सिलीगुड़ी. मिट्टी से बनी वस्तुओं का स्थान प्लास्टिक, फाइबर व चीनी मिट्टी ने ले लिया है. बदलते समय के साथ कलाकारों ने भी चीनी मिट्टी और प्लास्टिक को अपना लिया है, लेकिन मिट्टी से बनी वस्तुएं अपना महत्व खो रही हैं. सिलीगुड़ी के निकट माटीगाड़ा ग्राम पंचायत स्थित पाल पाड़ा अपने मूल अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ रहा है. पिछली कई पीढ़ियों से मिट्टी की वस्तुएं निर्मित कर व्यवसाय चलाने वाले परिवारों की वर्तमान पीढ़ी इस व्यवसाय से दूर होती जा रही है.
सिलीगुड़ी के निकट माटिगाड़ा के बालासन नदी के उसपार पाल पाड़ा स्थिति है. मिट्टी की कलाकारी दिखाने वाले कलाकारों ने वर्षों पहले यहां अपनी टोली बसायी थी. मिली जानकारी के अनुसार यहां रहने वाले कलाकर परिवार पिछली तीन पीढ़ी से मिट्टी की प्रतिमा व वस्तुएं बनाकर अपना व्यवसाय चला रहे हैं. लेकिन नयी पीढ़ी इस व्यवस्या से दूर होती नजर आ रही है. कारण मिट्टी का स्थान अब प्लास्टिक, फाइबर और चीनी मिट्टी ने ले लिया है. आज से करीब पांच वर्ष पहले तक लोगों के घरों में ठंडा पानी के लिये मिट्टी का घड़ा, खुदरा रुपया जमा करने के लिए गुल्लक, दूध, दही, मिठाई आदि रखने के लिये मिट्टी के बरतन, घर सजाने के लिये मिट्टी के सामान, फूल का पौधा लगाने के लिये मिट्टी के गमले आदि देखने को मिलते थे. जबकि वर्तमान में फूल के पौधों के लिये मिट्टी के गमले का स्थान प्लास्टिक, फाईबर और सीमेंट ने ले लिया है. घर सजाने वाली मिट्टी के सामानों का स्थान चीना माटी आदि ने लिये है. ठंडे पानी व दूध, दही अन्य खाद्य के लिये अधिकांश घरों में फ्रीज मौजूद है. फस्वरूप अब मिट्टी की बनी वस्तुओं की अब कोई उपयोगिता नहीं रह गयी है.
पाल पाड़ा के कलाकार परिवारों के सदस्य अन्य व्यवसाय व काम की तालाश में अन्य राज्यों की ओर रूख करने लगे हैं. मिट्टी के कलाकर परिवारों के वे सदस्य जो वर्तमान में माध्यमिक पास कर चुके हैं या कॉलेजों में अध्ययनरत है, वे इस व्यवसाय में रुचि ही नहीं दिखा रहे हैं. मिट्टी की वस्तुओं की मांग कम होने की वजह से इस व्यवसाय का भविष्य अंधकारमय है. कुछ कलाकार मिट्टी के व्यवसाय पर आश्रित हैं, लेकिन बाजार की मौजूदा स्थिति उन्हें प्लास्टिक, फाइबर व चीनी मिट्टी की ओर धकेल रही है.
पाल पाड़ा निवासी व मिट्टी पर कलाकारी कर अपना व अपने परिवार का भरण-पोषण करने वाले प्रकाश पाल ने बताया कि व्यवसाय को बचाये रखने के लिये प्लास्टिक, फाइबर व चीना माटी से निर्मित वस्तुओं को रखना पड़ता है. मिट्टी से बनी वस्तुओं का स्थान प्लास्टिक, फाइबर और चीना माटी ने ले लिया है. पूरे वर्ष में मिट्टी के कुछ खास वस्तुएं ही बिकती है जैसे दीपावली के समय मिट्टी के दीए व धार्मिक कार्यों में मिट्टी के बरतन व अन्य उपयोगी सामान.
मिट्टी पर कलाकारी करने वाले प्रकाश पाल ने बताया कि बदलते समय ने इस व्यवसाय को पूरी तरह से समाप्त कर दिया है. मिट्टी पर कलाकारी करना उन्होंने अपने पिता नृपेन पाल से सीखा था. उनके परिवार की पुरानी पीढ़ी इसी व्यवसाय पर निर्भर थी. मिट्टी पर कलाकारी करने की सीख लेकर वर्तमान में चीना माटी की वस्तुएं बना रहे हैं. उन्होंने बताया कि मिट्टी की प्रतिमा व वस्तुएं बनाने का यह सबसे पुराना बाजार है. आज से करीब 20 वर्ष पहले पांच सौ पाल परिवार इस व्यवसाय पर निर्भर था. लेकिन अब एक सौ से भी कम परिवार बचे हैं. मिट्टी से बनी वस्तुओं की कीमत पहले काफी अधिक थी. पाल पाड़ा से निर्मित मिट्टी की वस्तुएं मांग के अनुसार देश के विभिन्न भागों में भेजा जाता था लेकिन अब पड़ोसी जिला तो दूर शहर में ही खरीददार नहीं है. पिछले कुछ वर्षों में इस व्यवस्था की स्थिति लगाड़ गिरती चली गयी. प्लास्टिक, फाइबर, चीना माटी आदि ने मिट्टी की उपयोगिता को पूरी तरह से समाप्त कर दिया है. बाजार में मिट्टी से बनी वस्तुओं की लगातार घटती मांग ने पाल परिवार के नयी पीढ़ियों को परंपरागत इस व्यवसाय को छोड़ने के लिये बाध्य कर दिया.
बालासन नदी के उस पार राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे उनकी पुश्तैनी दुकान है. पहले उस दुकान में सिर्फ मिट्टी से बने बरतन, फूलदान, पौधों के लिए गमले, व घर सजावटी के अन्य सामानों से सजा होता था. आज उसी दुकान में प्लास्टिक, फाईबर व चीना माटी से निर्मित वस्तुओं से भरी पड़ी है. व्यवसाय को बचाये रखने के लिये प्रकाश पाल ने नर्सरी का व्यवसाय भी शुरू किया है. इस संबंध में कलाकार ने बताया कि वर्ष में एक बार दीए बनाकर परिवार का पेट पालना कठिन ही नहीं नामुमकिन है.
एक तरफ जहां मिट्टी से बनी वस्तुओं की मांग कम हुयी है वहीं मिट्टी की कीमत काफी बढ़ गयी है. उत्तर बंगाल के मालदा , उत्तर दिनजापुर स्थित कालागछ, इटाहार आदि स्थानो से मिट्टी मंगायी जाती है. जहां पहले एक ट्रक मिट्टी की कीमत 12 सौ रुपये थी वहीं वर्तमान में एक ट्रक मिट्टी की कीमत 20 हजार रुपये हैं. बाजार की बदलती सूरत के साथ सामंजस्य बनाकर व्यवसाय को बचाये रखने के लिए हमें भी प्लास्टिक, फाइबर और चीना माटी का सहारा लेना पड़ा है. इसी दुकान में हम नर्सरी भी खोल रखे हैं.