पटना : बिहार में उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के मुद्दे पर सत्ताधारी महागंठबंधन के दो धड़ों जदयू और राजद में जारी गतिरोध के बीच नीतीश कुमार के एक करीबी सहयोगी ने अहम बयान दिया है, जिसके राजनीतिक मायने तलाशे जा रहे हैं. नीतीश कुमार के खास सहयोगी संजय कुमार झा ने कहा है कि बेनामी संपत्ति वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग करने वालों में मुख्यमंत्री सबसे आगे रहे हैं. अंगरेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडियाकीखबर के अनुसार उन्होंने कहाहै – नीतीशजी ने लोगों के बीच कहा था कि नोटबंदी ही काफी नहीं है और बेनामी संपत्ति के खिलाफ कार्रवाई अधिक प्रभावी कदम होगा. नीतीशजी उसशख्स के दोषमुक्त हुए बिना तबतक कैसे बैठ सकते हैं जो वरीयता क्रम में ठीक उनके बाद आता हो.
उल्लेखनीय है कि नोटबंदी कि दौरान नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न सिर्फ मजबूत समर्थन किया था, बल्कि लगे हाथ यह भी कहा था कि केंद्र को बेनामी संपत्ति के खिलाफ कठोर कदम उठाने चाहिए.
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सूत्रों का कहना है कि जनता दल यूनाइटेड अगले सप्ताह तेजस्वी यादव से इस पूरे प्रकरण में स्पष्टीकरण की उम्मीद कर रहा है. वहीं, राजद चाहता है कि वह 27 अगस्त को होने वाली रैली में ही अपनी बात कहे. लेकिन, बिहार के राजनीतिक हालात के मद्देनजर ऐसा लगता नहीं है कि जदयू राजद को इतना लंबा समय देगा.
राजद के विधायक भाई वीरेंद्र के कल के 80 विधायक हमारे पास होने वाले बयान के जवाब में कल जदयू के कुछ नेता कह चुके हैं कि यह संख्या उन्हें उनके नेता के चेहरे पर मिली, नहीं तो वे याद रखें कि इससे पहले के चुनाव में वे 22 सीटों तक सीमित रह गये थे.
कौन हैं संजय कुमार झा?
संजय कुमार झा मधुबनी-दरभंगा क्षेत्र से आते हैं.जदयूने उन्हें 2014 में दरभंगा से चुनाव भी लड़ाया था, लेकिनवे हार गये थे. वे पहले भाजपा में थे और जुलाई 2012 में वे जनता दल यूनाइटेड में शामिल हो गये. जेएनयू में पढ़े-लिखे संजय झा जब भाजपा में थे तब पार्टी के एक बड़े राष्ट्रीय नेता के वे करीबी थे और जब वे जदयू में आये तो जल्द ही नीतीश कुमार के भी अहम सहयोगी बन गये. उन्होंने जब जनता दल यूनाइटेड ज्वाइन किया तो मीडिया से कहा था कि अपनी पार्टी के नेताओं से चर्चा करने के बाद ही वे भाजपा से जदयू में जा रहे हैं. यह बात उन्होंने तब के भाजपा-जदयू गंठबंधन के मद्देनजर कही थी. तब गंठबंधन को लेकर उन्हें जदयू-भाजपा के बीच एक अहम सूत्रधार माना जाता था और परदे के पीछे रह कर सरकार के कई अहम फैसलों में उनकी छाप होती थी.