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उफ्फ! उफनता ज्ञान
आलोक पुराणिक वरिष्ठ व्यंग्यकार ऊपर से पृथ्वीलोक के ज्ञान के मुख्य केंद्र देखे जायें, तो वो कैंब्रिज, आॅक्सफोर्ड, हार्वर्ड, स्टेनफोर्ड, डीयू न होंगे, ज्ञान का परम-चरम केंद्र होगा व्हाॅट्सअप. ऊपर कोई प्रश्न करता होगा- यह भारत भूमि में इतना ज्ञान बंट रहा है, व्हाॅट्सअप पर, फिर भी लोग ज्ञानी क्यों नहीं होते.इसका जवाब है- ज्ञान […]
आलोक पुराणिक
वरिष्ठ व्यंग्यकार
ऊपर से पृथ्वीलोक के ज्ञान के मुख्य केंद्र देखे जायें, तो वो कैंब्रिज, आॅक्सफोर्ड, हार्वर्ड, स्टेनफोर्ड, डीयू न होंगे, ज्ञान का परम-चरम केंद्र होगा व्हाॅट्सअप.
ऊपर कोई प्रश्न करता होगा- यह भारत भूमि में इतना ज्ञान बंट रहा है, व्हाॅट्सअप पर, फिर भी लोग ज्ञानी क्यों नहीं होते.इसका जवाब है- ज्ञान बंट रहा है, लोग आगे फाॅरवर्ड कर रहे हैं, खुद सीख नहीं रहे हैं. जो खुशी के संदेश आगे भेज रहा है, वह खुद डिप्रेशन में गिरफ्तार पाया जाता है. कल रात में मुझे शराब के खिलाफ पचास मैसेज मिले, जो मेरे एक दारूबाज दोस्त ने तब भेजे थे, जब वह बीस पैग लगा चुका था. अभी एक फुफकारता मैसेज आया- चीन को निपटा देंगे, पीट डालेंगे- यह मैसेज उस चाइनीज फोन से भेजा गया था, जो उन मित्र ने कल ही खरीदा था और उसकी तारीफों के पुल नहीं, चीन की दीवार बांध रहे थे.बंदा ज्ञान ले नहीं रहा है, सिर्फ बांट रहा है. इस वक्त ज्ञान लेने का नहीं, बांटने का आइटम है.
उफन रहा है ज्ञान. कल एक व्हाॅट्सअप मैसेज आया- कितनी गलत बात है, हम शादी में जाते हैं, खुशी के मौके पर तो नकद का लिफाफा देकर आते हैं और अस्पताल जाते हैं किसी मरीज को देखने, तो मरीज को या उसके घरवालों को कुछ नहीं देकर आते, जबकि उन्हें धन की जरूरत ज्यादा होती है. मतलब, एकैदम तार्किक व्हाॅट्सअप ज्ञान है. पर, ज्ञानियों ने यह नहीं सोचा कि इसे अगर व्यवहार में लागू कर दें, तो क्या सीन होंगे.
बंदा पहुंचा है किसी बीमार को देखने और जाकर लिफाफा थमा रहा है. लिफाफा लेनेवाला सोच रहा है इसके बाप बीस साल पहले बीमार पड़े थे, तो हमने पांच हजार दिये थे, अब तो वो पांच हजार ही एक लाख हो गये होंगे. लाख से कम दिये इसने तो समझो बहुत ही खड़ूस है यह.
लिफाफे से निकले दो हजार, फिर अम्माजी शुरू हो जायेंगी- ये श्रीवास्तव तो भौत ही कंजूस है. बताओ हमारे पांच हजार का व्यवहार का क्या वापस किया. पीछे से मरीज कराह रहा है कि प्लीज पानी तो पिला दो. पर श्रीवास्तव-प्रसंग में सब ऐसे बिजी हैं कि उधर ध्यान किसी का नहीं.
बहुत सुधारवादी लोग तो फिर मरीजों को देखने आने के लिए निमंत्रण तक भेजने लगेंगे इस तरह से- हमारे बब्बूजी की टांग परसों टूट गयी है. आप देखने आयें, इस अवसर पर सिर्फ आशीर्वाद स्वीकार किये जायेंगे, गिफ्ट-कैश आदि नहीं.
हाय! व्हाॅट्सअप ज्ञानियों मैसेज फाॅरवर्ड करने से पहले एकाध बार सोच तो लिया करो. पर ना, सोचने में जितना टाइम वेस्ट करेंगे, उतने में तो बीस मैसेज फाॅरवर्ड हो जायेंगे.
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