इस निर्णय से झारखंड वन उपज अधिनियम 1984 की धारा छह के तहत निर्दिष्ट आठ प्रजाति के वृक्ष क्रमश: साल, सागवान, बीजा साग, गम्हार, आसन, करम, सलई व खैर के काष्ठ तथा चिरान लकड़ी, गोल लकड़ी, पोल, केसिंग पोस्ट, जलावन, खैर आदि के ग्रामीण रैयतों द्वारा सरकार को की जाने वाली बिक्री से उन्हें सीधा लाभ मिलेगा.
यह समिति वनोत्पाद के समुचित कीमत निर्धारण में भूमिका निभाने के साथ-साथ वन्य जीवन से संबद्ध अन्य महत्वपूर्ण सुझाव भी सामने रखे. समिति के सदस्यों के सुझावों पर संज्ञान लेते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि वनभूमि की घेराबंदी भी की जानी चाहिए, जिससे वन का सम्यक विकास हो सके. समिति के सदस्यों ने गढ़वा के नगरउंटारी व बगोदर के तेलिया प्रखंड के कुछ ऐसे रैयत जिनकी भूमि सर्वे में राजस्व की जगह वन भूमि के रूप में भूलवश चिह्नित हो गयी है, इसमें सुधार के लिए सुझाव दिया. मुख्यमंत्री ने वन और राजस्व विभाग को ऐसे मामलों को चिह्नित कर और रैयतों के हितों को प्राथमिकता देते हुए आवश्यक सुधार करने का निर्देश दिया. बैठक में समिति के उपाध्यक्ष श्री विद्युत वरण महतो, विधायक जयप्रकाश सिंह भोक्ता, नगेंद्र महतो, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव संजय कुमार व अन्य अधिकारी उपस्थित थे.