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मूंछों की गवाही !

बिहार के उपमुख्यमंत्री आज कल घपलों पर उठे सवालों के जवाब देने में व्यस्त हैं. जवाबों के पक्ष में ‘मूंछें’ भी आ खड़ी हुई हैं. सवाल उठता है कि मूंछें निकली नहीं तो घपला कैसे हो सकता है. बड़े भोले हैं बिहार के उपमुख्यमंत्री! किसी अपराध को अंजाम देने के लिए मूंछों का होना जरूरी […]

बिहार के उपमुख्यमंत्री आज कल घपलों पर उठे सवालों के जवाब देने में व्यस्त हैं. जवाबों के पक्ष में ‘मूंछें’ भी आ खड़ी हुई हैं. सवाल उठता है कि मूंछें निकली नहीं तो घपला कैसे हो सकता है. बड़े भोले हैं बिहार के उपमुख्यमंत्री! किसी अपराध को अंजाम देने के लिए मूंछों का होना जरूरी नहीं.
निर्भया कांड के मुख्य आरोपी को भी मूंछें नहीं थी, मगर अपराध तो जघन्य था. जब ‘तेजस्वी’ के नाम करोड़ों की बेनामी संपत्ति आयी, उस वक्त उनकी मूंछें नहीं थी. मगर मालिक होने से किसी ने नहीं रोका. ‘मूंछों कि गवाही’ कहती है कि जिम्मेवारी तो उन वरिष्ठों की है जिन्होंने इस अबोध को बलि का बकरा बना दिया. क्या पक्ष क्या विपक्ष हर बार बिहार कटघरे में खड़ा दिखा. शह और मात के खेल में मात तो हमेशा ‘बिहारियत’ की ही हुई है.
एमके मिश्रा, रातू, रांची

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