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देशभर में टैक्स विशेषज्ञों की कमी के बीच जीएसटी से बढ़ेगी पेशेवरों की मांग

जीएसटी के लागू हो जाने के बाद भी कारोबारियों के बीच डर व ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है. डर का कारण जीएसटी प्रणाली का टेक्नोलॉजी पर आधारित होना, कर व रिटर्न से जुड़ी जटिलताएं और रिटर्न की अधिकता है, तो ऊहापोह की वजह जीएसटी की तसवीर का अब तक पूरी तरह से साफ नहीं […]

जीएसटी के लागू हो जाने के बाद भी कारोबारियों के बीच डर व ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है. डर का कारण जीएसटी प्रणाली का टेक्नोलॉजी पर आधारित होना, कर व रिटर्न से जुड़ी जटिलताएं और रिटर्न की अधिकता है, तो ऊहापोह की वजह जीएसटी की तसवीर का अब तक पूरी तरह से साफ नहीं होना है.
हालांकि, इससे जहां एक ओर अनेक प्रकार की कारोबारी सुगमता की उम्मीद जतायी जा रही है, वहीं इसकी जटिलताओं को समझने व उनके समाधान के लिए संबंधित प्रोफेशनल्स की कमी भी महसूस की जा रही है. इन प्रोफेशनल्स के अभावों के बीच इनकी मांग बढ़ने समेत इससे जुड़े अन्य कई मसलों को रेखांकित कर रहा है आज का यह विशेष पेज …
सतीश सिंह
बैंक अधिकारी
जीएसटी से पहले केंद्रीय कर, मसलन, कस्टम, एक्साइज, सेवाकर और राज्य कर जैसे- वैट, बिक्री कर, प्रवेश कर, चुंगी वगैरह प्रचलन में थे, लेकिन इस प्रणाली में अधिकांश कारोबारी कर देने से खुद को बचाने की चेष्टा करते थे. जीएसटी के तहत कर संरचना त्रिस्तरीय है.
सीजीएसटी, एसजीएसटी और आइजीएसटी. सीजीएसटी और आइजीएसटी के तहत केंद्र सरकार कर वसूल करेगी, तो एसजीएसटी के अंतर्गत राज्य सरकार. जीएसटी के तहत कारोबारियों के लिए कर चोरी करना आसान नहीं होगा, क्योंकि जो कारोबारी कर नहीं दे रहे हैं या कर का कम भुगतान कर रहे हैं, उन्हें कर की देय राशि का 10 फीसदी या 10,000 रुपये, जो दंड की न्यूनतम राशि है, जुर्माने के रूप में देनी होगी.
जानबूझकर करवंचना का दोषी पाये जाने पर दोषी को देय कर राशि का 100 प्रतिशत जुर्माना देना होगा. वैसे जीएसटी की कर संरचना को इतना सशक्त बनाया गया है कि कारोबारियों के लिये करवंचना करना आसान नहीं होगा.
करदाताओं के बीच भ्रम
जीएसटी से छूट की सीमा 20 लाख रुपये की वार्षिक बिक्री तय की गयी है और 75 लाख रुपये तक की सालाना बिक्री रहने पर महज एक फीसदी कर अदा करना होगा. कारोबारी यदि निर्माता है और 75 लाख का सालाना उत्पादन करता है, तो उसे केवल दो फीसदी कर देना होगा.
इसका सीधा मतलब है कि जिन कारोबारियों की सालाना बिक्री 20 लाख रुपये तक है, उन्‍हें जीएसटी के लिए पंजीकरण नहीं कराना होगा और 75 लाख रुपये तक की सालाना बिक्री करने वालों या निर्माण करनेवाले कारोबारियों को क्रमशः एक और दो फीसदी कर देना होगा. सरकार की ऐसी कवायद से माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में कारोबारी स्वतः जीएसटी देने के लिए प्रेरित होंगे, जिससे कर के दायरे में उल्लेखनीय बढ़ोतरी होगी.
करदाताओं के बीच भ्रम की स्थिति बनी हुई है. कहा जा रहा है कि उन्हें महीने में तीन से चार और सालाना 37 फार्म दाखिल करने होंगे.
हालांकि, वस्तुस्थिति इसके ठीक विपरीत है. हकीकत में कारोबारी द्वारा एक बार रजिस्ट्रेशन कराने के बाद उसे हर महीने की 10 तारीख तक पिछले महीने का रिटर्न फाइल करना होगा. शेष दो रिटर्न कंप्यूटर द्वारा स्वतः सृजित होगा.
जीएसटी के रिटर्न को दाखिल करने के लिए ऑफलाइन प्रारूप पर काम करना होगा, जो माइक्रोसॉफ्ट एक्सेल शीट जैसा होगा. रिटर्न को ऑफलाइन भेजा जायेगा, जिसे बाद में ऑनलाइन किया जायेगा. इस प्रक्रिया में गलती होने पर उसका सुधार आसान नहीं होगा. जमा कर के रिफंड की स्थिति में वेंडर की पुष्टि की जरूरत होगी, जिसमें कारोबारियों को अनेक दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा.
जीएसटी नेटवर्क
वस्तु व सेवा कर नेटवर्क (जीएसटीएन) करदाता और सरकार के बीच इंटरफेस के रूप में कार्य करेगा. जीएसटीएन एक गैर-सरकारी संगठन है, जिसका काम केंद्र व राज्य सरकार और करदाताओं के बीच साझा आइटी नेटवर्क उपलब्ध कराना है. करदाताओं का रजिस्ट्रेशन करने के बाद उन्हें जीएसटीएन नंबर मिलेगा. जीएसटीएन नंबर के जरिये ही कारोबारी जीएसटी से जुड़े तमाम कार्य कर सकेंगे. देखा जाये तो जीएसटी टेक्नोलॉजी का सबसे अहम हिस्सा जीएसटीएन ही है. इसके तहत जीएसटी रिटर्न दाखिल करने और जमा कर के रिफंड दावों के निपटारे के लिए सरकार ने 1,400 करोड़ रुपये की व्यवस्था की है.
इस नेटवर्क के दो हिस्से हैं. पहला, जीएसटीएन प्लेटफॉर्म और राज्यों का नेटवर्क. इंफोसिस द्वारा तैयार जीएसटीएन की मदद से हर महीने की 10 तारीख तक 3.2 अरब रसीदें अपलोड होंगी, लेकिन एक राज्य में प्रणाली के असफल होने पर नेटवर्क से जुड़ी समूची प्रक्रिया ठप्प पड़ जायेगी. इसमें दो राय नहीं है कि जीएसटी टेक्नोलॉजी का स्वरूप बेहद जटिल है.
पेशेवरों की मदद से होगी आसानी
माना जा रहा है कि लगभग 80 लाख करदाता जीएसटी में पंजीकरण करायेंगे, जिसमें 70 लाख लघु और मध्यम कारोबारी होंगे, लेकिन भारत जैसे देश में अभी भी कस्बाई एवं ग्रामीण इलाकों में बहुत सारे ऐसे कारोबारी हैं, जो हर साल 75 लाख से अधिक की बिक्री करते हैं, लेकिन वे या तो अनपढ़ हैं या कम पढ़े-लिखे. जीएसटी टेक्नोलॉजी की जटिल प्रक्रिया को समझना वैसे तो पढ़े-लिखे कारोबारियों के लिए भी आसान नहीं है, अनपढ़ या कम पढ़े-लिखे की क्या बिसात है. स्पष्ट है, कारोबारियों को जीएसटी की जटिलताओं को सुलझाने के लिए निश्चित रूप से पेशेवरों की मदद की जरूरत होगी.
मौजूदा समय में चार्टर्ड अकाउंटेंट, कंपनी सेक्रेटरी, कर सलाहकार, वकील आदि कारोबारियों के कर से जुड़े कार्यों को निबटाते हैं, लेकिन जीएसटी से जुड़ी समस्याओं को निबटाने में ग्रामीण क्षेत्र के अधिकांश कर सलाहकारों और वकीलों को मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि जीएसटी की प्रणाली बेहद जटिल है. ऐसे में जीएसटी से जुड़ी समस्याओं को निबटाने का सारा दारोमदार चार्टर्ड अकाउंटेंट और कंपनी सेक्रेटरी पर आ जायेगा.
संबंधित प्रोफेशनल्स की कमी
जीएसटी के तहत 80 लाख करदाताओं द्वारा पंजीकरण कराने की उम्मीद है. यदि एक पेशेवर 20 कारोबारियों का रिटर्न फाइल करेगा, तब भी 80 लाख कारोबारियों का रिटर्न फाइल करने के लिए चार लाख पेशेवरों की जरूरत पड़ेगी. हमारे देश में इतनी बड़ी संख्या में चार्टर्ड अकाउंटेंट और कंपनी सेक्रेटरी नहीं हैं. अप्रैल, 2015 के आंकड़ों के अनुसार, हमारे देश में कुल 2,39,974 चार्टर्ड अकाउंटेंट थे, जिनमें से केवल 1,15,540 ही प्रेक्टिस कर रहे थे, जबकि 31 मार्च 2016 तक केवल 7,776 कंपनी सेक्रेटरी ही प्रेक्टिस कर रहे थे. साफ है चार्टर्ड अकाउंटेंट और कंपनी सेक्रेटरी की मांग ज्यादा होने पर वे अपने पेशेवर शुल्क में इजाफा कर देंगे, जिससे कारोबारियों को ज्यादा शुल्क भुगतान करना होगा.
क्षमता बढ़ाने की जरूरत
कहा जा सकता है कि जीएसटी की सफलता के लिए कारोबारियों की आशंकाओं को दूर करने के साथ-साथ जीएसटी टेक्नोलॉजी व रिटर्न दाखिल करने की प्रक्रियाओं को भी सरल बनाने की जरूरत है. पहले कर का रिटर्न मैन्युअल भी दाखिल किया जाता था, लेकिन जीएसटी प्रणाली पूर्ण रूप से कंप्यूटरीकृत है, जिससे अधिकांश कारोबारी खुद से अपना रिटर्न दाखिल करने में असमर्थ हैं.
मोटे तौर पर पेशेवरों का कार्य जीएसटी के तहत कारोबारियों का पंजीकरण कराना, रिटर्न दाखिल करना और इससे जुड़े दूसरे कार्यों को निबटाना, कर दस्तावेज तैयार करना, कर अधिकारियों के समक्ष कारोबारियों की समस्याओं को रखना और उनका निबटारा करना, विविध कानूनों के दायरे में ऑडिट कराना, अधिक कर जमा कर देने पर कारोबारियों को उसका रिफंड दिलाना, कर कानूनों के दायरे में कारोबार करने के लिए कारोबारियों को प्रोत्साहित करना आदि है. चूंकि सरकार न तो पेशेवरों की संख्या बढ़ाने की स्थिति में है और न ही कारोबारियों की मदद करने की, इसलिए कर सलाहकारों और वकीलों को जीएसटी से संबंधित जानकारी के दायरे को बढ़ाने की कोशिश करनी होगी, ताकि वे जल्द-से-जल्द इससे जुड़े कार्यों को निबटाने में समर्थ हो सकें.
टैक्स और वित्तीय पेशेवरों के लिए नये मौके और चुनौतियां
जीएसटी के कारण विविध प्रकार के कारोबारों को इसके नियमों के अनुरूप ढालने के लिए टैक्स और वित्तीय पेशेवरों की आवश्यकता होगी. सरकार के नये नियमों का समुचित फायदा हासिल करने के लिए कंपनियां इन पेशेवरों को नियुक्त कर सकती हैं. समुचित तादाद में इनकी उपलब्धता भी अपनेआप में एक चुनौती हो सकती है. जीएसटी से जुड़े बदलाव के दौर में टैक्स और वित्तीय पेशेवरों के सामने इस प्रकार की चुनौतियां हो सकती हैं :
क्लाइंट्स के बीच नहीं है पूरी तैयारी : ज्यादातर क्लाइंट्स जीएसटी के प्रावधानों और उनके कारोबार पर होने वाले संभावित असर को नहीं समझ पाये हैं. ज्यादातर को यह नहीं पता है कि इसके लिए उन्हें कहां रजिस्ट्रेशन कराना होगा.
नियमों और अधिनियमों के संबंध में अस्पष्टता : जीएसटी के तहत किये गये विविध प्रावधान अब तक स्पष्ट नहीं हैं. अनेक मामलों में वस्तुओं और सेवाओं की श्रेणी पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो पायी है. साथ ही, कई नियम और अधिनियम ऐसे हैं, जिन्हें आसानी से नहीं समझा जा सकता है.
आइटी सिस्टम्स की तैयारी : जीएसटी इनवॉइस और संबंधित जरूरी रिपोर्ट्स तैयार करने के लिए विविध संगठनों ने नये टैक्स प्रावधानों के तहत एकाउंटिंग सॉफ्टवेयर और आइटी सिस्टम्स का एक खाका तैयार किया है. टैक्स और अकाउंटिंग प्रोफेशनल्स को मिल कर तय करना होगा कि उनका क्लाइंट वास्तव में अपडेट सिस्टम्स के तहत बेहद सक्षम तरीके से काम कर रहा है. देशभर में 60 लाख से अधिक लघु और मध्यम आकार के उद्यमों द्वारा इसे बेहद आसानी से अपनाये जाने योग्य बनाने के लिए पर्याप्त आइटी सपोर्ट और सिस्टम्स की जरूरत है.
अकाउंटिंग प्रोफेशनल्स के लिए आसान नहीं राह
कारोबार के लिए सकारात्मक माहौल बनाने में जीएसटी भले ही ‘गेम चेंजर’ साबित हो सकती है, लेकिन अकाउंटिंग प्रोफेशनल्स के लिए इसकी राह अासान नहीं है. देशभर में मैन्यूफैक्चरर्स, ट्रेडर्स और सर्विस प्रोवाइडर्स को एक टैक्स के दायरे में लाने से उन्हें अब 17 विविध प्रकार के टैक्स की जटिलताओं से निजात मिलेगी. ‘वन नेशन, वन टैक्स’ को वास्तविक रूप से लागू करने के लिए सरकार संबंधित अधिकारियों को ट्रेनिंग मुहैया करा रही है. बिजनेस माॅडल, बिजनेस पॉलिसी और प्रक्रिया में बदलाव को समझने के लिए उद्यमियों को नये प्रोफेशनल्स की नियुक्ति करनी होगी.
देशभर में 13 लाख प्रोफेशनल्स की मांग!
विशेषज्ञों का अनुमान है कि करीब 90 लाख करदाता जीएसटी पोर्टल से रजिस्टर्ड होंगे. नये टैक्स सिस्टम के लिए करीब 13 लाख प्रोफेशनलों की जरूरत पड़ेगी. टैक्सेशन, बही-खातों और डाटा एनालिसिस के लिए कई क्षेत्रों में तत्काल एक लाख संबंधित पेशेवरों की जरूरत होगी.
इसका असर अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में भी देखने को मिलेगा, जहां प्रोफेशनल्स की जरूरत बढ़ेगी. इस क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि इनमें कुछ काम मौजूदा बिक्री व अन्य करों से जुड़े प्रोफेशनल्स संभाल सकते हैं, फिर भी नये प्रोफेशनल्स की बहुत ज्यादा जरूरत होगी.
सर्च कंपनी ग्लोबल हंट के मैनेजिंग डायरेक्टर सुनील गोयल कहते हैं कि उन्हें अनुमान है कि जीएसटी लागू होने की तिथि से पहली तिमाही के भीतर तत्काल ही एक लाख से ज्यादा रोजगार पैदा होंगे.
टैक्स के लिए इन प्रोफेशनल्स की होगी ज्यादा जरूरत :
– लॉयर्स यानी वकील – चार्टर्ड अकाउंटेंट
– कॉस्ट अकाउंटेंट – टैक्स कंसल्टेंट
– सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल्स.
इन क्षेत्रों में ज्यादा जरूरत
जीएसटी लागू होने के बाद अब सभी कंपनियां अपने संबंधित विभाग के कर्मचारियों व अधिकारियों को इसकी समग्र जानकारी मुहैया कराने के लिए प्रयासरत हैं. इससे टैक्स और टेक्नोलॉजी प्रोफेशनल्स की मांग काफी बढ़ गयी है. इन क्षेत्रों में जीएसटी प्रोफेशनल्स की मांग सबसे ज्यादा बढ़ गयी है :
– एफएमसीजी
– कंज्यूमर गुड्स
– फार्मास्युटिकल्स
– रीयल एस्टेट
– बैंकिंग और इंश्योरेंस.
अर्ध-कुशल क्षेत्र में भी बढ़ेगा रोजगार!
विशेषज्ञों का अनुमान है कि जीएसटी के कारण अनेक क्षेत्रों में सेमी-स्किल्ड यानी अर्ध-कुशल कामगारों की जरूरत में वृद्धि होगी. कुछ खास कामगारों की जरूरत में ज्यादा बढ़ोतरी होगी, जाे इस प्रकार हो सकते हैं :
– कारपेंटर – राज मिस्त्री – प्लंबर
– ड्राफ्ट्समैन – दर्जी – बुनकर
इनके अलावा, खानपान के क्षेत्र में अर्ध-कुशल कामगारों और खुदरा क्षेत्र में मार्केटिंग की नौकरियों के अवसरों में बढ़ोतरी होगी. साथ ही, कई क्षेत्रों में अस्थायी नौकरियों में भी प्रोफेशनल्स की नियुक्ति की जा सकती है, ताकि जीएसटी के नियमों के मुताबिक कारोबार का संचालन किया जा सके.

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