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देश में लगी नफरत की आग को बुझाइए

– अफ्फान नोमानी- सोने की चिड़ियां व रंग- बिरंगे फूलों का बगीचा कहा जाने वाला मुल्क भारत आज जिस परिस्थितियों से गुजर रहा है, उसके वर्णन की शुरुआत मैं पूर्व राष्ट्रपति डॉ जाकिर हुसैन द्वारा कहे अन्त:करण को झिंझोड़ देने वाला कथनों से करना चाहूंगा. 17 नवंबर 1946 को दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे के बाद […]

– अफ्फान नोमानी-

सोने की चिड़ियां व रंग- बिरंगे फूलों का बगीचा कहा जाने वाला मुल्क भारत आज जिस परिस्थितियों से गुजर रहा है, उसके वर्णन की शुरुआत मैं पूर्व राष्ट्रपति डॉ जाकिर हुसैन द्वारा कहे अन्त:करण को झिंझोड़ देने वाला कथनों से करना चाहूंगा. 17 नवंबर 1946 को दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे के बाद देश की बड़ी प्रसिद्ध विभूतियां, प्रबुद्धजनों व प्रसिद्ध लेखकों व चिंतकों द्वारा दिल्ली में आयोजित विशाल जन – सभा में भव्य जन-समूह ( पंडित जवाहर लाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आजाद, राजगोपालाचार्य, मिस्टर जिनाह, अल्लामा सैयद सुलेमान नदवी , बाबा-ए-उर्दू अब्दुल हक, प्रसिद्ध शायर हफ़ीज़ जालंधरी, सर शेख अब्दुल कादिर, सम्पादक, मासिक पत्रिका मखजन, लाहौर, मौलाना कारी मुहम्मद तैयब, प्राचार्य, दारुल उलुम देवबंद और अनेक शीर्ष राजनीतिज्ञ मौजूद थे ) को संबोधित करते डॉ जाकिर हुसैन ने हुए कहा था – " आप सभी महानुभाव राजनैतिक आकाश के नक्षत्र हैं, लाखों नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों के मन में आपके लिए प्रतिष्ठा व्याप्त है. आप की यहां उपस्थिति का लाभ उठाकर मैं शैक्षिक कार्य करनेवालों की ओर से बड़े ही दुख: के साथ कुछ शब्द कहना चाहता हूं.
आज देश में आपसी नफरत की आग भड़क रही हैं. इसमें हमारा चमनबंदी का कार्य दीवानापन मालूम होता है. यह शराफत और इंसानियत के जमीर को झुलसा देती है. इसमें नेक और संतुलित स्वभाव की विभूतियों के नये पुष्प कैसे पुष्पित होंगे ? जानवर से भी अधिक नीच आचरण पर हम मानवीय सदाचरण को कैसे संवार सकेंगे ? जानवरों की दुनिया में मानवता को कैसे संभाल सकेंगे ? ये शब्द कुछ कठोर लगते हो, किंतु ऐसी परिस्थितियों के लिए, जो हमारे चारों ओर फैल रही है, इससे कठोर शब्द भी बहुत नर्म होते हैं. हम जो काम के तकाजों से बच्चों का सम्मान करना सीखते है, उनको क्या बतायें कि हम पर क्या गुजरती है ?

जब हम सुनते हैं कि पशुता के इस संकट में निर्दोष बच्चे भी सुरक्षित नहीं हैं. शायरे-हिन्दी ने कहा था कि – हर बच्चा, जो संसार में आता है, अपने साथ यह संदेश लाता है कि खुदा अभी इंसान से निराश नहीं हुआ है . लेकिन क्या हमारे देश का इंसान अपने आपसे इतना निराश हो चुका है कि इन निर्दोष कलियों को भी खिलने से पहले ही मसल देना चाहता है ? खुदा के लिए सिर जोड़ कर बैठिये और इस आग को बुझाइये . यह समय इस खोजबीन का नहीं कि आग किसने लगाई ? कैसे लगी ? आग लगी हुई है ,उसे बुझाइये. "

डॉ जाकिर हुसैन के यह विचार देश की वर्तमान स्थिति में पहले की अपेक्षा आज अधिक उपयोगी एवं प्रासंगिक होते है. वर्तमान में मुल्क में जिस तरह की धार्मिक हिंसा, नफरत , अमर्यादित कटु भाषा का इस्तेमाल व नैतिक पतन में बढ़ोतरी हुई है , वह चिंता का विषय है . जब किसी समाज में जुल्म फैलाने लगा हो और पसंदीदा निगाहों से देखा जाने लगा हो, जब अत्याचार का का मापदंड यह बन गया हो कि जालिम कौन है ? उसकी कौमियत क्या है ? वह किस वर्ग का है ? उसकी भाषा क्या है ? किस बिरादरी का है ? तो मानवता के लिए एक खतरा पैदा हो जाता है .

जब न्याय का मापदंड कौम, संप्रदाय और बिरादरी पर आधारित हो जाता है तो उस वक्त समाज को कोई सरमाया कोई योजना बचा नहीं सकती . जालिम कोई भी हो उसको जुल्म से रोका जाये. यदि समाज में यह नैतिक बल और निष्पक्ष भाव तथा निष्ठा की भावना पैदा हो जाये तो समाज बच सकता है और अगर यह नहीं है तो दुनिया की कोई भी ताकत इस समाज को नहीं बचा सकती, आज हिन्दुस्तान में कमी इसी चीज़ की नजर आती है जिसके कारण समाज को खतरा पैदा हो गया है.

यदि कानून व न्यायालय के निर्णय खेल बन गये, यदि शांति – व्यवस्था बच्चों का मजाक बन गयी तो इस देश में न तो पढ़ा जा सकता है और न लिखा जा सकता है, न मानवता की सेवा हो सकती है और न ही इल्मो-अदब की. वैचारिक सहमति -असहमति की वजह से प्रसिद्ध लेखक व साहित्यकारों की हत्या, जानवर के नाम पर इंसानों की हत्या, ये मानवता के लिए शर्म की बात नहीं है तो और क्या है ? क्या ऐसे जघन्य अपराध करने वालों का दिलों में चीते, भेड़िये और दरिंदे का दिलों का निवास हो गया है ? इस तरह की वैचारिक मानसिकता की उत्पत्ति कहां से होती है ?

मेरा मकसद किसी विशेष राजनीतिक व धार्मिक संगठनों या फिर व्यक्ति विशेष पर निशाना साधना नहीं है , लेकिन जिस तरह से हालिया दिनों में निर्दोष इंसानों की हत्या में बढ़ोत्तरी हुई, यदि पेड़-पौधे और पशु बोलते तो वो आपको बताते कि इस देश की अन्तरात्मा घायल हो चुकी हैं. उसकी प्रतिष्ठा और ख्याति को बट्टा लगाया जा चुका है और वह पतन एवं अग्नि परीक्षा के एक बड़े खतरे में पड़ गयी है. इस देश की नदियां, पर्वत और देश के कण -कण तक आपसे अनुरोध कर रहे हैं कि आप इंसानों का रक्तपात न कीजिए, नफरत के बीज मत बोइए, मासूम बच्चों को अनाथ होने से और महिलाओं को विधवा होने से बचाइये.

देश में व्याप्त भ्रष्टाचार, हिंसा और नैतिक पतन से मैं चिंतित जरुर हूं किन्तु निराश नहीं हूं. मानव -प्रेम, स्नेह और नि:स्वार्थ सेवा तथा आध्यात्मिकता इस देश की परंपरा रही हैं. इसने इतिहास के विभिन्न युगों में यह उपहार बाहर भी भेजा है और अब भी भेज सकता है. आज संतों , धार्मिक लोगों, दार्शनिकों, लेखकों, आचार्यों व खासकर इस देश के होनहार नौजवानों को मैदान में आने, नफरत की आग बुझाने और प्रेम का दीप जलाने की आवश्यकता है. आजादी के बाद, देश के विभिन्न जगहों पर हुए सांप्रदायिक दंगों के बाद हिंदुस्तान के मशहूर इस्लामिक विद्वान मौलाना सैयद अबुल हसन अली नदवी उर्फ मौलाना अली मियां ने विभिन्न धर्म संप्रदाय व जाति के लोगों को एकजुट कर मुल्क की हिफाजत के आपसी प्रेम व भाईचारा का जो पैगाम फैलाया था वो आज भी करने की जरूरत है.
मौलाना अली मियां ने बिहार के पटना में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा था कि " नफरत की इस आग को बुझाइये और याद रखिये ! जब यह हिंसा किसी देश या कौम में आ जाती है तो फिर दूसरे धर्म वाले ही नहीं, अपनी ही कौम और धर्म की जातियां और बिरादरियां, परिवार, मुहल्ले, कमजोर और मोहताज इंसान और जिनसे लेशमात्र भी विरोध हो, उसका निशाना बनते हैं.
( लेखक अफ्फान नोमानी, रिसर्च स्कॉलर व स्तंभकार है और साथ ही एनआर साइंस सेंटर, कम्प्रेहैन्सिव एंड ऑब्जेक्टिव स्टडीज , हैदराबाद से भी जुड़े हैं, affannomani02@gmail.com)

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