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कर्जमाफी पर कड़े तेवर
केंद्र सरकार किसानों की कर्जमाफी पर कोई विचार नहीं कर रही है और न ही इस काम के लिए राज्य सरकारों को विशेष आर्थिक मदद का उसका कोई इरादा है. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि वित्तीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन कानून का पालन और वित्तीय घाटे को नियंत्रण में रखने के लक्ष्य […]
केंद्र सरकार किसानों की कर्जमाफी पर कोई विचार नहीं कर रही है और न ही इस काम के लिए राज्य सरकारों को विशेष आर्थिक मदद का उसका कोई इरादा है. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि वित्तीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन कानून का पालन और वित्तीय घाटे को नियंत्रण में रखने के लक्ष्य सरकार की प्राथमिकता हैं. वर्ष 2017-18 के बजट में वित्तीय घाटे को 3.2 फीसदी रखने का लक्ष्य है, जो पिछले साल 3.5 फीसदी रहा था.
दो-तीन साल के सूखे, फसलों की कीमतों में गिरावट और सरकारी नीतियों के कारण गहराते कृषि संकट के इस दौर में किसानों की कर्जमाफी बड़ा मुद्दा बन कर उभरा है. इस साल सबसे पहले उत्तर प्रदेश में छोटे और सीमांत किसानों के 36,359 करोड़ के कर्ज माफ किये गये, तो सोमवार को पंजाब में दो लाख रुपये के कर्ज माफ करने की घोषणा हुई है. इससे पहले महाराष्ट्र में भी इस तरह के निर्णय लिये गये हैं. देश के अन्य कुछ राज्यों में भी किसान राहत की मांग कर रहे हैं. यह सही है कि घाटे को नियंत्रित करना और वित्तीय अनुशासन रखना बेहद जरूरी उद्देश्य हैं. अर्थव्यवस्था को पटरी पर रखने तथा बजटीय घोषणाओं को अमली जामा पहनाने के लिए भी ऐसे कदम उठाये जाने चाहिए. लेकिन, किसी संकट की स्थिति में राज्यों को विशेष पैकेज या अनुदान उपलब्ध कराने की जिम्मेवारी भी केंद्र की है, क्योंकि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों से होनेवाली कमाई का बड़ा हिस्सा केंद्र के खाते में ही आता है.
हालांकि, राजस्व के राज्यों के हिस्से में वृद्धि हुई है, पर साथ ही विशेष श्रेणी और विशेष पैकेजों के हिसाब-किताब में भी कमी हुई है. आज किसान बड़ी मुश्किल में है और उसे आंदोलन की राह लेने पर मजबूर होना पड़ रहा है. यह स्थापित तथ्य है कि कर्जमाफी किसानों की परेशानियों का स्थायी हल नहीं है, बल्कि एक फौरी राहत है. उन्हें अपनी उपज का उचित मूल्य मिलना चाहिए. न्यूनतम समर्थन मूल्य के निर्धारण का अधिकार भी केंद्र के पास होता है. सरकारी मंडियां पैसे की कमी का बहाना बना कर खरीद नहीं करती हैं. ऐसे में किसान बाजार के हाथों लाचार हो जाता है.
खेती पर देश की आधी से अधिक आबादी आश्रित है. उसकी समस्याओं को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों को अधिक सजग और संवेदनशील होना चाहिए. कर्जमाफी पर मौजूदा रवैया तार्किक हो सकता है, पर सरकार को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि उसकी नीतियों और कार्यक्रमों का समुचित लाभ आम किसानों तक पहुंच सके.
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