21.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

हर महीने 600 बच्चे दिल्ली रेलवे स्टेशन को बनाते हैं अपना घर, कूड़ेदान से चुन खाते हैं खाना

नयी दिल्ली : राहुल मिश्रा को रेलवे स्टेशन हमेशा से आकर्षित करते थे लेकिन ऐसे ही किसी स्टेशन का प्लेटफार्म एक दिन उसका घर बन जायेगा, यह उसने कभी नहीं सोचा था. दस वर्षीय राहुल अपने पिता की मार से तंग आकर छह सप्ताह पहले घर से भाग आया था और अब उसने नयी दिल्ली […]

नयी दिल्ली : राहुल मिश्रा को रेलवे स्टेशन हमेशा से आकर्षित करते थे लेकिन ऐसे ही किसी स्टेशन का प्लेटफार्म एक दिन उसका घर बन जायेगा, यह उसने कभी नहीं सोचा था. दस वर्षीय राहुल अपने पिता की मार से तंग आकर छह सप्ताह पहले घर से भाग आया था और अब उसने नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन को अपना घर बना लिया है.

राहुल ने कहा, ‘मेरे पिता अक्सर हर दिन मुझे और मेरी मां को पीटते थे. यहां तक कि मेरी मां को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था.’ उसकी मां को डर था कि उसका पिता मार डालने तक उसकी पिटाई करेगा तो एक दिन उसकी मां ने राहुल को 200 रुपये दिये और उसे घर छोड़ने और कभी वापस नहीं आने के लिए कहा.

वह बिहार शरीफ स्टेशन पर रुकने वाली ट्रेन में सवार हो गया जिसका अंतिम गंतव्य स्टेशन नयी दिल्ली था. राहुल नयी दिल्ली स्टेशन पर उतरा और वहां रहने लगा जब तक कि स्टेशन पर कूड़ेदान में खाना ढूंढते राहुल पर सामाजिक कार्यकर्ताओं की नजर नहीं पड़ी. नालंदा में पचौरी गांव का रहने वाला यह लड़का उन 600 ‘रेलवे बच्चों’ में से एक है जो हर महीने नयी दिल्ली स्टेशन पर आने वाली ट्रेन से उतरते हैं और प्लेटफार्म को ही अपना घर बना लेते हैं.

सामाजिक कार्यकर्ताओं और रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) ने दिल्ली के ‘रेलवे बच्चे’ नाम दिया है. इनमें देश के सभी हिस्सों से आने वाले ज्यादा बच्चे गरीब और प्रताड़ना के चलते भाग कर आये हैं लेकिन कुछ ऐसे भी हैं, जिन्हें बडे शहर की चकाचौंध यहां खींच लायी है. इनमें से कई बच्चों के लिए रेलवे प्लेटफार्म पहला ठहराव और आश्रय है. आरपीएफ और एनजीओ ने इन भागे हुए बच्चों के लिए नयी दिल्ली स्टेशन पर एक शिविर बनाया है और यह सुनिश्चित किया है कि इनकी तस्करी ना की जाए.

ज्यादातर भागे हुए बच्चों में लड़के हैं. रेलवे स्टेशन पर मिली कुछ लड़कियों को सरकारी आश्रय स्थलों पर भेज दिया गया है. चार एनजीओ साथी, सलाम बालक ट्रस्ट, प्रभास और सुभाक्षिखा नये बच्चों की तलाश में प्लेटफार्म को खंगालते हैं. नयी दिल्ली स्टेशन पर आरपीएफ के एक अधिकारी प्रताप सिंह ने बताया कि हर दिन करीब 15-20 बच्चे यहां स्टेशन पर आते हैं जिनमें से ज्यादातर उत्तर प्रदेश और बिहार के होते हैं.

एक बार जब ऐसे बच्चे का पता चलता है तो आरपीएफ कर्मी उनकी निजी जानकारियां लिखते हैं और उन्हें काउंसिलिंग के लिए बाल देखभाल संस्थानों में भेज दिया जाता है. अगर वे लौटने की इच्छा नहीं जताते तो उन्हें सरकारी आश्रय स्थलों पर ले जाया जाता है. गृह मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2011 से 2014 के बीच 3.25 लाख बच्चे लापता हो गये थे. हर साल एक लाख बच्चे लापता होते हैं और उनमें से करीब आधे बच्चे कभी नहीं मिलते.

साथी द्वारा जुटाये गये आंकड़ों के मुताबिक, हर साल 80,000 और 100,000 बच्चे रेलवे स्टेशन पहुंचते हैं. कई बच्चे अपने परिवारों से मिले हैं. गरीबी के कारण 12 साल की उम्र में घर से भागा रोहित सिंह ऐसा ही बच्चा है जिसे उसके परिवार से मिलाया गया. लेकिन हर बच्चा इतना खुशकिस्मत नहीं होता. कुछ बच्चों का शोषण किया जाता है, तस्करी की जाती है और कई बच्चों को नशे की लत लग जाती है.

15 वर्षीय रुपक इनमें से एक है. साथी के एडवोकेसी अधिकारी रोहित शेट्टी ने कहा कि बच्चों के लिए हेल्पाइन चाइल्डलाइन की हालत खराब है. रेलवे में बच्चों के लिए एक समर्पित हेल्पलाइन की जरुरत है. राहुल घर नहीं जाना चाहता है और उसे सरकारी आश्रय स्थल भेजा जा सकता है. तब तक के लिए प्लेटफॉर्म उसका घर रहेगा.

(बच्चों के नाम बदल दिये गये हैं.)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें