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गाड़ी मौजा के नौ गांवों के लोगों की पीड़ा नहीं सुन रही सरकार, 47 साल से एक अदद सड़क को तरस रहे हैं 16,000 लोग

खेलगांव के समीप गाड़ी मौजा में करीब नौ गांव हैं, जहां 16000 से अधिक की आबादी रहती है. पिछले 47 वर्षों से इन गांवों के लोग एक अदद सड़क के लिए तरस रहे हैं. , पास में ही सेना की छावनी होने के कारण आज तक यहां सड़क नहीं बन पायी है. जब भी यहां […]

खेलगांव के समीप गाड़ी मौजा में करीब नौ गांव हैं, जहां 16000 से अधिक की आबादी रहती है. पिछले 47 वर्षों से इन गांवों के लोग एक अदद सड़क के लिए तरस रहे हैं. , पास में ही सेना की छावनी होने के कारण आज तक यहां सड़क नहीं बन पायी है. जब भी यहां सड़क बनाने की पहल हुई, सेना द्वारा तकनीकी कारणों का हवाला देकर इसे रोक दिया गया. इस समस्या के समाधान के लिए लोगों ने
अब तक 50 से अधिक बार आंदोलन किया. सड़क जाम हुई, कई लाेगों पर केस मुकदमा तक हुआ, लेकिन अब तक पक्की सड़क नहीं बनी.
रांची : राज्य सरकार ने वर्ष 1971 में सेना को छावनी परिसर के निर्माण के लिए गाड़ी मौजा में 498 एकड़ जमीन दी. जमीन मिलने के दो वर्षों के अंदर ही सेना ने अपनी जमीन की घेराबंदी करनी शुरू की. जमीन की घेराबंदी होती देख इस जमीन के पीछले भाग में बसे पाहन टोली, महुआ टोली, पुरनाटोली, नायक मोहल्ला, शिवशक्ति नगर, आनंद नगर, गाड़ी, बांधगाड़ी, मुहर्रम टोली के लोगों ने आंदोलन शुरू किया. लोगों ने सरकार के समक्ष यह मांग रखी कि उन्हें सेना को जमीन दिये जाने पर कोई आपत्ति नहीं है. उन्हें तो केवल सेना को दी गयी जमीन के पीछे बसे मोहल्ले तक जाने के लिए सड़क की जरूरत है. ग्रामीणों के आंदोलन के बाद सांसद से लेकर विधायक व मंत्री तक इन गांवों में कई बार आये. सभी ने केवल इन्हें आश्वासन ही दिया. नतीजा आज भी सड़क को लेकर सेना और गांव के लोग आमने-सामने होते रहते हैं.
सेना न खुद सड़क बनाती है न बनाने देती है : हजारीबाग रोड में खेलगांव सड़क के बगल से होते हुए यह सड़क अंदर इन गांवों तक जाती है. वर्तमान में इस सड़क की हालत जर्जर हो चुकी है. जगह-जगह बड़े-बड़े गड्ढे बन गये हैं, लेकिन न तो सेना वाले इस सड़क की मरम्मत करते हैं और न ही ग्रामीणों को इसकी मरम्मत कराने देते हैं. जब भी मोहल्ले के लोग एकजुट होकर इस सड़क पर मिट्टी या मोरम गिराते हैं, सेना के जवान काम रोकने के लिए आ धमकते हैं. सेना और आम जनता के बीच हो रहे टकराव के कारण सड़क की हालत आज नारकीय हो गयी है, जिस पर वाहन हिचकोले खाते हुए चलते हैं.
हाइकोर्ट ने कहा: ग्रामीणों को आने-जाने दिया जाये : सेना द्वारा इस सड़क में आवागमन पर रोक लगाये जाने के बाद यहां के लोगों ने हाइकोर्ट में केस दायर किया. वर्ष 1990 में हाइकोर्ट द्वारा भी यह आदेश दिया गया कि जब तक राज्य सरकार इन गांवों के लोगों को कोई स्थायी रास्ता नहीं उपलब्ध करा देती है, तब तक इन लोगाें को वर्तमान सड़क से ही आवागमन करने दिया जाये. किसी के आवागमन पर रोक लगाना सही नहीं होगा.

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