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विजय शर्मा : एक वर्ष में लिख दी 10 पुस्तकें

– अखिलेश्वर पांडेय- यूं तो लौहनगरी जमशेदपुर की उर्वरा धरती पर एक से एक ख्यातिलब्ध साहित्यकार-लेखक हुए हैं पर कुछेक ने तो इतना उल्लेखनीय कार्य किया कि राष्ट्रीय पटल पर उनकी चर्चा होती है. कथाकार, लेखिका व अनुवादक विजय शर्मा एक वर्ष में विभिन्न विषयों पर 10 पुस्तकें लिखकर साहित्य जगत में इन दिनों चर्चा […]

– अखिलेश्वर पांडेय-

यूं तो लौहनगरी जमशेदपुर की उर्वरा धरती पर एक से एक ख्यातिलब्ध साहित्यकार-लेखक हुए हैं पर कुछेक ने तो इतना उल्लेखनीय कार्य किया कि राष्ट्रीय पटल पर उनकी चर्चा होती है. कथाकार, लेखिका व अनुवादक विजय शर्मा एक वर्ष में विभिन्न विषयों पर 10 पुस्तकें लिखकर साहित्य जगत में इन दिनों चर्चा का विषय बन गयी हैं. देश-विदेश से साहित्यकारों, लेखकों व प्रशंसकों से उन्हें बधाइयां मिल रही हैं. इस वर्ष अभी तक उनकी चार पुस्तकें आ चुकी हैं व आगामी पांच महीनों में छह और पुस्तकें प्रकाशित होने वाली हैं.
चार प्रकाशित, छह शीघ्र प्रकाश्य
इस वर्ष अभी तक प्रकाशित हो चुकी पुस्तकों में – विश्व सिनेमा : कुछ अनमोल रत्न सिनेमा पर (अनुज्ञा प्रकाशन), तीसमार खां एवं अन्य कहानियां (अनन्य प्रकाशन), देवदार के तुंग शिखर से – साहित्यकारों की शताब्दी व द्विशताब्दी (अनुज्ञा प्रकाशन), सात समुंदर पार से – प्रवासी रचनाकारों पर (यश प्रकाशन) शामिल हैं. जबकि इस वर्ष के अंत तक विभिन्न प्रकाशनों से छह और पुस्तकें आने वाली हैं. आगामी पुस्तकें विश्व की महान नृत्यांगनाएं, स्त्री केंद्रित विश्व सिनेमा, नोबेल साहित्यकारों के काम पर आलेख, विश्व की चुनी हुई कहानियों का अनुवाद, होलोकास्ट सिनेमा, महाभारत की स्त्री (अनुवाद) विषयों पर आधारित हैं.
दिन-रात लेखन
एक साल में दस किताबें प्रकाशित होना किसी भी लेखक और साहित्यकार के लिए बड़ी उपलब्धि है, पर विजय के पैर अभी भी जमीन पर ही हैं. जाहिर सी बात है इसके पीछे दिन-रात का परिश्रम है. दिन-रात साहित्य और लेखन में डूबी रहने वाली विजय शर्मा से जब मैंने पूछा कि आखिर यह कैसे संभव हुआ? तो बिना इतराए उनका जवाब था ‘यह संभव हो सका है बरसों के अध्ययन, मनन-चिंतन एवं कड़ी मेहनत के फलस्वरूप. यह संभव हुआ है परिवार के सहयोग तथा प्रेम के कारण और प्रकाशकों की कृपा से. यह संभव हुआ है पाठकों के असीमित प्यार-प्रेम से, आलोचकों व मित्रों की शुभेच्छा से.’
500 आलेख लिख चुकी हैं
विजय शर्मा साहित्य व लेखन से तकरीबन 40 साल से जुड़ी हैं पर पहली पुस्तक प्रकाशित हुई वर्ष 2007 में नाम था ‘लौह शिकारी’. उसके बाद वर्ष दर वर्ष पुस्तकें आती रहीं – अपनी धरती, अपना आकाश : नोबेल के मंच से (संवाद प्रकाशन), अफ़्रो-अमेरिकन : स्त्री स्वर (वाणी प्रकाशन), वॉल्ट डिज़्नी : ऐनीमेशन का बादशाह (वाणी प्रकाशन), स्त्री, साहित्य और नोबेल पुरस्कार (भारतीय ज्ञानपीठ). विभिन्न विषयों पर अब तक करीब 500 आलेख लिख चुकी विजय बहुभाषीय साहित्यिक संस्था सहयोग की पूर्व अध्यक्षा हैं. लोयोला बीएड कॉलेज से सेवानिवृत विजय न्यू सीतारामडेरा में रहती हैं और साहित्यिक संस्था ‘सृजन संवाद’ की संस्थापिका हैं. वे सिनेमा इन एजुकेशन कार्यक्रम का संचालन भी करती हैं.

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