‘जीना यहां मरना यहां’, ‘मेरा जूता है जापानी’ और ‘चांद सी महबूबा हो मेरी’ जैसे कई सुपरहिट गानों के सरताज मुकेश माथुर की आवाज आज भी दर्शकों के दिलों में बसती है. उनके नगमें आज भी लोगों के दिलों को सुकून देते हैं. उनके दर्द भरे नगमों ने आज तक सभी को एक समंदर में बांध रखा है. मुकेश का जन्म 22 जुलाई, 1923 को दिल्ली में हुआ था. मुकेश के पिता जोरावर चंद्र माथुर इंजीनियर थे. वे 10 भाई-बहनों में छठे नंबर पर थे. मुकेश को एक गुजराती लड़की सरल पसंद आई थी. वह उन्हीं से शादी करना चाहते थे, लेकिन दोनों परिवार में इस शादी का विरोध हुआ. लेकिन तमाम बंधनों की परवाह किये बिना उन्होंने सरल संग मंदिर में शादी कर ली. खास बात यह है कि मुकेश ने बपने 23वें जन्मदिन 22 जुलाई 1946 को सरल के साथ शादी रचाई थी.
पीडब्लयूडी में की नौकरी
दसवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने पीडब्लूडी में नौकरी शुरू की थी. लेकिन कुछ समय बाद उनकी किस्मत उन्हें मायानगरी मुंबई खींच कर ले आई. वे तो एक अभिनेता बनने का ख्वाब रखते थे लेकिन अपनी मखमली और सुरीली आवाज के कारण गायक बन गये. अपने 40 साल के लंबे करियर में उन्होंने लगभग 200 से ज्यादा गानों को अपनी आवाज दी.
‘दिल जलता है…’
मुकेश माथुर के रिश्तेदार मोतीलाल ही उनके हुनर को पहचानकर उन्हें मुंबई लाये थे. मुकेश ने उन्हें हिंदी सिनेमा में जगह बनाने के लिए प्रयासरत रहे. मुकेश ने वर्ष 1941 में फिल्म ‘निर्दोश’ में बतौर अभिनेता काम किया और गाया भी. हालांकि उनका पहला गाना वर्ष 1945 में फिल्म ‘पहली नजर में’ में गाया. इसक बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और आगे बढ़ते गये. यह गाना ‘दिल जलता है तो जलने दो’ था जिसे मोतीलाल पर ही फिल्माया गया था.
हैरानी की बात यह थी कि उनकी आवाज में केएल सहगल की आवाज की छाप दिखाई देने लगी थी. जब खुद केएल सहगल ने यह गाना गाया तो उन्होंने भी कह दिया था ‘ये गाना मैंने कब गाया’?. वहीं मुकेश केएल सहगल को अपना आदर्श मानते थे.
दर्द भरे दिलों की आवाज थे मुकेश
उनकी दर्द भरे नगमों ने भी लोगों को बांधे रखा. ‘ये मेरा दीवानापन है’, ‘ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना’, ‘दोस्त-दोस्त ना रहा’ और ‘अगर ज़िन्दा हूं मै इस तरह से’ जैसे कई गानों में उन्होंने आदमी के अंदर छुपे दर्द को आवाज दी. अभिनेताओं के सैड किरदार और उसमें मुकेश की आवाज लोगों के आंखों में आंसू ला देती थी. एक और खास बात यह है कि जितनी फिल्मों में उन्होंने गाया, उनमें ज्यादातर फिल्में सुपरहिट रहीं थी. ‘दर्द का बादशाह’ कहे जाने वाले मुकेश आज भी दर्शकों के दिलों में गूंजते हैं.
राजकपूर की आवाज भी बनें
मुकेश की आवाज में सबसे ज्यादा गाने दिलीप कुमार पर फिल्माए गये लेकिन 50 के दशक आते-आते मुकेश को शोमैन राज कपूर की आवाज के नाम से पहचाने जाने लगे. दोनों की दोस्ती बहुत अच्छी थी. दोनों की दोस्ती स्टूडियो तक ही नहीं बल्कि बाहर भी थी. दोनों एकदूसरे की मदद करने के लिए तैयार रहते थे. राजकपूर और मुकेश की जोड़ी ने बॉलीवुड को कई बेहतरीन गीत दिए. मुकेश को बचपन से अभिनय का शौक था. उन्होंने दो फिल्मों ‘माशूका’ और ‘अनुराग’ में बतौर लीड हीरो काम किया लेकिन दोनों की फिल्में औंधे मुंह गिरी. ऐसे में उन्हें आर्थिक तंगी का सामना भी किया था. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार एक इटंरव्यू में खुद राज कपूर ने अपने दोस्त मुकेश के बारे में कहा है कि मैं तो बस शरीर हूं मेरी आत्मा तो मुकेश है.
मुकेश के सुपरहिट गीत
‘चांद सी महबूबा’, ‘एक प्यार का नगमा’, ‘जाने कहां गए वो दिन’, ‘एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल’, ‘सबकुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी’, ‘कहीं दूर जब दिन ढल जाए’, ‘मैं ना भूलूंगा’, ‘एक प्यार का नगमा’, झूमती चली हवा याद आ गया कोई, डम डम डिगा डिगा, कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है, किसी राह में किसी मोड़ पर, वक्त करता जो वफा, मैंने तेरी लिये ही, धीरे-धीरे बोल कोई सुन न ले, फूल तुम्हें भेजा है खत में… जैसे कई शानदार नगमों को अपनी आवाज दी.
फिल्मफेयर पानेवाले पहले पुरुष गायक
मुकेश को संगीत की दुनियां में बेस्ट सिंगर का फिल्मफेयर अवार्ड मिला था. ये बात कम ही लोगों जानते हैं कि मुकेश को फिल्म ‘अनाड़ी’ फिल्म के ‘सब कुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी…’ गाने के लिए बेस्ट प्लेबैक सिंगर का फिल्मफेयर अवार्ड मिला था. मुकेश फिल्मफेयर पुरस्कार पाने वाले पहले पुरुष गायक थे. वहीं मुकेश के जिगरी यार राजकपूर को भी इसी फिल्म के लिए पहला फिल्मफेयर अवार्ड मिला था.
..और खामोश हुई यह जादुई आवाज
उनकी आवाज जल्द ही पुरी दुनियां में मशहूर हो गई थी. 27 अगस्त 1976 को अचानक दिल का दौरा पडने से उनका निधन हो गया. उनके निधन की खबर सुनकर राजकपूर अंदर से इतना दुखी हुए थे कि उनके मुंह से अचानक निकला था,’ आज मैंने अपनी आवाज खो दी…’