नयी दिल्ली : आज के अखबार एनडीए के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद से रंगे पड़े हैं. न्यूज वेबसाइटों पर तो कल से ही रामनाथ कोविंद छाये हुए हैं. एक लो प्रोफाइल नेता, जिनके बारे में मीडिया में पहले बहुत कुछ नहीं छपा होता है, अब उनके देश के शीर्ष पद पर पहुंचने की स्थितिबननेपर लोग अधिक से अधिक उनके बारे में जानना-समझना चाहते हैं. उनके व्यक्तित्व की मीडिया ने अपने-अपने ढंग से व्याख्या-विवेचना की है और इसे नरेंद्र मोदी-अमित शाह की राजनीति से ही अधिक से अधिक जोड़ कर देखा गया है. कई प्रमुख पत्रकारों ने रामनाथ कोविंद पर लिखा है, अपनी राय दी है. हम यहां कुछ प्रमुख पत्रकारों के नजरिये का उल्लेख कर रहे हैं.
संघ-भाजपा की गहरी समझ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय ने कोविंद पर अपनी राय रखी है. राय ने बीबीसी हिंदी डॉट कॉम से बातचीत में कहा है कि पिछले दो महीने सेजो नाम चल रहे थे, मेरी जानकारी मेंकहींभीरामनाथ कोविंद का नाम उनमें नहीं था.भाजपा के कई बड़े नेताओं के अनुमान में भीरामनाथ कोविंद का नाम नहीं था.जिन गर्वनरोंकेनाम इस पद के लिए चर्चा में थे वे – उत्तरप्रदेश के राज्यपाल रामनाईकऔरझारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू हैं.
रामबहादुरराय की विवेचनाहै कि भाजपा ने उत्तरप्रदेश के रहने वाले कोविंद का नाम राष्ट्रपति के रूप में आगे करयोगी केमुख्यमंत्रीबनने के बाद के दिनों में राज्य मेंराजपूतों व दलितों के बीच के जातीय संघर्ष के असर को कम करने की काेशिश की. रायका मानना हैकिभाजपा के पासबहुमतथोड़ा कम है, लेकिन कोविंद का नाम सामने आने सेउनका बहुमत से राष्ट्रपति बनना तय है.रामबहादुरराय का मानना है कि नीतीश कुमार का भी उन्हें साथ मिलेगा.इसकेपीछे नीतीश व रामनाथ कोविंद के बीच की अच्छी कैमेस्ट्रीकावे उल्लेख करते हैं.
क्लिक कर इसे भी पढ़ें :तो भाजपा ने राष्ट्रपति पद के लिए चुन लिया पहला आरएसएस ब्रांड राष्ट्रपति उम्मीदवार?
वहीं, न्यूज वेबसाइट दक्विंटकेएडिटोरियल डायरेक्टसंजयपुगलिया ने अपने विश्लेषणमेंकहाहैकि रामनाथ काेविंदकानपुर के हैं, दलित हैं, गरीब हैं, हाशिये पर के वर्ग से आते हैं,कानूनके जानकार हैंऔर हाइकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में प्राइक्टिसकर चुके हैं, नरेंद्र मोदी चाहते हैंकि उन्हें इसी रूप में जाना जाये. पुगलिया कहते हैं कि कोविंदआरएसएस से जुड़े रहे हैं और मोदी जी के दिमाग मेंगेमप्लान है कि16-18प्रतिशत दलितवोट को मैक्सिमाइज किया जाये.
पुगलिया का विश्लेषण है कि यह नाममोदी-शाह और संभवत: भागवत ने अापसी सलाह-मशविरे से तय किया होगा. उन्होंने कहा है कि यह विपक्ष के लिए खुद को एक्टिव होने का मौका है. अब विपक्ष को भी उनके खिलाफ दलित या घोर पिछड़ा उम्मीदवार लाना होगा. पुगलिया के अनुसार, कोविंद में सरलता है, संजीदगी है, उनकी योग्यता पर सवाल नहीं उठा सकते हैं. अब उनके राष्ट्रपति चुने जाने के बाद साउथ ब्लॉक व रायसीना हिल में एक ऐसी जुगलबंदी देखने को मिलेगी, जिस पर सवाल नहीं खड़ा कर सकते हैं.
क्लिक कर इसे भी पढ़ें : रामनाथ कोविंद को मोदी-शाह ने क्यों बनाया भाजपा का राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार?
वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश का मानना है कि भाजपा ने कोविंद को उम्मीदवार बना कर विपक्ष की संभावित एकता में दरार पैदा कर दी और उनकी जीत लगभग तय है. बीबीसी हिंदी डॉट कॉम में लिखे अपने लेख में वे लिखते हैं – भाजपा के तरफ से रामनाथ कोविंद का नाम सामने आने के बाद विपक्ष निश्चय रूप से भारी दबाव में है. वह दलित प्रत्याशी बनाम दलित प्रत्याशी की प्रतीकात्मक लड़ाई में उलझ कर सिद्धांतविहीन सियासी समीकरण को प्राथमिकता दे या मोदी सरकार के नकारात्मक राजनीतिक प्रशासनिक पहलुओं और आर्थिक मोर्चे की विफलताओं को सामने लाकर एक ठोस और सुसंगत वैकल्पिक रणनीति को आगे बढ़ाये.
क्लिक कर इसे भी पढ़ें : एनडीए के राष्ट्रपति प्रत्याशी रामनाथ कोविंद, दबे-कुचलों की बुलंद आवाज
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार प्रमोदी जोशी फर्स्टपोस्ट हिंदी डॉट कॉम पर लिखते हैं -कुछलोगों को कोविंद का नाम सुननेकेफौरन बाद यह प्रतिभा पाटिलक्षण लगा…किसी व्यक्ति की पात्रता,ज्ञान और गुण का हमारा मापदंड क्या है? मीडिया में प्रसिद्धि,भद्रलोक के बीच उसकाविचरण और कुर्सियां जिन पर उसे बैठने का मौका मिला है. इस लिहाजसे भी रामनाथ कोविंद कासीवी प्रभावहीननहींलगता.हां उन्हें लो-की, लो-प्रोफाइल माना जा सकता है, जो प्रतिभा पाटिल थीं, पर प्रतिभा पाटिल का यह अवगुण नहीं था. जोशी का नजरिया है कि संघ से जुड़ा होना किसी पद के लिए अयोग्यता नहीं हो सकती. वे इस रूप में अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने व भैरो सिंह शेखावत के उप राष्ट्रपति बनने का उल्लेख करते हैं.