैनाती भी रहती है

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