सोनो (जमुई) : गांव में खेती व मजदूरी से लेकर जंगल के सरताज बनने तक के एक दशक से भी अधिक का सुरंग का सफर बेहद काला रहा. इस दौर में दर्जनों नक्सली घटनाओं को सुरंग द्वारा अंजाम दिया गया. इनमें कई जघन्य हत्याएं भी शामिल हैं. संगठन में शामिल होने के बाद चिराग दा के संसर्ग में उसने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा और लगभग एक दशक के बाद उसकी कुशलता को देखते हुए संगठन ने चिराग दा की मौत के बाद सुरंग पर जमुई जिले के कई थाना क्षेत्रों के अलावा झारखंड के सीमावर्ती क्षेत्र का एरिया कमांडर बना दिया. इस एक दशक के सफर में वह जंगल के सरताज के रूप में लाल आतंक बन गया.
ननिहाल में मां के साथ रहते थे सुरंग के बच्चे
लगभग 25 वर्ष की उम्र में नक्सली संगठन में जाने से पहले वह खेती व मजदूरी करता था. चरकापत्थर थाने की रजौन पंचायत अंतर्गत नावाआहार गांव में वह परिवार के साथ खुशहाल था. लगभग 60 घरवाले यादवों के इस गांव में उसके पिता ने अपने पूर्वजों की खेती को संजोने का प्रयास किया. घर में संपन्नता नहीं थी, फिर भी सुरंग का किसी तरह गुजर बसर हो रहा था. गांव व घर की तंग स्थिति के बीच वह पढ़ाई नहीं कर सका. उसकी शादी इसी थाना क्षेत्र की नैयाडीह पंचायत के बरियारपुर गांव में हुई थी. आज से एक दशक पूर्व जब वह नक्सल संगठन से जुड़ा था, तब उसके दो बच्चे थे. आज सुरंग को चार संताने हैं. इनमें दो बेटा व दो बेटी है. बड़ी पुत्री काजल कुमारी (नौ वर्ष), पुत्र कुंदन (सात वर्ष), पुत्र पवन (छह वर्ष) और सबसे छोटी संतान करिश्मा (चार वर्ष) है. सभी बच्चे अपनी मां घुघनी देवी के साथ अपने ननिहाल बरियारपुर में रहते हैं.
सुरंग के पिता भी उसे लगाते थे फटकार
सुरंग के पिता व रजौन पंचायत के उपमुखिया 70 वर्षीय अयोध्या यादव ने बताया कि एक दशक पूर्व वह दो से ढाई बीघा जमीन पर खेती करके अपने छह बच्चों की देखभाल में लगे थे. दूसरों के खेत में मैं और मेरा बड़ा पुत्र सुरंग मजदूरी भी कर लेते थे. इसके अलावा उनके अन्य चार पुत्र मेघो यादव, केवली यादव, भुना यादव व दौलत यादव भी ज्यों-ज्यों बड़े होते गये, काम में सहयोग करने लगे. उन्होंने बताया कि सुरंग की एक बहन भी है. सब कुछ ठीक चल रहा था, तभी सुरंग का संपर्क चिराग से हुआ. इसके बाद वह अपने अन्य साथियों सोदी यादव, गोभी यादव व कांग्रेस यादव के साथ नक्सली संगठन में शामिल हो गया. उसके पार्टी में जाने से नाराज पिता ने उसे घर व जमीन बांट कर अलग कर दिया था. यदा-कदा जब वह रात्रि में घर आता भी था, तो महज कुछ घंटों के लिए. इस मुद्दे पर मैं उसे बराबर फटकार लगाता था.
सुरंग पर दर्ज हैं करीब तीन दर्जन मामले
सुरंग के नक्सल संगठन में शामिल होने के बाद पुलिस के बार-बार सर्च ऑपरेशन से परेशान उसके सभी भाई दिल्ली जैसे शहर में मजदूरी करने लगे. उन्होंने बताया कि उसके पुत्र ने भले ही कई नक्सली घटनाओं को अंजाम दिया, लेकिन गांव में उसने किसी को कोई क्षति नहीं पहुंचायी. सुरंग को इस बीच अपने पड़ोसी गांव विशनपुर के कोल्हा यादव, नरेश यादव, तूफानी यादव, लालो यादव व लाखेंद्र यादव का भी साथ मिला. फिर क्या था उसने इस इलाके में कहर बरपाना शुरू कर दिया था. वर्ष 2009 में सोनो चौक पर गश्ती पार्टी पर हमला कर एक पुलिस अधिकारी के अलावा चार जवानों की हत्या कर हथियार लूटने की घटना में शामिल होकर उसने बड़ी घटना को अंजाम दिया था. इसके बाद तो अपराध का जो सिलसिला शुरू हुआ, उसने थमने का नाम ही नहीं लिया. उस पर विभिन्न थानों में तकरीबन तीन दर्जन मामले दर्ज है. फिलवक्त पुलिस उसके अपराध की जन्म कुंडली खंगालने में लगी है.
सिमराढाब में पुलिस मुठभेड़ में बच गया था सुरंग
पिछले वर्ष 2016 में झारखंड के सीमावर्ती जंगली क्षेत्र सिमराढाब में नक्सलियों के साथ पुलिस की हुई मुठभेड़ में नक्सली कमांडर दिनेश पंडित व उसका एक साथी मारा गया था. उस मुठभेड में सुरंग बाल बाल बच गया था. दरअसल जब पुलिस के साथ मुठभेड़ हुई थी, उस वक्त सुरंग भी दिनेश पंडित के साथ ही था. पुलिस की गोलीबारी में सुरंग बाल-बाल बच गया था. उस दिन उसने मौत को बेहद करीब से देखा था. उसके पिता ने बताया कि उस घटना के बाद वे काफी विचलित हुए थे और उन्हें लगा था कि अब सुरंग ज्यादा दिन नहीं बच पायेगा. इसके बाद उन्होंने सरेंडर के लिए उसे मनाने का मन बनाया था.
थाने में सशंकित है सुरंग की पत्नी
पिछले दो दिनों से सुरंग की पत्नी घोघनी देवी बेहद मानसिक उथल-पुथल के दौर से गुजर रही है. नक्सल एरिया कमांडर सुरंग को लेकर उसकी पत्नी घोघनी देवी, पिता अयोध्या यादव, सुरंग का बच्चा सहित अन्य परिजन चरकापत्थर थाने में जमे हैं. थाना परिसर में पेड़ के नीचे बने चबूतरा पर बैठी अपने पति से मिलने की इंतजार कर रही सुरंग की पत्नी की आंखों में कभी अश्रु की धारा बहने लगती है, तो कभी उम्मीदें भी साफ दिखती हैं. उसे जब यह अहसास होता है कि पुलिस उसकी गिरफ्तारी व उसके बाद की प्रक्रिया अपनायेगी, तब वह फुट-फुट कर रोने लगती है. लेकिन, जब उसके अन्य परिजन उसे समझाते है कि सरेंडर के बाद अब वह सुरक्षित है, तब उसकी आंखों में अपने पति के जीवन बचने की उम्मीद दिखने लगती है. मां को रोते देख उसका छह वर्ष का बेटा पवन भी रोने लगता है. सुरंग के परिजन पुलिस की तमाम प्रक्रिया से दिन भर सशंकित रहे. दरअसल दिन भर पुलिस पदाधिकारियों के आगमन व सुरंग से पूछताछ की प्रक्रिया उसे विचलित कर रही थी.
अपने कार्य में माहिर था सुरंग
हार्डकोर नक्सली सुरंग दिखने में भले ही दुबला पतला बेहद साधारण लगता है, लेकिन उसका कार्य बेहद शातिराना होता था. पढ़ाई में जीरो रहते हुए भी उसने अपने तेज बौद्धिक शक्ति का उपयोग कर नक्सल संगठन में एक अहम स्थान बनाते हुए क्षेत्र की पुलिस व सुरक्षाबलों को बड़ी चुनौती दी थी. चिराग दा जैसे जोनल कमांडर के सानिध्य में उसने बड़ी-बड़ी नक्सली घटनाओं को अंजाम दिया था. इसमें कई लोगों की हत्या की घटनाएं भी शामिल हैं.
झारखंड पुलिस सहित कई पदाधिकारियों ने सुरंग से की पूछताछ
चरकापत्थर थाने में सुरंग यादव से झारखंड के गिरिडीह जिले के एएसपी (अभियान) ने भी काफी देर पूछताछ की. दरअसल, गिरिडीह जिले के भेलवाघाटी थाने में भी उसके ऊपर कई मामले दर्ज हैं. इसके अलावा एसएसबी व सीआरपीएफ के भी वरीय अधिकारी चरकापत्थर पहुंच कर सुरंग से पूछताछ कर रहे हैं. समझा जा सकता है कि पुलिस द्वारा उसके तमाम साथियों के ठिकानों, तमाम गतिविधियों व नक्सल योजनाओं के बारे में पूछताछ की जा रही होगी. निसंदेह, पुलिस को नक्सलियों के विरुद्ध कई अहम जानकारियां सुरंग से मिल सकती हैं.
संगठन में विवाद के बाद अलग हुआ सुरंग
चरकापत्थर व इसके समीपवर्ती बड़े इलाके का नक्सल एरिया कमांडर बना सुरंग का संगठन के कुछ लोगों से अनबन चल रहा था. सूत्र बताते हैं कि बढ़ते विवाद के बाद सुरंग ने अपने हथियार व लेवी सहित तमाम हिसाब-किताब संगठन को सौंप दिया. इसके बाद उसने अलग होने का मन बना लिया था. चर्चा यह भी है कि नक्सली कमांडर सिद्धू कोड़ा से भी उसकी अनबन चल रही थी. पुलिस के समक्ष उसके आने का एक कारण यह भी माना जा रहा है.