फतुहा : प्रखंड के बांकीपुर गोरख निवासी देवनंदन पासवान स्वतंत्रता सेनानी के वंशज हैं. कभी इनके पिता और दादा के नाम सुन कर गोरे दहशत में आ जाते थे. आज देवनंदन पासवान दर- दर की ठोकर खा रहे हैं. इस संबंध में देवनंदन पासवान ने बताया कि हमारे दादा अमृत दुसाध को अंगरेजों ने दामुल की सजा दी थी. पिता मरण दुसाध को फांसी की सजा दी गयी थी. हमारी दो पीढ़ी देश के खातिर कुरबान हो गयी. आज मैं गरीबी की जिंदगी जी रहा हूं. देवनंदन पासवान बाजार समिति में पलंबर सह चालक के पद पर कार्यरत थे, लेकिन बाजार समिति को भंग कर दिया गया. इसी के साथ इनकी नौकरी भी समाप्त हो गयी.
वे दर- दर की ठोकरे खाने लगे हैं. कई बार सरकार से मिले, लेकिन इनको नौकरी पर नहीं रखा गया, जबकि बाजार समिति के अन्य कर्मियों का समायोजन कर लिया गया है. थक- हार कर देवनंदन पासवान न्यायालय की शरण में गये और लंबी लड़ाई के बाद न्यायालय ने 2016 में सेवा बहाल करते हुए पूर्व की बकाया राशि के भुगतान करने का आदेश दिया , लेकिन सेवा स्वीकृत नहीं की गयी है.