आशुतोष कुमार पांडेय @ पटना
पटना : कहते हैं कि राजनीति के चरित्र और उसके मौलिक अधिकार में सियासी दावंपेच समाहित होता है. परिस्थितियों के अनुसार यह दावंपेच अपने पार्टी हित और वोट बैंकों के गणित के हिसाब से बदलता रहता है. बिहार की राजनीति में कुछ ऐसा ही चल रहा है. मंगलवार को घंटों चली मैराथन बैठक में जदयू ने अपने रूख को साफ कर दिया. पार्टी का स्पष्ट संदेश है. भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति ही सियासी थाती है. पार्टी की मूल पूंजी है, नैतिकता और राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार की छवि के साथ उनका सरोकारी स्टैंड. जदयू ने कहा, इससे इतर नहीं जा सकते. पार्टी सूत्रों की मानें तो उस बैठक में स्वयं नीतीश कुमार ने कहा कि ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में उन्होंने इस्तीफा लिया भी है और स्वयं दिया भी है. सीएम ने पूर्व में जीतन राम मांझी और रामानंद सिंह से लिए इस्तीफे के साथ गैसल रेल दुर्घटना पर खुद के दिये इस्तीफे का उदाहरण भी दिया. सियासी दावंपेचकोही लेकर चलें, तो जदयू का स्पष्ट संदेश है, ताजा हालात में नैतिकता का तकाजा, मतलब इस्तीफा.
रस्साकशी जारी
वर्तमान परिस्थितियों में महागठबंधन के घटक दलों के कई नेता महागठबंधन को अटूट मान रहे हैं, लेकिन हालात काफी नाजुक दौर में चला गया है. जदयू और राजद नेताओं के बयानों की तल्खी सूबे की फिजां में तैर रही है. राजनीतिक जानकारों की मानें तो जुबानी जंग महागठबंधन को वेंटिलेटर पर रखे हुए है. कभी भी कुछ बड़ा फैसला लोगों के सामने आ सकता है. जानकार मानते हैं कि लालू ने पूर्व में जो भी सियासी फैसले लिए हैं, उसमें परिवार को सर्वोपरि रखा है, वैसी स्थिति में ताजा हालात संभलने की स्थिति में नहीं लगते. गुरुवार को राजद के प्रदेश अध्यक्ष रामचन्द्र पूर्वे ने दावा किया कि जब तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप ही नहीं है, तो इस्तीफे का सवाल कहां उठता है. पूरी पार्टी के साथ राज्य की जनता भी उनके स्टैंड के साथ है.एककदम आगे बढ़कर उन्होंने यहां तक कह दिया कि तेजस्वी ने जनता के बीच अपनी स्वीकार्यता और विश्वसनीयता स्थापित कर ली है.
जुबानी जंग तेज
दूसरी ओर, जदयू का मानना है कि सीबीआई बिना जांच किये किसी पर एफआइआर दर्ज नहीं करती, इसलिए राजद को जल्द से जल्द तेजस्वी पर अपना फैसला सुनादेना चाहिए. उधर, जदयू की ओर से दिया गया चार दिन का वक्त भी अब खत्म होने के करीब है. तेजस्वी से जनता के समक्ष तथ्यात्मक जवाब देने की मांग कर चुके जदयू के तेवर और सख्त हो चले हैं. प्रदेश अध्यक्ष बशिष्ठ नारायण सिंह ने तेजस्वी को राजधर्म की याद दिलायी और दो टूक में कहा कि तेजस्वी पर फैसला तो होना ही है. उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार पहले भी गठबंधन सरकार चला चुके हैं और अब भी गठबंधन में हैं. उन्होंने जिस तरीके से गठबंधन को चलाया, वह कीर्तिमान है. इससे अलग राय की अपेक्षा किसी को नहीं करनी चाहिए. जदयू का नजरिया साफ है. पार्टी व सरकार को एक साथ जोड़कर देखने का प्रयास नहीं करना चाहिए.
दोनों ओर से हो रहे हमले
बिहार की राजनीति को करीब से देखने वाले लोग कहते हैं कि उपरोक्त दोनों बयान, दोनों ही पार्टी के जिम्मेदार पद पर बैठे लोगों के हैं. इन बयानों में सियासी दावंपेच का इशारा साफ दिख रहा है. अभी जदयू और राजद के प्रदेश अध्यक्षों के बयान पर लोग मनन ही कर रहे थे कि राजद के मनेर से विधायक भाई वीरेंद्र ने एक सियासी धमकी वाला बयान देकर इस दांवपेच को एक नया मोड़ दे दिया. भाई वीरेंद्र ने इशारों में ही नीतीश सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकी दे दी. मीडिया से बातचीत में भाई वीरेंद्र ने कहा कि यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि राजद के पास 80 विधायक हैं और महागठबंधन में वही होगा जो राजद के लोग चाहेंगे. भाई वीरेंद्र ने जदयू को तोड़कर सरकार बनाने के सवाल पर कहा कि हम लोकतंत्र में यकीन करते हैं, हम जदयू के किसी विधायक को तोड़ने की कोशिश नहीं कर रहे हैं. विधायक इतने पर ही नहीं रुके, तेजस्वी के इस्तीफे के सवाल पर उन्होंने कहा कि पार्टी किसी व्यक्ति की सलाह पर कोई काम नहीं करती है. तेजस्वी कभी भी इस्तीफा नहीं देंगे. तेजस्वीपरलगे आरोपों पर भाई वीरेंद्र दोबारा दावंपेच वाले बयान देते हुए कहते हैं, यह पार्टी का अंदरूनी मामला है. फिलहाल, जानकारों की मानें तोइसी दावंपेच ने बिहार में महागठबंधन को एक अनिश्चित मोड़ लाकर खड़ा कर दिया है.
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