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भाजपा की लहर रोकने के लिए कांग्रेस सरकार ने कर्नाटक में भी किया किसानों का कर्ज माफ

नयी दिल्लीः गुजरात में भारतीय जनता पार्टी का विजय रथ रोकने और कर्नाटक में किसानों की कर्जमाफी को मुद्दा बनने से रोकने के लिए कांग्रेस ने तुरुप का पत्ता फेंक दिया है. पंजाब के बाद कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने भी किसानों की कर्जमाफी का एलान कर दिया है. इसे प्रदेश में समय से पहले […]

नयी दिल्लीः गुजरात में भारतीय जनता पार्टी का विजय रथ रोकने और कर्नाटक में किसानों की कर्जमाफी को मुद्दा बनने से रोकने के लिए कांग्रेस ने तुरुप का पत्ता फेंक दिया है. पंजाब के बाद कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने भी किसानों की कर्जमाफी का एलान कर दिया है. इसे प्रदेश में समय से पहले चुनाव कराये जाने के एक प्रयास के रूप में भी देखा जा रहा है.

इससे पहले पंजाब की कांग्रेस सरकार ने भी किसानों के दो लाख रुपये तक के कर्ज माफ करने की घोषणा की थी. हालांकि, किसानों का कर्ज माफ करने का सिलसिला उत्तर प्रदेश से शुरू हुआ, जो मध्यप्रदेश, पंजाब और महाराष्ट्र होते हुए अब कर्नाटक पहुंचा है. इस तरह कर्नाटक पांचवां राज्य बन गया है, जिसने कर्ज में डूबे किसानों को कुछ राहत दी है.

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कर्नाटक में 22,27,506 किसानों ने कृषि सहकारी बैंकों से 10,736 करोड़ रुपये के लोन ले रखे हैं. सरकार ने इन किसानों के 50,000 रुपये तक के कर्ज माफ कर दिये हैं. बुधवार को कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने विधानसभा में यह घोषणा की. सरकार के इस फैसले से राजकोष पर 8,165 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा.

विधानसभा में सिद्धारमैया ने केंद्र से कहा कि उसे किसानों के सभी कर्ज माफ कर देने चाहिए. उन्होंने कहा, ‘वे सिर्फ बातें करते हैं. हमने कर दिया है.’ उन्होंने इस अवसर पर कुछ उपलब्धियां भी गिनायीं. सिद्धारमैया ने कहा कि किसानों के खाते में सीधे सब्सिडी का पैसा भेजनेवाला कर्नाटक देश का पहला राज्य बना था.

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कर्नाटक के सीएम ने कहा कि कुछ किसानों ने 25,000 रुपये तक का ब्याजरहित लोन लिया था, जबकि कुछ किसानों ने तीन लाख रुपये तक कर्ज लिये थे. इन सभी किसानों के 50,000 रुपये तक के कर्ज माफ कर दिये गये हैं.

ज्ञात हो कि पिछले राहुल गांधी के नेतृत्व में विपक्षी दल लगातार किसानों का कर्ज माफ करने की मांग करते रहे हैं. हालांकि, वित्त मंत्री अरुण जेटली ने साफ कर दिया है कि राज्य चाहें तो किसानों के कर्ज माफ कर सकते हैं. इसके लिए राशि की व्यवस्था उन्हें खुद करनी होगी.

जेटली का तर्क है कि किसानों का कर्ज माफ कर देना उनकी समस्या का समाधान नहीं है. उन्होंने वर्ष 2009 में लोकसभा चुनाव से पहले 60,000 करोड़ रुपये के किसान कर्जमाफी योजना का उदाहरण दिया. उन्होंने कहा कि तब इतनी बड़ी रकम कर्जमाफी के नाम पर दी गयी, फिर भी किसानों का आत्महत्या करने का सिलसिला नहीं था.

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अरुण जेटली कहते हैं कि किसानों की स्थिति सुधारने के लिए उनकी सुविधाएं बढ़ानी होंगी. इस बात की व्यवस्था करनी होगी कि उनकी उपज की कीमत लागत मूल्य से अधिक हो. यदि ऐसा हो जाता है, तो किसान के लिए कभी आत्महत्या करने की नौबत नहीं आयेगी.

बहरहाल, सबसे पहले उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने सीमांत किसानों के एक लाख रुपये तक के कर्ज माफ करने की घोषणा की थी. इसके बाद मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में हुए किसान आंदोलन के बाद यहां की सरकारों ने भी किसानों का कर्ज माफ करने का एलान किया.

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इन तीन राज्यों के बाद पंजाब ने विधानसभा में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने किसानों के दो लाख रुपये तक के कर्ज को माफ करने की घोषणा की. उन्होंने कहा कि उनके फैसले से प्रदेश के 10.25 लाख किसानों को उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के किसानों की तुलना में दोगुना राहत मिलेगी. उन्होंने एक कृषि नीति बनाने की भी बात कही.

क्या है कृषि कर्जमाफी?

ऐसा कर्ज जो किसान कृषि उपकरण खरीदने के लिए लेता है. जब खेती अच्छी होती है, तो किसान और बैंक दोनों को फायदा होता है. लेकिन, जब माॅनसून दगा दे जाता है और सूखे की स्थिति आ जाती है, तो किसान कर्ज चुकाने की स्थिति में नहीं होता. ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारों पर यह दबाव होता है कि वह किसानों द्वारा लिये गये कर्ज को आंशिक रूप से या पूरी तरह से माफ कर दे. ऐसे में केंद्र या राज्य सरकारें किसानों की जिम्मेदारी लेती है और जिन बैंकों से किसानों ने कर्ज लिये होते हैं, उन बैंकों को वह रकम सरकारी कोष से अदा कर देती हैं. इसमें कुछ विशेष तरह के लोन को ही माफ किया जाता है.

कर्जमाफी की जरूरत क्यों?

छोटे भू-खंड, गिरते भू-जलस्तर, दिनोंदिन उपज खोती मिट्टी, बारिश की कमी और खेती की बढ़ती लागत से किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिलता. इसलिए खेती और अपनी निजी जरूरतें पूरी करने के लिए किसानों को लोन लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है. कर्जमाफी योजना से किसानों को कुछ राहत मिल जाती है.

चिंती की मुख्य वजह?

खाद्यान्न से संबंधित कोई भी बात हमें चिंतित करती है. किसान खेती करके खुश नहीं हैं. एनएसएसअो के 59वें सर्वेक्षण में 40 फीसदी किसानों ने कहा कि मौका मिले, तो वह खेती छोड़ देंगे. सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि किसानों की समस्याअों का निदान जल्द नहीं हुआ, तो इसके गंभीर परिणाम होंगे. खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ जायेगी. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कर्जमाफी किसानों को अस्थायी राहत देती है, उनकी समस्याअों का समाधान नहीं करती.

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