गिद्धौर. पर्यावरण संरक्षण के साथ जंगल प्रखंड के लोगों की आमदनी का महत्वपूर्ण जरिया बना है. हर वर्ष लोग यहां अच्छी आमदनी करते है. जंगल में लगे महुआ, केंदू, सखुआ, आंवला, पीयार, हरय, बहेरा ग्रामीणों को अच्छी आमदनी देता है. कभी यहां की आधी आबादी की जीविका इन फलों को बेच कर चलती थी. आज भी इन वनोत्पाद की मांग बाजार में हैं. लेकिन बदलते समय में पेड़ों की कटाई से लोगों की आमदनी घटी है. पेड़ों के कटने से ग्रामीणों को नुकसान उठाना पड़ रहा हैं.
जाने-अंजाने में लोग अपना ही नुकसान कर रहे है. ग्रामीण बताते हैं कि मई से लेकर जुलाई तक जंगली फल मिलते हैं, जिसे बेचने पर अच्छी आमदनी हो जाती है. जंगल में लगे केंदू के पौधों से पत्ता तोड़ कर अच्छी आमदनी हो जाती है. महुआ भी अच्छा खासा मुनाफा देता है. वर्तमान समय में सखुआ का फल (सरय) की मांग है. 15 से 20 रुपये किलो बाजार में यह आसानी से बिक जाता है.
सिमट रहा है जंगल का दायरा: गिद्धौर प्रखंड में लगभग 2100 हेक्टेयर वन भूमि बतायी गयी है. इन भूमि पर कभी यहीं परंपारिक पेड़ प्रचुर मात्रा में हुआ करते थे.
लेकिन ग्रामीणों द्वारा इन बेशकिमती पेड़ों की कटाई की जाती है. अब सखुआ को छोड़ कर अन्य पेड़ की मात्रा जंगल से घटती जा रही है. लोग खेती के ख्याल से जंगल पर अतिक्रमण कर रहे है.
कुछ समितियां कर रही जागरूक: प्रखंड में बनायी गयी अधिकतर वन सुरक्षा समितियां निष्क्रिय दिखती है. लेकिन एक, दो समितियां ही उत्कृष्ट काम कर रही है. सिंदवारी गांव में बनी समिति न सिर्फ जंगल बचाने को लेकर लोगों को जागरूक कर रही है. बल्कि इन परंपारिक बेशकिमती पौधों की रक्षा कर नये पौधे भी जंगलों में लगा रही हैं.
जंगल का सीधा लाभ ग्रामीणों को
रेंजर कैलाश सिंह ने बताया कि प्रकृति ने चतरा को अनुपम सौगात दी है. यहां की जंगल तरह-तरह के पेड़ों से भरे पड़े हैं.
इसका लाभ ग्रामीणों को ही मिलता हैं. लेकिन ग्रामीण अज्ञानता वश जंगल काट कर अपने पैर में ही कुल्हाड़ी मार रहे है. अपनी आमदनी का नुकसान करा रहे है. जंगल पर अतिक्रमण करनेवाले लोगों पर कार्रवाई होती रहती है. ग्रामीणों को जंगल बचाने के लिए जागरूक होना होगा. वन सुरक्षा समितियों को सक्रिय भूमिका निभानी होगी.