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शिक्षण संस्थाओं में बढ़ रही अनुशासनहीनता, नशे के आदी विद्यार्थियों को अनुशासन का पाठ पढ़ाने पर शिक्षक की पिटाई

कूचबिहार. इन दिनों बंगाल के शिक्षण संस्थाओं में अनुशासनहीनता लगातार बढ़ रही है. यह शिक्षाविदों और प्रबुद्ध नागरिकों के लिए अत्यंत चिंता का विषय बनता जा रहा है. इस अनुशासनहीनता की मिसाल बुधवार को कूचबिहार के पुंडीबाड़ी स्थित राममोहन लाखोटिया उच्च माध्यमिक विद्यालय में देखने को मिला. नशे के आदी कई स्कूली विद्यार्थियों ने इस […]

कूचबिहार. इन दिनों बंगाल के शिक्षण संस्थाओं में अनुशासनहीनता लगातार बढ़ रही है. यह शिक्षाविदों और प्रबुद्ध नागरिकों के लिए अत्यंत चिंता का विषय बनता जा रहा है. इस अनुशासनहीनता की मिसाल बुधवार को कूचबिहार के पुंडीबाड़ी स्थित राममोहन लाखोटिया उच्च माध्यमिक विद्यालय में देखने को मिला.

नशे के आदी कई स्कूली विद्यार्थियों ने इस रोज विज्ञान के शिक्षक की जमकर धुनाई कर दी. शिक्षक का इतना ही अपराध था कि उन्होंने मंगलवार को स्कूल में अरण्य सप्ताह कार्यक्रम के दौरान इन छात्रों को नशा से परहेज करने के लिए हिदायत दी थी. शिक्षक को क्या पता था कि इसकी उन्हें इतनी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी. मारपीट की इस घटना में विज्ञान के शिक्षक के अलावा उन्हें बचाने गये चार और शिक्षकों की भी छात्रों ने पिटाई कर दी थी. इस घटना के विरोध में गुरुवार को स्कूल के सभी शिक्षकों ने सामूहिक अवकाश लेकर अपना प्रतिवाद जताया है.

अनुशासनहीनता की समस्या अब इन शिक्षक संस्थाओं में इतनी ज्यादा बढ़ गयी है कि ऐसे छात्र अपने सम्माननीय शिक्षकों तक को नहीं बख्श रहे हैं. इन पर हाथ उठाना अब जैसे कोई नयी बात नहीं रह गयी है. ऐसे में सवाल उठता है कि शिक्षा का वातावरण इस तरह का आखिर क्यों होते जा रहा है. कई शिक्षा प्रेमियों का मानना है कि वर्तमान शिक्षण संस्थाओं में अनुशासनहीनता अचानक पैदा नहीं हुई है, बल्कि यह समाज के गिरते हुए मूल्यबोध का ही दुष्परिणाम है. हालांकि अभी तक माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालय व्यापक हिंसा की घटनाओं से अछूते हैं, लेकिन बीच-बीच में होने वाली इस तरह की घटनाएं आने वाले कल के बारे में गंभीर चिंता जगाती हैं. एक तरफ जहां समाज के नैतिक मूल्यों में तेजी से गिरावट आ रही है, वहीं कॉलेज और विश्वविद्यालय जैसे उच्च शिक्षण संस्थाओं में दलीय राजनीति के प्रवेश से माहौल दिनोंदिन खराब होता जा रहा है. विभिन्न राजनीतिक दल अपने निहित स्वार्थ के लिए विद्यार्थियों और समाजविरोधी तत्वों का इस्तेमाल कर रहे हैं. यही वजह है कि इन उच्च शिक्षण संस्थाओं में राजनीतिक संघर्ष की घटनाएं दिनोंदिन बढ़ती जा रही हैं. इसका असर माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक विद्यालयों के शैक्षणिक परिवेश पर पड़ रहा है.
उक्त घटना में यदि देखा जाय तो विज्ञान शिक्षक की कहीं कोई गलती नहीं है, बल्कि शिक्षक ने नशा के आदी छात्र को उसी के हित में समझाने की कोशिश की थी. लेकिन उस छात्र ने इसे अपनी तौहीन समझते हुए शिक्षक समाज को ही अपनी पाशविकता को ही जाहिर किया है. यह अनुशासनहीनता कोई एक दिन में पनपी नहीं होगी. यदि शुरू में प्राथमिक स्तर पर ही विद्यार्थियों को अनुशासन का पाठ पढ़ाया गया होता, तो शायद शिक्षकों के साथ मारपीट की घटना नहीं घटती. कुछ हद तक तो इस समस्या के लिए अभिभावक वर्ग भी दोषी है. पहले जब कोई शिक्षक किसी विद्यार्थी को शैतानी करने के लिए दंडित करते थे, तो अभिभावक उसमें हस्तक्षेप नहीं करते थे. लेकिन अब मानसिकता बदल रही है. छात्र-छात्राओं को यदि कोई शिक्षक जोर से डांट भी देता है तो अभिभावक शिकायत लेकर प्रधान शिक्षक के पास पहुंच जाते हैं. इससे लापरवाह और अनुशासनहीन विद्यार्थियों को प्रोत्साहन ही मिलता है.

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