आशुतोष कुमार पांडेय @ पटना
पटना : बिहार केताजा सियासी हालात पर उर्दू के जाने-मानें शायर बशीर बद्र की यहपंक्ति समीचीन लगती हैं. उन्होंने लिखा है कि ‘सियासत की अपनी अलग इक जबां है लिखा हो जो इकरार, इनकार पढ़ना’. मंगलवार को जदयू की मैराथन बैठक के बाद भी महागठबंधन के कई नेता लगातार यह बयान देते रहे कि सबकुछ ठीक चल रहा है और महागठबंधन पूरी तरह अटूट है. राजनीतिक जानकारों की मानें तो महागठबंधन के बार-बार अटूट होने का प्रमाण किसी नेता को देने की जरूरत नहीं होती, गर वह अटूट होता. जदयू नेताओं के साथ बैठक के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने करीब 50 मिनट तक अपने संबोधन में स्पष्ट तौर पर कहा कि वह अपनी नीतियों से कोई भी समझौता नहीं करेंगे. उन्होंने यह भी कहा कि हमने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को सपोर्ट कर कोई ऐतिहासिक गलती नहीं की है. मुख्यमंत्री ने कहा कि जिन पर आरोप लगे हैं, उन्हें जनता की अदालत में जाकर सफाई देनी चाहिए. मुख्यमंत्री के यह बयान स्पष्ट इशारा करते हैं कि मामला अब अटूट वाला नहीं रह गया है.
सबसे बड़ा सवाल ?
अब, सबसे बड़ा सवाल यह है कि राजद का अगला कदम क्या होगा ? क्या राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव कोई अलग सियासी खिचड़ी पका रहे हैं या वर्तमान हालात से लड़ने के लिए उनका प्लान ‘बी’ तैयार है. सवाल यह हैकि उपमुख्यमंत्री के पद को लेकर क्या होगा ? जानकारों की मानें तो जदयू ने जिस तरह से इस मसले पर प्रतिक्रिया दी है, उस हिसाब से राजद को अब कोई ठोस उत्तर देना होगा. राजद की राजनीति पर निगाह डालें, तो यह साफ दिखता है कि 1997 में चारा घोटाले की वजह से लालू को जब पद छोड़ने की नौबत आयी. उस वक्त भी पार्टी में कई सीएम पद के दावेदार थे, लेकिन लालू ने अपनी पत्नी राबड़ी पर भरोसा जताया. इस बार बेटे तेजस्वी के पर भ्रष्टाचार का मामला दर्ज हो चुका है और भविष्य में गिरफ्तारी की तलवार भी लटक सकती है. उधर, जदयू की ओर से इशारा स्पष्ट है, पार्टी संतुष्ट नहीं होगी, इस्तीफा देना ही होगा.
उथल-पुथलभरा है सियासी माहौल
वहीं दूसरी ओर जानकार मानते हैं कि जदयू के इशारे को राजद खेमा पूरी तरह समझ चुका है और सोमवार को राजद विधायक दल की बैठक के बाद, जो पार्टी नेताओं का तेवर था, उसने कहीं न कहीं काम बिगाड़ दिया है. पार्टी के अंदरखाने यह चर्चा चल रही है कि लालू यादव बड़े बेटे तेज प्रताप को उपमुख्यमंत्री बना सकते हैं. महागठबंधन की सरकार में उपमुख्यमंत्री की कुर्सी राजद कोटे की है. उम्र में तेजस्वी भले जूनियर हैं, लेकिन कैबिनेट में तेज प्रताप से ज्यादा वरिष्ठ हैं. लालू तेजस्वी पर भरोसा करते हैं और तेज प्रताप से ज्यादा शांतचित्त और संयमी मानते हैं. परिस्थितियां बदलने पर उपमुख्यमंत्री के लिए तेज प्रताप के अलावा पार्टी के एक और नेता का नाम आगे चल रहा है और वह वित्त मंत्री अब्दुल बारी सिद्दीकी का है. सिद्दीकी पार्टी के कद्दावर और अनुभवी नेता हैं. भले उन्हें लालू की अपने स्टाइल की सियासत ने उनके सीनियर रहते भी बेटे तेजस्वी से पीछे कर दिया. हालांकि, उसके बाद भी सिद्दीकी का नाम आगे चल रहा है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर अभी लालू के मन में इससमस्याको लेकर क्या चल रहा है ?
रैली पर उठ रहे हैं सवाल ?
इन सभी घटनाक्रमों के बीच भाजपा नेता सुशील मोदी के उस बयान को भी परखने की जरूरत है, जब लालू यादव ने रैली की घोषणा की, उसके तुरंत बाद सुशील मोदी ने बयान दियाथा कि लालू जेल से बाहर रहेंगे, तब न रैली करेंगे? उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने लालू के खिलाफ फैसला दिया था और सुशील मोदी ने लालू की रैली पर अपनी प्रतिक्रिया दी थी. कहीं न कहीं परिस्थितियां उसी मोड़ पर आकर खड़ी हो गयी हैं, जहां 27 अगस्त को होने वाली रैली को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं. लालू के विरोधी रैली से पहले जनता में यह बात पहुंचाने में लगे हैं कि सामाजिक न्याय का मतलब पारिवारिक समृद्धि नहीं है और लालू चारा के बाद ‘लारा’ में बुरी तरह फंस चुके हैं. जानकार मानते हैं कि लालू के समर्थकों को किसी की बात का खासा असर नहीं पड़ता, उनके समर्थकसभीपरिस्थितियोंमें उनके साथ खड़े मिलेंगे. हां, यह बात अलग है कि 27 अगस्त की रैली होगी या नहीं फिलहाल यह कहना जल्दबाजी होगी.
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