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परेसानी: ‘देस’ जाना पहाड़ हुआ डुवार्स के आदिवासियों का, वैकल्पिक रूट से ट्रेन चलाने की मांग, महीनों से बंद है कामख्या-रांची एक्सप्रेस

सिलीगुड़ी : बरसों पहले झारखंड छोड़ कर डुवार्स के चाय बागानों तथा अन्य स्थानों पर काम करने आये आदिवासियों का सीधा संपर्क इन दिनों झारखंड से टूट गया है. 15 जून से ही डुवार्स के आदिवासियों को झारखंड से जोड़ने वाली ट्रेन कामाख्या-रांची एक्सप्रेस नहीं चल रही है. जिससे लाखों लोग अपने घर नहीं जा […]

सिलीगुड़ी : बरसों पहले झारखंड छोड़ कर डुवार्स के चाय बागानों तथा अन्य स्थानों पर काम करने आये आदिवासियों का सीधा संपर्क इन दिनों झारखंड से टूट गया है. 15 जून से ही डुवार्स के आदिवासियों को झारखंड से जोड़ने वाली ट्रेन कामाख्या-रांची एक्सप्रेस नहीं चल रही है. जिससे लाखों लोग अपने घर नहीं जा पा रहे है. आम तौर पर बोलचाल की भाषा में डुवार्स में रहनेवाले आदिवासी झारखंड को अपना ‘देस’ कहते हैं. इनलोगों का कहना है कि जब कमाख्या-रांची एक्सप्रेस चलती थी, तब जब इच्छा अपने देस चले जाते थे. ट्रेन के बंद होने के बाद उन्हें एक बार फिर से परदेशी होने का एहसास हो रहा है.
उल्लेखनीय है कि डुवार्स में छह विधानसभा सीटें तथा एक सांसद सीट है. यहां लाखों लोग झारखंड से आकर रह रहे हैं. झारखंड की राजधानी रांची तथा अन्य स्थानों पर आने-जाने के लिए यह लोग मुख्य रूप से कामाख्या-रांची एक्सप्रेस ट्रेन उपयोग करते थे. रेलवे सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, कमाख्या-रांची एक्सप्रेस के अलावा एनजेपी से एक साप्ताहिक ट्रेन एनजेपी-रांची एक्सप्रेस चलती है. डुवार्स के लोगों का कहना है कि कामाख्या-रांची एक्सप्रेस बंद होने से वहां जाने में काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है. एकमात्र सहारा बस अथवा एनजेपी-रांची एक्सप्रेस है. इसमें से एनजेपी-रांची एक्सप्रेस ट्रेन का समय ऐसा है कि डुवार्स से एनजेपी आकर इसको पकड़ पाना काफी मुश्किल है. तड़के करीब पांच बजे यह ट्रेन एनजेपी से खुलती है.
इस ट्रेन को पकड़ने के लिए डुवार्स के लोगों को एक दिन पहले ही एनजेपी स्टेशन पहुंचना पड़ता है. इसके अलावा इस ट्रेन का परिचालन बरौनी, झांझा होते हुए है. इसमें वक्त काफी लगता है. जहां एनजेपी से रांची कमाख्या-रांची एक्सप्रेस से 17 घंटे में तय हो जाती थी, वहीं इस ट्रेन से 21 घंटे से भी अधिक का समय लग जाता है. ऊपर से एक दिन पहले शाम को एनजेपी स्टेशन आकर रातभर स्टेशन पर बिताना पड़ता है. इस ट्रेन के रांची पहुंचने का समय भी ठीक नहीं है. सुबह करीब तीन बजे ट्रेन रांची पहुंचती है. सुबह होने तक स्टेशन पर ही इंतजार करना पड़ता है. जाहिर है डुवार्स से रांची पहुंचने में करीब 40 घंटे लग जाते है. बस सेवा की भी ऐसी ही स्थिति है. सिलीगुड़ी से मात्र एक बस दिन के करीब साढ़े 12 बजे रांची के लिए खुलती है. डुवार्स से तीन-चार घंटे का समय तय कर बस पकड़ने के लिए सिलीगुड़ी आना पड़ता है. इससे पैसे और समय दोनों की बर्बादी होती है. स्थानीय आदिवासी यहां के जनप्रतिनिधियों से तत्काल रांची-कमाख्या एक्सप्रेस ट्रेन को चलाने की मांग कर रहे हैं. उसके बाद भी जनप्रतिनिधियों द्वारा अब तक इस मुद्दे को नहीं उठाये जाने से डुवार्स के आदिवासियों में काफी नाराजगी है.
ऑल इंडिया ट्राइबल वेलफेयर सोसायटी के महासचिव पिंटु एक्का का कहना है कि डुवार्स के एक सांसद दशरथ तिरकी तथा राज्यमंत्री जेम्स कुजूर आदिवासी हैं, उसके बाद भी वे इस मुद्दे को नहीं उठा रहे हैं. इस मामले को राज्य के साथ साथ केंद्र सरकार के समक्ष भी उठाना चाहिए. श्री एक्का ने आगे कहा कि हासीमारा, अलीपुरद्वार, मालबाजार, जयगांव, राजाभातखावा आदि इलाकों में लाखों की संख्या में आदिवासी रहते हैं, जिनके तार अभी भी झारखंड से जुड़े हुए हैं. कई बार सांसद दशरथ तिरकी तथा मंत्री जेम्स कुजूर से इस मामले को लेकर बात की गयी है, लेकिन दोनों चुप्पी साधे हुए हैं. भाजपा के आदिवासी विधायक मनोज टिग्गा को भी इस समस्या की जानकारी दी गयी है. उन्होंने भी इस मामले को प्रमुखता नहीं दी. इन तमाम वजहों से इन जनप्रतिनिधियों के प्रति आदिवासी समाज में काफी रोष है.
आदिवासी विकास परिषद के नेता तथा राज्य सरकार द्वारा गठित आदिवासी विकास बोर्ड के चेयरमैन बिरसा तिर्की ने भी इस ट्रेन को बंद किये जाने पर अपनी नाराजगी जतायी है. उन्होंने कहा है कि यूपीए-1 सरकार में तत्कालीन रेलमंत्री लालू यादव से लगातार मांग करने के बाद इस ट्रेन को चलाने का निर्णय लिया गया था. पहले सप्ताह में एक बार, बाद में इसे सप्ताह में दो बार चलाया जाने लगा. वह कामाख्या-रांची एक्सप्रेस को हर दिन चलाये जाने की मांग कर रहे थे. अब इस ट्रेन को ही बंद कर दिया गया है. इससे डुवार्स के लाखों आदिवासी अपनी मूलभूमि झारखंड से कट गये हैं. श्री तिर्की ने कहा कि वह अभी कोलकाता में हैं और डुवार्स पहुंचते ही पूरे मामले की जानकारी पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे से लेंगे. उसके बाद रेलमंत्री सुरेश प्रभु को पत्र लिख कर ट्रेन चलाने की मांग करेंगे.
क्यों बंद है ट्रेन
गौरतलब है कि धनबाद-चंद्रपुरा रेल रूट को 15 जून से बंद कर दिया गया है. रेलवे के चीफ सेफ्टी कमिश्नर ने इस रूट को खतरनाक बताया है. जहां से रेल की पटरियां गुजरती हैं, उसके नीचे कोयला खदानों की वजह से आग लगी हुई है. सुरक्षा की दृष्टिकोण से रेलवे ने इस रूट को बंद करने का निर्णय लिया. 15 जून के रात 12 बजे से इस रूट पर ट्रेनों की आवाजाही बंद कर दी गयी है.
क्या है विकल्प
डुवार्स के लेागों का कहना है कि इस ट्रेन को बंद कर देना समस्या का समाधान नहीं है. कामाख्या-रांची एक्सप्रेस को रेलवे चाहे तो दूसरे रूट से भी चला सकता है. ट्रेन को धनवाद से गोमो एवं चंद्रपुरा होते हुए वाया बोकारो, मुरी, रांची चलाया जा सकता है. इसके अलावा आसनसोल से इस ट्रेन को जरंडी पहाड़, भोजुडीह तथा बोकारो होकर रांची के लिए रवाना किया जा सकता है.
क्या कहते हैं सीपीआरओ
पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे के सीपीआरओ प्रणव ज्योति शर्मा का कहना है कि कामाख्या-रांची एक्सप्रेस को बंद करने का निर्णय सुरक्षा कारणों से साउथ इस्टर्न रेलवे ने लिया है. इसमें पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे की कोई भूमिका नहीं है. रेलवे मंत्रालय से अब तक इस ट्रेन को चलाने के लिए नये सिरे से कोई अधिसूचना जारी नहीं की गयी है. अधिसूचना जारी होते ही निर्धारित रूट से ट्रेन का परिचालन शुरू कर दिया जायेगा.
क्या कहते हैं बिरसा तिर्की
आदवासी विकास परिषद के अध्यक्ष बिरसा तिर्की का कहना है कि वह इस ट्रेन को रोज चलने की मांग कर रहे थे. अब रेलवे ने इस ट्रेन को ही बंद कर दिया है. वह पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे से संपर्क करेंगे. केंद्रीय रेलमंत्री सुरेश प्रभु को इस समस्या के समाधान के लिए पत्र भी लिखेंगे.

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