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एक जीवट पिता का प्रेम

राजस्थान के भरतपुर की दामिनी यानी अंकुर और उसके पिता बबलू की कहानी करीब पांच साल पहले मीडिया में आयी थी. बबलू अपनी नवजात बच्ची को सीने से लगाये रिक्शा चला कर गुजारा कर रहा था. तब यह तस्वीर वाइरल हुई थी और समाज से उसकी मदद के लिए हाथ आगे बढ़े थे. बच्ची के […]

राजस्थान के भरतपुर की दामिनी यानी अंकुर और उसके पिता बबलू की कहानी करीब पांच साल पहले मीडिया में आयी थी. बबलू अपनी नवजात बच्ची को सीने से लगाये रिक्शा चला कर गुजारा कर रहा था. तब यह तस्वीर वाइरल हुई थी और समाज से उसकी मदद के लिए हाथ आगे बढ़े थे. बच्ची के नाम से बैंक में खाता खुलवा कर लोगों से मदद की अपील की गयी और तीन-चार सालों में उस खाते में 23 लाख रुपये इकट्ठा हो गये. बबलू की बेबसी को देखते हुए भरतपुर जिला प्रशासन ने बच्ची की परवरिश के लिए उसे सरकारी बाल संरक्षण गृह में रखा, क्योंकि बबलू की जान-पहचान का कोई भी रिश्तेदार नहीं था.
बबलू अब इस दुनिया में नहीं रहा. अभावों की लंबी जिंदगी जीनेवाले बबलू का शव एक कोठरी में पाया गया. अपनी बेटी के लिए अच्छी जिंदगी का सपना देखनेवाले बबलू की एक गुमनाम मौत हो गयी. लोगों ने बबलू का अंतिम संस्कार तो कर दिया, लेकिन जीते जी जो व्यावहारिक संस्कार एक इंसान होने के नाते दूसरे इंसान के साथ निभाये जाने चाहिए, अगर निभाया गया होता, तो शायद बबलू आज जिंदा होता.
पिता की मौत के बाद करीब पांच साल की दामिनी अब इस दुनिया में बिल्कुल अकेली हो गयी है.

उसके सर से उसकी मां का साया तो पहले ही उठ गया था, अब पिता का साया भी नहीं रहा. एक ऐसा पिता जिसने मां की ममता से कहीं आगे जाकर पिता के फर्ज को एक मिसाल में बदल दिया.

दामिनी की मां के गुजर जाने के बाद बबलू ने अपनी बेटी को पालने में जो मशक्कत की, वह एक पिता के प्यार की उम्दा तस्वीर है. बबलू रिक्शा चालक था और नन्हीं दामिनी को गोद में लेकर रिक्शा चलाता था, ताकि वह अपनी बच्ची का पालन-पोषण कर सके. ऐसी हालत में लोग भीख मांगना पसंद करते हैं, जिनके पास कुछ भी नहीं होता. लेकिन, बबलू ने बेटी को गोद में लेकर ही रिक्शा चलाने को चुना. यह सिर्फ एक पिता का अपनी बेटी के लिए प्यार ही नहीं है, बल्कि एक इंसान के जीवट होने और मेहनत करके जिंदगी जीने की ईमानदारी भी है.
बच्ची को गोद में लेकर रिक्शा चलाने की बबलू की तस्वीर जब मीडिया में आयी, इस पर एक सवाल के जवाब में बबलू ने कहा था- ‘मैं इसके लिए पिता के साथ मां की भूमिका भी निभा रहा हूं, क्योंकि हमारी शादी के पंद्रह साल बाद दामिनी पैदा हुई. मेरी बेटी के साथ मेरी पत्नी की ढेर सारी यादें जुड़ी हुई हैं.’
यह सिर्फ एक बयान भर नहीं है, बल्कि अपनी पत्नी से प्रेम की पराकाष्ठा भी है कि वह उसकी यादों को संजोने-समेटने के साथ अपनी बेटी से प्रेम और उसकी अच्छी जिंदगी के लिए जीवटता की हद पार कर जाये और उसको गोद में लेकर रिक्शा चलाये. लेकिन, अफसोस कि बबलू अपनी ही जिंदगी से हार गया.
शफक महजबीन
स्वतंत्र टिप्पणीकार
shafaqmehjabeen@gmail.com

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